विश्व में भारत (खासकर
उत्तर भारतीय) को छोड़ कहीं ऐसा नहीं देखा, जहां एक ही देश का ग्रामीण कल्चर
उसके शहरी कल्चर से भिन्न हो| कल्चर के मामले में वैश्विक पद्दति यह है कि
कल्चर गाँव से चलके शहर को आता है, फिर चाहे वो फ्रांस हो, इंग्लैंड हो,
कनाडा हो, जर्मनी हो, इटली-स्पेन-चीन-रूस-जापान हो, मिडिल-ईस्ट या कोई और
देश| शहर-गाँव का कल्चर एक होने का सबसे ख़ास फायदा यह होता है कि हर तरफ
अपनेपन की आत्मीयता बनी रहती है| जबकि कल्चर की स्थिति भारत जैसी हो तो शहरी कल्चर, ग्रामीण तबके को जोंक की भांति चूसता है, वल्चर की भांति नोचता है|
अंग्रेज जब भारत में रहे या मुग़ल रहे, इन लोगों ने मूल भारतीय यानि ग्रामीण कल्चर में सेंधमारी कभी नहीं की| इसकी मान-मान्यताओं में कभी छेड़खानी नहीं की; बल्कि इनके सरंक्षण और सुरक्षा हेतु "कस्टमरी लॉ" बना के दिए| यह इन पर इनके वहाँ के कल्चर में ग्रामीण कल्चर (जो कि इनके शहरी कल्चर की जननी होता है) के आदर और सम्मान के जज्बे की शिक्षा का परिणाम था|
व्यापार जगत में जब बिज़नस मैनेजमेंट पढाई जाती है तो उसमें कल्चर मैनेजमेंट का चैप्टर कहता है कि अगर आप एक कल्चर से दूसरे कल्चर में बिज़नस करने जाते हो, एक भाषा या लहजे से दूसरी भाषा या लहजे में बिज़नस करने जाते हो तो आपको सामने वाले कल्चर की मान-मान्यता-भाषा-लहजा का ना सिर्फ सम्मान करना होता है वरन सीखना भी पड़ता है| जबकि भारतीय परिवेश में यह सब गायब है, बल्कि एक तरफा है| ग्रामीण कल्चर को ही शहरी कल्चर सीखना पड़ता है और इसी को विकास और सिविलाइज़ेशन का नाम और दे दिया गया है| जबकि शहरी तो ग्रामीण का मान-सम्मान उसकी भाषा-मान्यता सीखने की जहमत ही नहीं उठाता| भारतीय शहरी जो करता है वह सिर्फ इतना कि ग्रामीण कल्चर की जानकारी इकठ्ठा करके, उसको आगे और तहस-नहस कैसे करना है; उस पर अपनी वल्चर प्रवृति को अग्रसर करना| सो एक हिसाब से देखा जाए तो भारतीय शहरों में ग्रमीण भारत के कल्चर के वल्चर पलते हैं|
यही शहरी कल्चर होता है जो खुद ग्रामीण कल्चर सीखने-समझने और उसके मुताबकि ग्रामीण से व्यहार करने की अपेक्षा "बोलना नहीं आने" की तोहमत से, उसको गंवार-जाहिल ठहरा के उसका आर्थिक दोहन व् सामाजिक शोषण करता है| भारत में कल्चर की इस उल्टी माया के फेर में किसान के साथ-साथ ग्रामीण मजदूर-कामगार वर्ग को भी पिसना पड़ता है|
इस हिसाब से देखा जाए तो भारत ही भारत को खा रहा है| इसको नुकसान पहुचनहाने के लिए तब तक बाहरी दुश्मनों की जरूरत नहीं, जब तक इसके यहां के शहरी और ग्रामीण कल्चर एक नहीं होते, एक-दूसरे को बराबर की इज्जत और तवज्जो नहीं देते|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
अंग्रेज जब भारत में रहे या मुग़ल रहे, इन लोगों ने मूल भारतीय यानि ग्रामीण कल्चर में सेंधमारी कभी नहीं की| इसकी मान-मान्यताओं में कभी छेड़खानी नहीं की; बल्कि इनके सरंक्षण और सुरक्षा हेतु "कस्टमरी लॉ" बना के दिए| यह इन पर इनके वहाँ के कल्चर में ग्रामीण कल्चर (जो कि इनके शहरी कल्चर की जननी होता है) के आदर और सम्मान के जज्बे की शिक्षा का परिणाम था|
व्यापार जगत में जब बिज़नस मैनेजमेंट पढाई जाती है तो उसमें कल्चर मैनेजमेंट का चैप्टर कहता है कि अगर आप एक कल्चर से दूसरे कल्चर में बिज़नस करने जाते हो, एक भाषा या लहजे से दूसरी भाषा या लहजे में बिज़नस करने जाते हो तो आपको सामने वाले कल्चर की मान-मान्यता-भाषा-लहजा का ना सिर्फ सम्मान करना होता है वरन सीखना भी पड़ता है| जबकि भारतीय परिवेश में यह सब गायब है, बल्कि एक तरफा है| ग्रामीण कल्चर को ही शहरी कल्चर सीखना पड़ता है और इसी को विकास और सिविलाइज़ेशन का नाम और दे दिया गया है| जबकि शहरी तो ग्रामीण का मान-सम्मान उसकी भाषा-मान्यता सीखने की जहमत ही नहीं उठाता| भारतीय शहरी जो करता है वह सिर्फ इतना कि ग्रामीण कल्चर की जानकारी इकठ्ठा करके, उसको आगे और तहस-नहस कैसे करना है; उस पर अपनी वल्चर प्रवृति को अग्रसर करना| सो एक हिसाब से देखा जाए तो भारतीय शहरों में ग्रमीण भारत के कल्चर के वल्चर पलते हैं|
यही शहरी कल्चर होता है जो खुद ग्रामीण कल्चर सीखने-समझने और उसके मुताबकि ग्रामीण से व्यहार करने की अपेक्षा "बोलना नहीं आने" की तोहमत से, उसको गंवार-जाहिल ठहरा के उसका आर्थिक दोहन व् सामाजिक शोषण करता है| भारत में कल्चर की इस उल्टी माया के फेर में किसान के साथ-साथ ग्रामीण मजदूर-कामगार वर्ग को भी पिसना पड़ता है|
इस हिसाब से देखा जाए तो भारत ही भारत को खा रहा है| इसको नुकसान पहुचनहाने के लिए तब तक बाहरी दुश्मनों की जरूरत नहीं, जब तक इसके यहां के शहरी और ग्रामीण कल्चर एक नहीं होते, एक-दूसरे को बराबर की इज्जत और तवज्जो नहीं देते|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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