Wednesday, 22 March 2017

क्या है 20 जनवरी 1934 को सीकर में शुरू हुए बीसवी शताब्दी के सबसे बड़े महायज्ञ का सच?

देशी और विदेशी इतिहासकारों ने लिखा है कि 20 जनवरी से 26 जनवरी तक चलने वाले इस यज्ञ के अंतिम दिन जाट यज्ञपति हुकमसिंह काे हाथी पर सवार कर जुलूस निकालना चाहते थे किंतु पूर्व रात्रि को ही सीकर ठिकाने ने इस उद्देश्य के लिए लाए गए हाथी को चुरा लिया। इससे जाट आक्रोशित हुए और उन्होंने हाथी की सवारी के बिना यहां से न हटने का फैसला कर लिया। 3 दिन तक भयंकर तनातनी और उत्तेजना का माहौल बना रहा। दीनबंधु छोटूराम ने जयपुर महाराजा के पास सूचना भिजवाई कि एक भी जाट के साथ अगर कुछ गलत घटित हो गया तो पूरे देश में ईंट से ईंट बजा दी जाएगी। जयपुर पुलिस के इंस्पेक्टर जनरल एफ. एस. यंग स्थिति का जायजा लेने के लिए स्वयं हवाई जहाज से सीकर आए और यज्ञ स्थल के ऊपर हवाई जहाज उड़ाया। स्थिति के विकराल रुप धारण करने के बाद अंततः सीकर ठिकाने को झुकना पड़ा और दसवें दिन इस शर्त पर जुलूस निकालने के लिए स्वयं सजा सजाया हाथी प्रदान कर दिया कि हाथी पर सवारी यज्ञपति हुकमसिंह नहीं बल्कि उनके स्थान पर यज्ञ के पुरोहित पंडित खेमराज शर्मा करेंगे किन्तु जुलूस के समय जाटों ने पंडित खेमराज शर्मा के साथ सरदार हरलाल सिंह (झुंझुनू के प्रसिद्ध जाट नेता) के पुत्र नरेंद्र को हाथी पर बैठा दिया।

वास्तव में यह यज्ञ 7 दिन तक ही चला था और हाथी चुराने की घटना यज्ञ की पहली रात्रि को ही हो गई थी, जिसका प्रमाण मैं इस पोस्ट के कमेंट बॉक्स में समकालीन समाचार पत्रों की कतरन के रूप में दे रहा हूं। 7 दिन तक चले इस यज्ञ में लगभग 3 लाख लोगों ने भाग लिया और अंतिम दिन के जुलूस में 1 लाख इकट्ठा हुए।
क्यों किया गया यह यज्ञ - आर्थिक और सामाजिक रुप से प्रताड़ित यहां के किसान (जो मुख्य रूप से जाट थे) संगठित होना चाहते थे किंतु राजनीतिक और आर्थिक समस्या के समाधान के लिए सीकर ठिकाना उनको एकत्रित होने की अनुमति नहीं दे सकता था। इसलिए उन्होंने धर्म का सहारा लेकर जातिगत यज्ञ करने का निर्णय लिया। धार्मिक मामला होने के कारण सीकर ठिकाना किसानों को संगठित होने से रोक नहीं पाया। यज्ञ के दौरान लाखों लोगों के इकट्ठा होने से किसान स्वयं को संगठित करने का सपना साकार करने में सफल रहे।-------
इतिहासकार अरविंद भास्कर की शानदार पोस्ट।


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