Wednesday, 15 March 2017

जब रंग-नश्ल भेद, छूत-अछूत जातीय आधार की अपेक्षा वर्ण आधार पर होता है तो फिर कौनसे जातीय अभिमान से ऊपर उठने की बात की जाती है?


जाति नश्लभेद का आधार नहीं है, अपितु वर्ण है| क्या एक दलित जाति वाले चमार को दूसरी दलित जाति वाले धानक से रंग-नश्ल भेद पर नफरत करते देखा है? क्या एक यादव को एक गुज्जर से रंग-नश्ल भेद पर नफरत करते देखा है? क्या एक गौड़ ब्राह्मण को एक मराठी ब्राह्मण से रंग-नश्ल भेद पर नफरत करते देखा है? क्या एक सिसोदिया राजपूत को कुशवाहा राजपूत से रंग-नश्ल भेद पर नफरत करते देखा है? क्या एक अग्रवाल बनिये को गर्ग बनिये से रंग-नश्ल भेद पर नफरत करते देखा है? क्या पांचवें वर्ण कहे जाने वाले जाटों में देशवाली जाट व् बागड़ी जाट में रंग-नश्ल भेद पर नफरत करते देखा है?

लेकिन वर्ण आधार पर देखा है| ब्राह्मण के लिए दलित अछूत है तो व्यापारी के लिए किसान निम्न है| तो खत्म करने हैं तो वर्ण खत्म करो, जाति नहीं| जाति तो इंसान का डीएनए बताती है, उसका इतिहास बताती है, उसकी पहचान बताती है| नहीं बताती हो तो बता दो? क्या कभी सुना है व्यापारी वर्ण का इतिहास, दलित वर्ण का इतिहास या क्षत्रिय वर्ण का इतिहास? लेकिन राजपूत जाति का इतिहास, जाट जाति का इतिहास, बनिया जाति का इतिहास, ब्राह्मण जाति का इतिहास, चमार जाति का इतिहास आदि-आदि खूब सुनते हैं|

इसलिए इन जातीय अभिमान या स्वाभिमान से ऊपर उठने वालों को बोलो कि ऊपर उठना है तो वर्ण अभिमान या स्वाभिमान से उठो| जातियों में कोई लोचा नहीं है, इनमें सब ठीक है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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