Wednesday, 30 November 2016

एक महान देशभक्त - आर्यन पेशवा - पीटर पियर प्रताप - मुरसन नरेश 'राजा महेंद्र प्रताप जी ठेनुआ'

एक महान देशभक्त - आर्यन पेशवा - पीटर पियर  प्रताप - मुरसन नरेश 'राजा महेंद्र प्रताप जी ठेनुआ' को उनके जन्मदिवस (1 दिसम्बर, 1886) पर सत-सत नमन!

First President of Provisional Government of India (1-12-1915),
1932 Nobel Prize Nominee,
Decorated with German’s Order of Red Eagle,
Founder of ‘Executive Board of India’ in Japan,
Founder of ‘World Federation Magazine’ in Japan,
Founder of ‘Prem-Dharm’ (Religion of Love),
Conferrer of ‘Jatav’ title on ‘Chamar’ Community to eliminate untouchability,
Ex. P.M. Atal Bihari Vapayee lost his deposit in front of Raja ji in 1957 from Mathura

Please read the attached poster for more details on Raja Saheb!

Jai Yauddhey! - Phool Kumar Malik


Saturday, 26 November 2016

छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से!

लड़ाई नहीं आहमि-स्याहमी की, होगी इशारों के फेरों से,
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।

सूरजमल से टकराया था मनुवाद, पानीपत की चढ़त में,
दिल्ली जीती तो देंगे मुग़लों को, जाट नहीं म्हारी लिखत में।
ऐसी आह लगी जाट की, दिल्ली मिली ना पानीपत सुख में,
मनुवादी पेशवाओं के दम्भ हुए चूर, काले आम्ब की जड़ में।।
उन दिल्ली ना देने वालों को, फर्स्ट-एड दिखी मिलती सूरजमली चौबारों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।

एक छोटूराम ने कलम ऐसी फटकती चलाई थी,
सूदखोरों की लूट की, बाँध गठड़ी सी बगाई थी।
जिद्द पे धर जब जाट ने, कानूनी जंग मचाई थी,
नारंग-चोपड़े-शादीलालों की, हुई हवाएं-हवाई थी।
'बावन बुद्धि बणिया, पर छप्पन बुद्धि जाट चली' के चर्चे चले घर-घेरों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।

जगदेव सिंह सिद्धान्ती ने शास्त्री ज्ञान उधेड़ दिए सारे,
एक तरफ अकेला जट्टा, दूसरी तरफ ग्रन्थि-शास्त्री न्यारे|
एक-2 के ज्ञान की चणक सी जब तोड़ी, तो सारे लगे झल्लाने,
पंडताई झाड़ी जब महाज्ञानी ने तो, चले ब्राह्मण जहर पिलाने||
पर हाकिम नामिसद्दीन की दवा के आगे, पार हुए ना इरादे चोरों से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।

चौधरी कबूल सिंह, हुए सेक्सपियर जाटों के,
रख गए साहित्य-इतिहास की, एक-एक पाती सम्भाल के।
सोरम की गलियों में पाते, जवाब हर उलझे सवाल के,
खाप-इतिहास और सभ्यता, पढ़ लो दिलों को बाळ के।।
लगा दो मजमा, चला दो कलमाँ; ज्यूँ जगमग हो ज्यां ढारे से।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।

"फुल्ले-भगत" दिनरात बळै सै, अमर-ज्योत ज्यूँ गात जळै सै,
अलख-उल्हाणे नगर-निडाणे, जगत-जगाणे की चीस पळै सै।
कलम के बिना ठिकाणा नहीं सै, घाघ-घुनों से पार पाणा यही सै,
शक्ति-वाहिनी हो या छद्म-छाँटणी, इनपे भारी जाट-गजटी चासणी।।
न्यू चढ़ा दो कढाहे इस चासणी के, ज्यूँ फुस्स हो ज्या अरमां भंडेरों के।
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।

लड़ाई नहीं आहमि-स्याहमी की, होगी इशारों के फेरों से,
छोल के कलम बना लो लठ की, इब लड़ना कागजी शेरों से।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक (फुल्ले भगत)

Thursday, 24 November 2016

हस्तकला का अजब नमूना हरियाणवी फुलझड़ी!

मित्रों, फुलझड़ी हरियाणवी लोककला का ऐसा सतरंगी नमूना है जो हरियाणवी महिलाओं की हस्तकला को प्रतिनिधित्व प्रदान करता है। लोक कला का यह नमूना हरियाणवी लोकजीवन में महत्वपूर्ण रहा है। लड़की की विदाई के समय महिलाएं हस्तकला के अनेक विषय वस्तुओं को ससुराल पक्ष के लोगों के लिए देने की परंपरा रही है। इसमें कोथली, पोथिया, गिन्डू, बोहिया, फुलझड़ी अनेक ऐसी विषय वस्तुएं रही हैं जो हरियाणवी महिलाओं के हस्तकला को प्रदर्शित करती रही है। फुलझड़ी भी उसी तर...ह का एक हस्तकला का नमूना है। इसे बनाने के लिए सरकंडे का प्रयोग किया जाता है। सरकंडे को सबसे पहले वर्गाकार रूप में जोड़ लिया जाता है। जोडऩे के पश्चात जब इसकी आकृति पिंजरे जैसी बन जाती है तो उसके उपर रंगीन कपड़ों को तिरछे आकार में लपेटा जाता है। वर्गाकार सभी सरकंडे रंगीन कपड़ों से लपेट दिए जाते हैं। इसके साथ ही उसके पश्चात घोटा तथा पेमक चढ़ाकर इन सरकंडों के वर्गाकार स्वरूप को कलात्मक स्वरूप प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही फुलझड़ी के ऊपरी सिरे पर जिसे बंधने वाला सिरा भी कहा जाता है पर कपड़ों से बना हुआ तोता बांधा जाता है। इसके वर्गाकार ऊपरी कोनों पर भी छोटे-छोटे तोते बांधने की परंपरा है। इसके पश्चात वर्गाकार स्वरूप में धागे की लडिय़ां लटकाई जाती हैं। इन लडिय़ों में तिकोने रंगीन आकार के कागज पुर दिए जाते हैं। ये छोटी-छोटी मोतियों जैसी लडिय़ों की अनेक लटकनें फुलझड़ी की शोभा को बढ़ाती हैं। इसके साथ-साथ रंगीन कपड़ों से ढ़ककर बीच-बीच में माचिश भी बांधी जाती है जिनमें अनाज के दाने ड़ाल दिए जाते हैं। इसके साथ ही फुलझड़ी की सभी लडिय़ों के निचले हिस्से तथा आखिरी छोर पर बल्ब तथा रंगीन कपड़ों के बने हुए छोटे गोलाकार गिन्डू बांधने की परंपरा भी रही है। फुलझड़ी की सतरंगी आभा इतनी अनोखी तथा आकर्षक होती है कि वह सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। नववधु को दूसर यानि के दूसरी बार ससुराल में जाते समय हस्तकलाओं के अनेक नमूने ले जाती है। उसमें से फुलझड़ी भी एक है। फुलझड़ी को घर के दालान में शहतीर के बीच में लगे हुए कड़े पर बांधने की परंपरा है। कौन बहु कितनी सुंदर फुलझड़ी लाती थी इसकी चर्चा आस-पड़ोस में अवश्य होती थी। इसके साथ ही फुलझड़ी नववधु के जेठ द्वारा बांधी जाती है। नववधु की फुलझड़ी बांधने के बदले में ज्येष्ठ कुछ राशि के रूप में इनाम भी नववधु से लेता है। जेठ द्वारा बहु की फुलझड़ी बांधना लोकजीवन में गर्व एवं गौरव का हिस्सा रहा है। नववधु, ससुर, देवर, जेठानी, ननद सभी के लिए कुछ न कुछ हस्तकला का नमूना लेकर आती रही है। फुलझड़ी बांधना तथा संदूक उतरवाना जेठ के हिस्से में आता है। वर्तमान में फुलझड़ी बनाने की परंपरा लुप्तप्राय हो चली है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय रत्नावली समारोह में फुलझड़ी बनाने की प्रतियोगिता को शामिल किया गया है। उसी की एक झलक आप लोगोंं से सांझा कर रहा हूं।

Author and Content: Mahasingh Poonia, Mahasingh Poonia

21 दिनों के बौद्ध विपासना मैडिटेशन के 21 सूत्र!

रहबर-ए-आजम दीनबंधु चौधरी सर छोटूराम जी की जन्म-जयंती व् अहीरवाल के सबसे बड़े यूनियनिस्ट रहे राव मोहर सिंह जी की पुण्यतिथि पर विशेष!

1) सामाजिकता, धर्म और राजनीति दोनों की जननी व् पोषक है; इसलिए सामाजिक व्यक्ति धर्म और राजनीति दोनों से ऊपर है| सामाजिक व्यक्ति को चाहिए कि वह धर्म और राजनीति का गुलाम ना बने, अपितु इन दोनों का निर्देशक बना रहे| ऐसे मूढ़मतियों को समर्पण ना किया जाए जो भावनाओं का सौदा कर,आपके अंदर उनका पोषक होने की भावना की जगह, उनका पिछलग्गू या भक्त होने की भावना भरते हैं||
2) दादा नगर खेड़ा सभ्यता ही असली मुक्ति का मार्ग है; अर्थात मूर्तिउपासक बना जाये, मूर्तीपूजक नहीं| क्योंकि यही इकलौते ऐसे धाम हैं, जिनपर दान करने वाला; खुद या समूह में मिलकर सार्वजनिक तौर पर निर्धारित करता है कि उसका दिया दान या प्रसाद किसको जायेगा, उसका क्या किया जायेगा| क्योंकि यही वो आध्यात्म के इकलौते व् मूर्तिरहित धाम हैं जिनपर धर्म का मिडलमैन नहीं बैठता| क्योंकि यही ऐसे धाम हैं जो आये हुए दान का ऑडिट भी करते हैं|
3) युद्ध क्रांति, सामाजिक-क्रांति, हरित क्रांति, श्वेत क्रांति के सिलसिले में अब लेखन-क्रांति जोड़ी जाए और ग्रेटर हरयाणा (Greater Haryana comprises of Current Haryana, Delhi, West U.P., Northern Rashthan, South-Western Uttrakhand, South-Western Punjab) की धरती के हर घर से लेखनी निकल के आगे आये| क्योंकि आप भारत में रहते हैं, इंग्लैंड में नहीं, कि जहां बिना लिखे सविंधान के देश चलाया जा सकता हो|
4) हरयाणवी सभ्यता ग्लोबल सभ्यता है, इसलिए अपनी सोच भी ग्लोबल विज़न की हो; मात्र हरयाणा या भारत तक सिमिति ना हो| भारत में हरयाणा सा स्वर्ग नहीं, मानवीय सभ्यता नहीं| यही वो धरती है, जिस पर मनुवाद के जातिवाद और वर्णवाद से ग्रसित व् पीड़ित लोग ट्रेनें भर-भर रोजगार और सुख की जिंदगी की आस लिए चले आते हैं| इसलिए खुद इनमें पड़ के अपने राज्य-सभ्यता को जाने-अनजाने में उल्टी गंगा बनने की ओर धकेलने से बचा जाए|
5) देश-राज्य के साधन-संसाधनों-सिस्टम पर कब्जा बनाने, जमाये रखने और बढ़ाने हेतु सवर्ण जातियों का एक मिनिमम कॉमन एजेंडा है, ऐसे ही किसानी व् दलित जातियां भी अपना मिनिमम कॉमन एजेंडा बनावें|
6) भारत में सबसे ज्यादा औरत के अनुरूप व् ममतामयी कोई सभ्यता है तो वह हरियाणवी सभ्यता है| इस पर गर्व हो, इसका प्रचार हो|
7) मनुवाद सबसे बड़ा वंशवाद (परिवारवाद) है| अपने घरों को इससे जितना हो सके उतना बचाया जाए, अन्यथा वंशवाद और परिवारवाद की राजनीति का उलाहना ना दिया जाए|
8) मंडी-फंडी आपके इर्दगिर्द आइडेंटिटी का दायरा खींचने दौड़ता है, आपकी सामाजिक पहचान की लेबलिंग करता है| अगर आप उनके फेवरेट वर्ग से नहीं हैं, परन्तु उम्दा नेता या समाज-सुधारक हैं तो वह आपके चारों ओर आपकी जातीय एथनिसिटी का दायरा खींच, आपको उसमें बाँध; आपको सर्वसमाज का, सम्पूर्ण राष्ट्र-राज्य का शुभचिंतक व् कार्यकर्ता होने जोड़ने से रोक देते हैं; ताकि राष्ट्रभक्ति, मानवता, सभ्यता जैसे शब्द यह सिर्फ इनके फेवरेट लीडरों, सुधारकों के लिए रखे रहें| इससे बचा जाए, जहां ऐसा होता दिखे उसका खण्डन किया जाए और हो सके तो उस दायरे में उसको ही जकड़ दिया जाए| अपनी जाति के नेता-अभिनेता-सन्त-कार्यकर्ता को खुद अपनी जाति का बता के उसका दायरा सिमित ना किया जाए| वरन जो वर्ग ऐसा करते हैं, उसके यहां के अग्रणी लोगों को इस लेबलिंग में बाँध दिया जाए| अपने वालों को देश-राष्ट्र-मानवता-सभ्यता जैसे शब्दों से जोड़ के प्रचारित किया जाए| इस समस्या से छुटकारा पाने का सबसे प्रभावकारी सूत्र है अपने समाजों को कारोबार व् मान-मान्यता के आधार पर एक करना; उनको आगे बढ़ाना, बढ़ने देना और खुद भी बढ़ना|
9) इस बिंदु का मूल पांचवें बिंदु में ही है| एकता जाति-सम्प्रदाय के नाम पर ना की जाए; जीवन शैली, सभ्यता व् कारोबार के आधार पर की जाए| जैसे कि किसानी जातियां, खुद को किसान वर्ग में बांधे या किसानी से सम्बन्धित व्यापार वर्ग में, लेकिन जातीय अभिमान में खुद कभी ना बांधें व दूसरे जो बांधे उनको उल्टा इसी में बाँध दिया जाए| परन्तु हाँ, कौमी स्वाभिमान इस तरीके से पोषित रखा जाए कि खुद की पहचान मिटे नहीं और दूसरे की आपके द्वारा खण्डित हो नहीं|
10) घर का झगड़ा गली में नहीं दिखाया जाता, अत: खुद के समाज का द्वेष-मनमुटाव सोशल मीडिया पर ना फैलाया जाए| इससे जगहंसाई और दिग्भ्र्मिता के सिवाए कुछ हासिल नहीं| घर के मसले घर में ही बैठ के सुलझते हैं; इनको गली में लाये तो इनके सुलझने की बजाये इनमें फिकरे और तंज और जुड़ जाते हैं|
11) कौम-जमात के खसम बना जाए, जमाई नहीं| यानि यह मत सोचो कि कौम की भलाई का सिर्फ तुम्हारा ही तरीका सर्वोत्तम है; बस यह लेकर चला जाए कि तुम्हारा तरीका कितना साधक है| समाज-सेवा की स्वस्थ प्रतियोगिता हो, नूरा-कुश्ती नहीं|
12) जातीय-कौमी भाई से उसके सहयोग का कम्पटीशन हो, द्वेष-घृणा-नफरत-आलोचना व् नूराकुश्ती का कम्पटीशन सूदखोर और फ़ंडी-पाखंडी से हो|
13) कल्चर पेशे से आता है, भाषा से नहीं| अत: एग्रीकल्चर ही असली कल्चर है| विश्व में संस्कृति गाँव से शहर को जाती है| भारत को छोड़ कहीं भी ऐसा नहीं जहां संस्कृति शहर से गाँव को आई हो| अत: इस उलटी गंगा में ना बहा जाए|
14) खुद को जाने बिना, जग नहीं जाना जा सकता; इसलिए बुद्ध विपसना मैडिटेशन को जीवन में जरूर उतारा जाए| अपने भय से लड़ा जाए, भागा नहीं|
15) मंडी के सूदखोर से नफरत करो, धर्म के फ़ंडी और पाखंड से नफरत करो| पाप की सम्भावना को भी मिटाया जाए और पापी को भी|
16) आपके इर्दगिर्द का 70 साल से ऊपर का कोई बुजुर्ग (फिर वो महिला-पुरुष हो या जिस भी जाति-बिरादरी का हो) ऐसा नहीं बचना चाहिए, जिसके पास बैठ आपने उनसे न्यूनतम 150 साल तक का तो (70 साल का उनका और 80 साल का उनके पिता-दादा का आँखों देखा उनको बताया) आँखों देखा इतिहास उनकी जुबानी कलमबद्ध ना किया हो|
17) मंडी-फंडी का पोषक है प्रतिक्रिया, यह बंद कर दी जाए; मंडी-फंडी विलुप्त हो जायेगा|
18) मंडी-फंडी के आगे बचाव और आक्रामक दोनों मुद्राओं से बचा जाए; इनके अंदर दीमक की भांति घुसने की कोशिश की जाए; तभी इनसे अपने हक़ बचाये रखे जा सकते हैं|
19) सहयोगी साथी को आर्थिक रूप से सबल करने में मदद की जाए| एक दूसरे के रोजगार-कारोबार को आगे बढ़वाया जाए|
20) आपका उद्देश्य आपकी और आपके लोगों की परचेजिंग पावर (purchasing power) बढ़ाने और बढ़वाने का हो| देश-सरकार-सिस्टम के साधन-सांधनों-दान-चन्दे के जरियों पर अपने सवैंधानिक आधिपत्य का हो| लोगों और जमात को काबू करने मत दौड़ो, साधन-संसाधन-दान-चन्दे को सवैंधानिक तरीके से हासिल करने को दौड़ो| जिनका इन पर कब्जा है, लोगों का वहीँ लगता मजमा है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक