रहबर-ए-आजम दीनबंधु चौधरी सर छोटूराम जी की जन्म-जयंती व् अहीरवाल के सबसे
बड़े यूनियनिस्ट रहे राव मोहर सिंह जी की पुण्यतिथि पर विशेष!
1)
सामाजिकता, धर्म और राजनीति दोनों की जननी व् पोषक है; इसलिए सामाजिक
व्यक्ति धर्म और राजनीति दोनों से ऊपर है| सामाजिक व्यक्ति को चाहिए कि वह
धर्म और राजनीति का गुलाम ना बने, अपितु इन दोनों का निर्देशक बना रहे| ऐसे
मूढ़मतियों को समर्पण ना किया जाए जो भावनाओं का सौदा कर,आपके अंदर उनका
पोषक होने की भावना की जगह, उनका पिछलग्गू या भक्त होने की भावना भरते
हैं||
2) दादा नगर खेड़ा सभ्यता ही असली मुक्ति का मार्ग है; अर्थात
मूर्तिउपासक बना जाये, मूर्तीपूजक नहीं| क्योंकि यही इकलौते ऐसे धाम हैं,
जिनपर दान करने वाला; खुद या समूह में मिलकर सार्वजनिक तौर पर निर्धारित
करता है कि उसका दिया दान या प्रसाद किसको जायेगा, उसका क्या किया जायेगा|
क्योंकि यही वो आध्यात्म के इकलौते व् मूर्तिरहित धाम हैं जिनपर धर्म का
मिडलमैन नहीं बैठता| क्योंकि यही ऐसे धाम हैं जो आये हुए दान का ऑडिट भी
करते हैं|
3) युद्ध क्रांति, सामाजिक-क्रांति, हरित क्रांति, श्वेत
क्रांति के सिलसिले में अब लेखन-क्रांति जोड़ी जाए और ग्रेटर हरयाणा
(Greater Haryana comprises of Current Haryana, Delhi, West U.P.,
Northern Rashthan, South-Western Uttrakhand, South-Western Punjab) की
धरती के हर घर से लेखनी निकल के आगे आये| क्योंकि आप भारत में रहते हैं,
इंग्लैंड में नहीं, कि जहां बिना लिखे सविंधान के देश चलाया जा सकता हो|
4) हरयाणवी सभ्यता ग्लोबल सभ्यता है, इसलिए अपनी सोच भी ग्लोबल विज़न की
हो; मात्र हरयाणा या भारत तक सिमिति ना हो| भारत में हरयाणा सा स्वर्ग
नहीं, मानवीय सभ्यता नहीं| यही वो धरती है, जिस पर मनुवाद के जातिवाद और
वर्णवाद से ग्रसित व् पीड़ित लोग ट्रेनें भर-भर रोजगार और सुख की जिंदगी की
आस लिए चले आते हैं| इसलिए खुद इनमें पड़ के अपने राज्य-सभ्यता को
जाने-अनजाने में उल्टी गंगा बनने की ओर धकेलने से बचा जाए|
5)
देश-राज्य के साधन-संसाधनों-सिस्टम पर कब्जा बनाने, जमाये रखने और बढ़ाने
हेतु सवर्ण जातियों का एक मिनिमम कॉमन एजेंडा है, ऐसे ही किसानी व् दलित
जातियां भी अपना मिनिमम कॉमन एजेंडा बनावें|
6) भारत में सबसे ज्यादा औरत के अनुरूप व् ममतामयी कोई सभ्यता है तो वह हरियाणवी सभ्यता है| इस पर गर्व हो, इसका प्रचार हो|
7) मनुवाद सबसे बड़ा वंशवाद (परिवारवाद) है| अपने घरों को इससे जितना हो
सके उतना बचाया जाए, अन्यथा वंशवाद और परिवारवाद की राजनीति का उलाहना ना
दिया जाए|
8) मंडी-फंडी आपके इर्दगिर्द आइडेंटिटी का दायरा खींचने
दौड़ता है, आपकी सामाजिक पहचान की लेबलिंग करता है| अगर आप उनके फेवरेट वर्ग
से नहीं हैं, परन्तु उम्दा नेता या समाज-सुधारक हैं तो वह आपके चारों ओर
आपकी जातीय एथनिसिटी का दायरा खींच, आपको उसमें बाँध; आपको सर्वसमाज का,
सम्पूर्ण राष्ट्र-राज्य का शुभचिंतक व् कार्यकर्ता होने जोड़ने से रोक देते
हैं; ताकि राष्ट्रभक्ति, मानवता, सभ्यता जैसे शब्द यह सिर्फ इनके फेवरेट
लीडरों, सुधारकों के लिए रखे रहें| इससे बचा जाए, जहां ऐसा होता दिखे उसका
खण्डन किया जाए और हो सके तो उस दायरे में उसको ही जकड़ दिया जाए| अपनी जाति
के नेता-अभिनेता-सन्त-कार्यकर्ता को खुद अपनी जाति का बता के उसका दायरा
सिमित ना किया जाए| वरन जो वर्ग ऐसा करते हैं, उसके यहां के अग्रणी लोगों
को इस लेबलिंग में बाँध दिया जाए| अपने वालों को देश-राष्ट्र-मानवता-सभ्यता
जैसे शब्दों से जोड़ के प्रचारित किया जाए| इस समस्या से छुटकारा पाने का
सबसे प्रभावकारी सूत्र है अपने समाजों को कारोबार व् मान-मान्यता के आधार
पर एक करना; उनको आगे बढ़ाना, बढ़ने देना और खुद भी बढ़ना|
9) इस बिंदु का
मूल पांचवें बिंदु में ही है| एकता जाति-सम्प्रदाय के नाम पर ना की जाए;
जीवन शैली, सभ्यता व् कारोबार के आधार पर की जाए| जैसे कि किसानी जातियां,
खुद को किसान वर्ग में बांधे या किसानी से सम्बन्धित व्यापार वर्ग में,
लेकिन जातीय अभिमान में खुद कभी ना बांधें व दूसरे जो बांधे उनको उल्टा इसी
में बाँध दिया जाए| परन्तु हाँ, कौमी स्वाभिमान इस तरीके से पोषित रखा
जाए कि खुद की पहचान मिटे नहीं और दूसरे की आपके द्वारा खण्डित हो नहीं|
10) घर का झगड़ा गली में नहीं दिखाया जाता, अत: खुद के समाज का
द्वेष-मनमुटाव सोशल मीडिया पर ना फैलाया जाए| इससे जगहंसाई और दिग्भ्र्मिता
के सिवाए कुछ हासिल नहीं| घर के मसले घर में ही बैठ के सुलझते हैं; इनको
गली में लाये तो इनके सुलझने की बजाये इनमें फिकरे और तंज और जुड़ जाते हैं|
11) कौम-जमात के खसम बना जाए, जमाई नहीं| यानि यह मत सोचो कि कौम की भलाई
का सिर्फ तुम्हारा ही तरीका सर्वोत्तम है; बस यह लेकर चला जाए कि तुम्हारा
तरीका कितना साधक है| समाज-सेवा की स्वस्थ प्रतियोगिता हो, नूरा-कुश्ती
नहीं|
12) जातीय-कौमी भाई से उसके सहयोग का कम्पटीशन हो, द्वेष-घृणा-नफरत-आलोचना व् नूराकुश्ती का कम्पटीशन सूदखोर और फ़ंडी-पाखंडी से हो|
13) कल्चर पेशे से आता है, भाषा से नहीं| अत: एग्रीकल्चर ही असली कल्चर
है| विश्व में संस्कृति गाँव से शहर को जाती है| भारत को छोड़ कहीं भी ऐसा
नहीं जहां संस्कृति शहर से गाँव को आई हो| अत: इस उलटी गंगा में ना बहा
जाए|
14) खुद को जाने बिना, जग नहीं जाना जा सकता; इसलिए बुद्ध विपसना
मैडिटेशन को जीवन में जरूर उतारा जाए| अपने भय से लड़ा जाए, भागा नहीं|
15) मंडी के सूदखोर से नफरत करो, धर्म के फ़ंडी और पाखंड से नफरत करो| पाप की सम्भावना को भी मिटाया जाए और पापी को भी|
16) आपके इर्दगिर्द का 70 साल से ऊपर का कोई बुजुर्ग (फिर वो महिला-पुरुष
हो या जिस भी जाति-बिरादरी का हो) ऐसा नहीं बचना चाहिए, जिसके पास बैठ आपने
उनसे न्यूनतम 150 साल तक का तो (70 साल का उनका और 80 साल का उनके
पिता-दादा का आँखों देखा उनको बताया) आँखों देखा इतिहास उनकी जुबानी
कलमबद्ध ना किया हो|
17) मंडी-फंडी का पोषक है प्रतिक्रिया, यह बंद कर दी जाए; मंडी-फंडी विलुप्त हो जायेगा|
18) मंडी-फंडी के आगे बचाव और आक्रामक दोनों मुद्राओं से बचा जाए; इनके
अंदर दीमक की भांति घुसने की कोशिश की जाए; तभी इनसे अपने हक़ बचाये रखे जा
सकते हैं|
19) सहयोगी साथी को आर्थिक रूप से सबल करने में मदद की जाए| एक दूसरे के रोजगार-कारोबार को आगे बढ़वाया जाए|
20) आपका उद्देश्य आपकी और आपके लोगों की परचेजिंग पावर (purchasing
power) बढ़ाने और बढ़वाने का हो| देश-सरकार-सिस्टम के साधन-सांधनों-दान-चन्दे
के जरियों पर अपने सवैंधानिक आधिपत्य का हो| लोगों और जमात को काबू करने
मत दौड़ो, साधन-संसाधन-दान-चन्दे को सवैंधानिक तरीके से हासिल करने को दौड़ो|
जिनका इन पर कब्जा है, लोगों का वहीँ लगता मजमा है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक