Friday, 10 March 2017

पहले दालें, फिर गेहूं और अब चीनी, भारत जितने इतने आयात-पे-आयात फ्रांस में हो जाएँ तो किसान शॉपिंग मॉल्स में पशु बाँध दें!

सार: विकसित देशों के किसान से सीखना होगा भारत के किसान को!

विगत साल फ्रांस में जर्मनी-पॉलैंड की तरफ से बेहताशा सब्जियां आयात करने से फ्रांस के किसान की सब्जियां सड़ने लग गई थी| तो ऐसे में फ्रांस के किसान ने अपना क्रोध जाहिर करने हेतु, स्ट्रॉसबर्ग शहर के शॉपिंग मॉल्स में गायें भर दी थी और पॉलैंड-जर्मनी से आने वाले रोड्स को जाम कर दिया था| उनका फ्रांस की सरकार और व्यापार जगत को साफ़ सन्देश था कि अगर तुम अपने ही किसान को मार्किट में नहीं रहने दोगे तो हम भी तुम्हारे शॉपिंग मॉल्स में पशु बाँध देंगे| तब जा के फ्रांस सरकार जागी और जर्मनी-पॉलैंड की तरफ से सब्जियों का आयात कुछ का बिलकुल बन्द किया और कुछ का लिमिट किया|

वैसे तो इंडिया में आज हालात यह हो रखे हैं कि जैसे ही भारत का किसान शॉपिंग मॉल्स में गाय-भैंस बाँधने चलेगा, भांड मीडिया सरकार और व्यापारियों से भी पहले उसको किसान की दबंगई, गुंडागर्दी कह के बड़बड़ाने लगेगा| और उसमें जातिवाद का तड़का लगा देगा वो अलग से| कि मान लो किसान हरयाणा का हुआ तो किसान नहीं बोलेंगे, बल्कि बोलेंगे कि अड़ियल जाटों का व्यापारियों के शॉपिंग मॉल्स पर कब्ज़ा, गुजरात में बोलेंगे कि दबंग पटेलों का व्यापारियों पर हमला आदि-आदि|

लेकिन सच तो यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय किसान की कमर तोड़ने के तमाम रास्ते अपनाये हुए हैं| खुद के देश में कोई फसल ना होती हो तो बात समझ आती है, या देश का किसान वह फसल उगाने में सक्षम नहीं हो तब भी समझ आती है; परन्तु हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी की बेल्ट का किसान तो वो किसान है जिसने हर प्रकार की फसल उगाकर देश को दो-दो हरित क्रांतियां दी हैं| इसके बावजूद भी मोदी सरकार कभी नाइजीरिया जैसे देश को दालें उगाने के लिए करोड़ों की सब्सिडी देती है, तो कभी देश के गादामों में बेपनाह गेहूं सड़ता हुआ होने के बावजूद भी गेहूं आयात कर रही है और अब तो और भी घातक कदम आ रहा है चीनी आयात का|

भाजपा वाले जिन कांग्रेस्सियों पर 70 साल देश को लूटने का इल्जाम लगाते हैं वो कांग्रेस ऐसा करती तो एक दो पल को बात कोई सुनता भी, परन्तु "भारत माता की जय" बोलने वालों का यह कैसा स्वाभिमान कि चाहिए तो देश के किसान की पैदावार को पहले से भी ज्यादा बाहर मार्किट में उतारे और यह लोग तो आयात पे आयात करके उल्टे अपने ही देश के किसान को मार रहे हैं?

निसन्देह यह जो जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े खड़े किये गए हैं यह इनके इन्हीं अपने ही किसानों के पीठ में छुरा घोंपने के मनसूबों को पार लगाने हेतु तो किये गए हैं| कि अच्छा है जो कौम किसानी हक सबसे मजबूती से लड़ सकती है उसको जाट बनाम नॉन-जाट में उतार दो; बाकी तो किसान चाहे राजपूत हो, यादव हो, गुज्जर हो, सैनी हो, कम्बोज हो यहां तक कि ब्राह्मण किसान भी हो तो भी इनमें से कोई नहीं चुस्कने वाला|

ऐसे में देश के किसान के आगे दो ही सूरत बचती हैं, या तो इस जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े के खत्म होने की बाट जोहता रहे या फिर इन चीजों को समझ के फ्रांस वाले किसानों की भांति जा बांधे दिल्ली-एनसीआर के शॉपिंग मॉल्स में अपने डंगर-ढोर|

परन्तु इसके सफल होने में भी सन्देह, क्योंकि इंडिया के नेता-व्यापारी तो छोडो मीडिया तक किसान को ले के इतना संवेदनहीन है कि नेता-व्यापारी से पहले यही लोग किसान को ही दोषी ठहरवा देंगे| कुछ पल तो ऐसा लगता है कि भारत को उस वाली फ़्रांसिसी क्रांति की सख्त जरूरत है, जिसने धर्म को तो गलियों से खदेड़ के चर्चों में बन्द करके बिठा दिया था और उद्योगों को किसानों के प्रति संवेदशील रहना सीखा दिया था|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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