कई भाईयों के मैसेज आये कि जब इन्होनें पहले 'क्यूट जाटणी' निकाला और बाद
में "लाल बाह्मणी' निकला तो हम ही क्यों शांति की पहल करें? कई तो यह तक
बोले कि यही तो हैं पूरे हरयाणा में 35 बनाम 1 व् जाट बनाम नॉन-जाट खड़ा
करने के मूल में|
आप सब भाईयों से यही अनुरोध है कि इस बात को समझा जाए कि किसी भी देश-सभ्यता-समाज-जाति के अस्तित्व का मूल उनकी स्त्रियों का सम्मान है, स्त्री की आबरू है| माना मासूम शर्मा ने 'क्यूट जाटणी' निकाल के इसकी अवहेलना करी| दुर्भाग्यवश कहो या संयोगवश कहो उधर से किसी जाट गायक ने 'लाल बाह्मणी' निकाल दिया| परन्तु यह बहस अब एक उस लेवल तक पहुंचने वाली थी जो 35 बनाम 1 वाले मामले से भी भयंकर रूप ले सकती थी| माना आप ताकत और संख्या में भी बड़े हो परन्तु समाज ताकत और संख्या से पहले सभ्यता और मर्यादा से चलते हैं| और जाट जीन्स का गहना ही औरत की मर्यादा और सभ्यता निभाना रहा है| जाट वो नहीं जो दलित-ओबीसी लाचार की बहु-बेटी को देवदासी बना के सार्वजनिक में उसका बलात्कार करें और उसमे आनंद लेवे; यह जाट का चरित्र नहीं|
और शांति व् सुलह करने की पहल करने से मैं कायर नहीं हो जाता, इससे यह बात नहीं मिट जाती कि ब्राह्मण ने सम्पूर्ण भारत में किसी को 'जी' लगा के बोला व् लिखा है तो सिर्फ जाट को "जाट जी" व् "जाट देवता" बोला है; जो कि उसने किसी भी अन्य, यहां तक कि सवर्ण क्लास जैसे कि बनिया-अरोड़ा/खत्री-राजपूत इत्यादि को भी नहीं बोला| तो ओहदे के हिसाब से जब खुद ब्राह्मण ने जाट को उससे बड़ा लिख दिया तो दब्बूपने की तो इसमें बात ही नहीं रहती, यकीन मानिये उस ओहदे से मैंने कोई छड़ेछाड़ नहीं की है|
अत: इस समझौता कहो या सुलह की पहल में अपने देवताई रूप को देखो, कायरता या दब्बूपने को नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
आप सब भाईयों से यही अनुरोध है कि इस बात को समझा जाए कि किसी भी देश-सभ्यता-समाज-जाति के अस्तित्व का मूल उनकी स्त्रियों का सम्मान है, स्त्री की आबरू है| माना मासूम शर्मा ने 'क्यूट जाटणी' निकाल के इसकी अवहेलना करी| दुर्भाग्यवश कहो या संयोगवश कहो उधर से किसी जाट गायक ने 'लाल बाह्मणी' निकाल दिया| परन्तु यह बहस अब एक उस लेवल तक पहुंचने वाली थी जो 35 बनाम 1 वाले मामले से भी भयंकर रूप ले सकती थी| माना आप ताकत और संख्या में भी बड़े हो परन्तु समाज ताकत और संख्या से पहले सभ्यता और मर्यादा से चलते हैं| और जाट जीन्स का गहना ही औरत की मर्यादा और सभ्यता निभाना रहा है| जाट वो नहीं जो दलित-ओबीसी लाचार की बहु-बेटी को देवदासी बना के सार्वजनिक में उसका बलात्कार करें और उसमे आनंद लेवे; यह जाट का चरित्र नहीं|
और शांति व् सुलह करने की पहल करने से मैं कायर नहीं हो जाता, इससे यह बात नहीं मिट जाती कि ब्राह्मण ने सम्पूर्ण भारत में किसी को 'जी' लगा के बोला व् लिखा है तो सिर्फ जाट को "जाट जी" व् "जाट देवता" बोला है; जो कि उसने किसी भी अन्य, यहां तक कि सवर्ण क्लास जैसे कि बनिया-अरोड़ा/खत्री-राजपूत इत्यादि को भी नहीं बोला| तो ओहदे के हिसाब से जब खुद ब्राह्मण ने जाट को उससे बड़ा लिख दिया तो दब्बूपने की तो इसमें बात ही नहीं रहती, यकीन मानिये उस ओहदे से मैंने कोई छड़ेछाड़ नहीं की है|
अत: इस समझौता कहो या सुलह की पहल में अपने देवताई रूप को देखो, कायरता या दब्बूपने को नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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