बचपन में गाँव-शहर की गलियों में कुछ ऐसे असामाजिक तत्व घूमा करते थे, जो
अक्सर अच्छे घरों के बच्चों को बरगलाने-बिगाड़ने और जीवन के ट्रैक से उतारने
बाबत ऐसे-ऐसे कुतर्क दिया करते थे कि जैसे इनको यह बातें समाज में फैलाने
हेतु किसी ने सिखा-पठा के भेजा हो। जैसे कोई कैडर-बेस्ड वेस्टिड-इंटरेस्ट
संगठन के सदस्य हों। मुझे इनसे बड़ी चिड़ होती थी और इससे पहले इनकी बातें
कानों में पड़ें, या तो खुद इनसे दूर भाग जाता था या इनको भगा देता था।
इनकी कुछ लाईनें यह हुआ करती थी कि हस्तमैथुन अब नहीं करोगे तो कब करोगे? जो चीज भगवान ने जिस काम के लिए दी है उसको अब नहीं तो कब इस्तेमाल करोगे। वीर्य को जितना ज्यादा रोकोगे वो उतना परेशां करेगा (जबकि रोकने जैसा कुछ करना ही नहीं होता, बस इस मामले में सिर्फ रियेक्ट करने से बचना होता है)। जवानी में ही जवानी की चीजें नहीं करोगे तो क्या बुढापे में करोगे। दिल जो कहे वो करो, दिमाग पे ज्यादा जोर मत दो। आदि-आदि।
अब भी, आज भी ऐसे ट्रैंड-कबूतर गलियों में यौवन की दहलीज पर कदम रखने वाले नवयौवनों को इन चीजों में बहकाने हेतु घूमते हैं कि नहीं; यह तो मालूम नहीं। परन्तु युवा पीढ़ी इतना जरूर जान-समझ ले कि ऐसे लोग आपको जवान होने से पहले ही, परिपक़्व होने से पहले ही सामाजिक धारा रुपी पेड़ से कच्चे फल-रूप में ही तोड़ फेंकने के लिए छोड़े गए होते हैं।
और इनको ख़ास दिशानिर्देश होते हैं कि कैसे किन जनसमूहों-वर्गों के बच्चे टारगेट करने हैं।
जबकि सच्चाई इसकी उल्टी है। वीर्य का रक्षण व् संरक्षण ही आपकी सबसे बड़ी ताकत और पूँजी होती है। जिंदगी दिल की सुनने से नहीं, तार्किक दिमाग की सुन के कर्म करने से सँवरती है। वीर्य को जितना संचित करोगे, इसकी आंतरिक ज्वाला की भट्टी में जितने तपोगे; उतने सिद्ध पुरुष बनोगे, उतना सांसारिक सुख भोगोगे।
इस सन्दर्भ में कोई समस्या हो तो अपने माता-पिता या शिक्षक से जरूर पूछें, कोई संकोच ना करें। क्योंकि वह जो "जिसने की शर्म, उसके फूटे कर्म" वाली कहावत है, वह किसी और विषय नहीं अपितु इसी विषय के लिए बनी है। माता-पिता या शिक्षक के अलावा इस मामले में किसी अन्य पर यकीन करना रिस्की और तुक्के वाला काम है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इनकी कुछ लाईनें यह हुआ करती थी कि हस्तमैथुन अब नहीं करोगे तो कब करोगे? जो चीज भगवान ने जिस काम के लिए दी है उसको अब नहीं तो कब इस्तेमाल करोगे। वीर्य को जितना ज्यादा रोकोगे वो उतना परेशां करेगा (जबकि रोकने जैसा कुछ करना ही नहीं होता, बस इस मामले में सिर्फ रियेक्ट करने से बचना होता है)। जवानी में ही जवानी की चीजें नहीं करोगे तो क्या बुढापे में करोगे। दिल जो कहे वो करो, दिमाग पे ज्यादा जोर मत दो। आदि-आदि।
अब भी, आज भी ऐसे ट्रैंड-कबूतर गलियों में यौवन की दहलीज पर कदम रखने वाले नवयौवनों को इन चीजों में बहकाने हेतु घूमते हैं कि नहीं; यह तो मालूम नहीं। परन्तु युवा पीढ़ी इतना जरूर जान-समझ ले कि ऐसे लोग आपको जवान होने से पहले ही, परिपक़्व होने से पहले ही सामाजिक धारा रुपी पेड़ से कच्चे फल-रूप में ही तोड़ फेंकने के लिए छोड़े गए होते हैं।
और इनको ख़ास दिशानिर्देश होते हैं कि कैसे किन जनसमूहों-वर्गों के बच्चे टारगेट करने हैं।
जबकि सच्चाई इसकी उल्टी है। वीर्य का रक्षण व् संरक्षण ही आपकी सबसे बड़ी ताकत और पूँजी होती है। जिंदगी दिल की सुनने से नहीं, तार्किक दिमाग की सुन के कर्म करने से सँवरती है। वीर्य को जितना संचित करोगे, इसकी आंतरिक ज्वाला की भट्टी में जितने तपोगे; उतने सिद्ध पुरुष बनोगे, उतना सांसारिक सुख भोगोगे।
इस सन्दर्भ में कोई समस्या हो तो अपने माता-पिता या शिक्षक से जरूर पूछें, कोई संकोच ना करें। क्योंकि वह जो "जिसने की शर्म, उसके फूटे कर्म" वाली कहावत है, वह किसी और विषय नहीं अपितु इसी विषय के लिए बनी है। माता-पिता या शिक्षक के अलावा इस मामले में किसी अन्य पर यकीन करना रिस्की और तुक्के वाला काम है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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