Sunday, 5 March 2017

अपनी पहचान व् इतिहास को लेकर सबसे कन्फ्यूज्ड जाट वो हैं!

जो वैसे तो फण्डियों-पाखंडियों को इस बात के लिए गालियां देंगे कि उन्होंने जाटों को कहीं शुद्र तो कहीं चांडाल तो कहीं लुटेरा क्यों कहा/लिखा? हिन्दू चच/दाहिर के राज में उनकी पहचान कुत्तों को सुंघा कर क्यों करवाई जाती थी आदि जैसी बातें सच हैं भी कि नहीं? अभी हाल ही में जो जाट बनाम नॉन-जाट चल रहा है यह जाट बनाम नॉन-जाट ही क्यों हुआ, किसी और जाति बनाम अन्य-तमाम क्यों नहीं हुआ?

और दूसरी तरफ यही नादाँ जाट, जाट को शुद्र-चांडाल-लुटेरे लिखने-कहने वालों के लिखे इतिहास में बिना-सोचे समझे गर्व की अनुभूति सी दिखाते हुए ना सिर्फ अपना इतिहास ढूंढने लग जाते हैं, बल्कि गर्व से साझा भी करने चल पड़ते हैं| खासकर माइथोलॉजी की पुस्तकों पर तो ऐसे रीझ के पड़ते हैं कि जैसे पता नहीं यही अंतिम वाक्य हैं इनकी पहचान के|

ऐसे कन्फ्यूज्ड जाटों को समझाओ वो इस नादानी से बचें| इतिहास में जो भी लिखा है उसको साइकोलॉजी, सोशियोलॉजी व् आइडियोलॉजी पर जरूर तोलें| वास्तविकता तो यह है कि अरब-सिथियन-यूरोपियन-चाइनीज इतिहास को पढ़े बिना जाट इतिहास पूरा होता ही नहीं| तो फिर अकेले इनकी मैथोलोजिकल पुस्तकों से जाट इतिहास कैसे सम्पूर्ण हो जायेगा?

विशेष: कोई जाट लेखक भी है तो उसके लिखे को भी साइकोलॉजी, सोशियोलॉजी व् आइडियोलॉजी पर जरूर तोलें| दूसरी बात किसी भी लेखक की लिखी पुस्तक पर कितनी विवेचना व् चिंतन हुई है, यह बात भी उस पुस्तक की व् लेखक की सार्थकता को मापने का पैमाना रहती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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