Sunday, 16 April 2017

किसी समाज-कल्चर-तंत्र में रिश्वतखोरी-भ्र्ष्टाचार की जड़ें पकड़नी हैं तो उसकी धार्मिक व्यवस्था में झांको!

क्योंकि धर्म से ही संस्कार पड़ते हैं, धर्म से ही मूल्य-मान्यता-मति बनती है| माँ-बाप व् गुरु के बाद जिस चीज का इंसान के अंत:कर्ण व् गलत-सही निर्धारित करने की सोच पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है तो वह धर्म है| और क्योंकि माता-पिता व् गुरु भी अधिकतर (खासकर बचपन के वक्त) उसी धर्म के होते हैं, जिसमें वह पैदा हुआ होता/होती है, तो ऐसे में यह जाँच-परख अति लाजिमी हो जाती है|

और धर्म-पंथ ही हर बुराई व् अच्छाई की जड़, उसका स्त्रोत होता है| इसलिए लाजिमी है कि अगर उस समाज-कल्चर-तंत्र में फैले भ्र्ष्टाचार व् रिश्वतखोरी की जड़ें समझनी हैं तो उसके धर्म का ढांचा-व्यवस्था जरूर समझी-परखी-जांची जाए|

1) देखा जाए कि धर्म का दर उस धर्म के लोगों का बराबर से सत्कार करता है या नहीं? रंग-नश्ल-वर्ण इत्यादि के आधार पर भेदभाव तो नहीं करता? धर्म-पदों पर एक वर्ग-वर्ण विशेष का ही तो बाहुल्य नहीं है? क्योंकि आपकी नौकरी के इंटरव्यू के वक्त, उसमें प्रमोशन के वक्त, स्कूल-कालेज में दाखिले के वक्त; ऐसे धर्म का इंसान भाईभतीजावाद-पक्षपात करेगा और इस पक्षपात पे खुद को सांत्वना या सही ठहराने या मानने हेतु, अपने धर्म की इस भेदभाव वाली रिफरेन्स दे के सही करार ठहरा लेगा| और ऐसा करने को पाप नहीं मानेगा|

2) देखा जाए कि धर्म के नाम पर दिया दान, कहीं धर्म में ही तोड़फोड़, वाद-विवाद खड़े करवाने हेतु तो प्रयोग नहीं हो रहा है? क्योंकि इससे फिर उसको व्यापारिक टेंडर्स आवंटित करते वक्त, राजनीति में नस्लीय-जातीय वर्गीकरण करते वक्त; यही वाद-विवाद खड़े करने में निपुणता और रिफरेन्स धर्म के दर से आएगी|

3) देखें कि धर्म के दर पर दर्शन हेतु विशेष पंक्तियाँ तो नहीं बनी हैं? जैसे कि 100 रूपये चढ़ाने वालों की सामान्य पंक्ति अलग, 500 चढ़ाने वालों की वीआईपी पंक्ति अलग व् 1000 या इससे ऊपर चढ़ाने वालों की वीवीआईप विशेष डायरेक्ट दर्शन वाली पंक्ति अलग| क्योंकि अगर आप इस सिस्टम से होकर आते हैं तो फिर अपने कार्यस्थल पर भी वीआईपी कल्चर को बढ़ावा देंगे, रिश्वत लेने को अपना धर्म मानेंगे|

4) देखा जाए कि धर्म के नाम पर दान दिया गया पैसा, मुसीबत के वक्त समाज-कल्चर के कितना काम आता है या समाज के कल्चर के विभिन्न आयामों को प्रमोट करने में बराबर के अनुपात से प्रयोग होता है या नहीं? क्योंकि यदि ऐसा क्रॉसचेक नहीं हो रहा है तो आपमें चोरी के अवगुण और जवाबदेही से बचने की बीमारी दोनों प्रवेश कर रही हैं|

और भी ऐसे ही कई पैमाने हैं, जिनको देखने-सुनने-बरतने से विश्वास ना आवे तो उस धर्म में सुधार के लिए आवाज बुलंद कीजिये| यह इसलिए कीजिये क्योंकि आपको मानवता का भला करने वाला इंसान बनना है ना कि धर्म के नाम पर धूर्त व् गुंडे अपने सर पे बैठाने हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: