Sunday, 5 March 2017

ओबीसी व् दलित भाईयो प्रैक्टिकल कारण समझो कि यह जाट बनाम नॉन-जाट ही क्यों हुआ?

पुजारी और फेरे, भारत की जाट बेल्ट्स को छोड़कर इन दोनों धंधों में ब्राह्मण का 100% मोनोपोली रहा है| जाट बेल्ट्स में जाट ने ढंग से ना सही परन्तु फिर भी इस मोनोपोली को तोड़ा है| आर्यसमाजी पध्दति से फेरे करवाना हो या ढेरों-मन्दिरों में पुजारी-महंत बनना; जाटों ने इस मोनोपली को तोड़ा है| इन धंधों से होने वाली आमदनी को ब्राह्मण से अपने लिए बंटवाया है|

और यही वो वजह है कि क्यों यह जाट बनाम नॉन-जाट ही बनाया गया, किसी और जाति बनाम सब अन्य क्यों नहीं उछाला गया| और यह बावजूद इसके है कि जाटों ने जिस भी ब्राह्मण ने उनको उचित सम्मान दिया है उसको प्रसिद्धि की प्रकाष्ठा तक ऊपर उठाया है, उदाहरणत: महर्षि दयानंद उर्फ़ मूलशंकर तिवारी|

इसीलिए दलित व् ओबीसी इस जाट बनाम नॉन-जाट के बहकावे में आने से पहले जरूर सोचें कि कहीं ना कहीं उनके यह कदम इनकी मोनोपोली को वापिस बहाल करवाने में ही मदद कर रहे हैं; कृपया ऐसी नादानी ना करें| जाटों से कोई मनमुटाव है तो सीधा बैठ के बात कर लें, बजाये इनके हाथों कठपुतली बनने के| जाट वो है जिसने फसल खलिहान में आते ही दलित-ओबीसी का हिस्सा पहले दिया है और बाद में अनाज अपने घर ले के गया है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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