जिस कूटनीतिक तरीके से मोर्चेबंदी चल रही है ऐसे हालातों में अकेले आरक्षण
के मुद्दे पर डटे रहने से जाट-समाज को आगे की राह नहीं मिलने वाली| आगे की
राह मिलेगी किसानी मुद्दों को उठाने से जिसके लिए शायद अहीर-गुज्जर-मीणा
व् अन्य किसानी जातियाँ भी जाटों की बाट जोह रही हैं कि कब जाट इस आरक्षण
के मुद्दे से निबटें (या इसके समानांतर किसानी मुद्दे भी उठावें) और कब
किसानों के मुद्दों को लेकर एकजुट हो किसानी-युग की वापसी करवाई जाए|
हालाँकि अहीर-गुज्जर-मीणा व् अन्य किसानी जातियों की तरफ से फ़िलहाल ऐसा कोई
संकेत भी नहीं आया है कि वो किसानी मुद्दों पर लड़ने को तैयार हैं| परन्तु
इसकी संभावना ज्यादा है कि यह जातियां जाटों द्वारा किसानी मुद्दों पर आगे
बढ़ने की इशारा मिलने वाली भाषा का इंतज़ार कर रही हों|
यह तो तय है कि चाहे कोई जाटों से कितना ही चिढ़ता रहे और कोई कितना ही कुछ कह ले; परन्तु उत्तरी भारत में किसानी मुद्दों पर जब जब कोई क्रांति या आवाज उठी; जाट सर्वदा से उसका अग्रमुख रहे हैं| कोई भी किसी अन्य किसान जाति का नेता अपने झूठे अहम् की तृप्ति हेतु कितना ही जाटों से किसान जातियों को तोड़ने के प्रयास कर ले, परन्तु किसान का हित जिस दिन चाहेगा; बिना जाट सोच ही नहीं पायेगा| और यह बात जाट के अलावा अन्य किसान जातियों को भी सोचनी होगी कि अपने जातिगत नेताओं के झूठे दम्भ पालने हेतु अपने किसानी हक यूँ ही बलि चढ़ाते रहोगे या इन नेताओं को यह भी कहोगे कि अगर किसान के भले की बात करके, सब किसान जातियों को साथ नहीं उठाते हो तो घर बैठो; कौम की आर्थिक बदहाली की कीमत पर तुम्हें और कितना पालें?
दूसरी बात, बीजेपी जाटों को आरक्षण देगी तो 2019 के चुनावों के आसपास देगी, वो भी इलेक्शन से 2-3 महीने पहले और 2-3 महीने बाद तक| और फिर वही स्टेटस-कवो मेन्टेन कर दिया जायेगा जाट-आरक्षण का जो आज है|
मेरा मानना है कि जाटों को अब वर्तमान व्यवस्था के तहत आरक्षण मांगने की अपनी रणनीति में दोहरा बदलाव लाना होगा| फ़िलहाल जो आरक्षण मिल रहा है वो लेने की मुहीम के साथ-साथ, इसके समानांतर "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी!" की तर्ज पर अन्य समाजों-वर्गों के साथ 100% आरक्षण की मांग का नया मोर्चा अभी से खड़ा करना शुरू करना होगा| या कम-से-कम नीचे-नीच उसकी नींव रखनी शुरू करनी होगी, ताकि जाट बनाम नॉन-जाट रचने वालों को इस मुद्दे पर तमाम 100% आरक्षण चाहने वाले वर्गों को एकजुट कर जवाब दिया जा सके|
आरक्षण को 100 % वाली लाइन पर लाना ही होगा और अन्य किसानी जातियों के साथ किसान मुद्दों पर जुड़ना शुरू करना होगा; वर्ना अनाचारी व् किसान कौम के दुश्मन लोगों ने आरक्षण के नाम पर जाट कौम में ही कुछ ऐसे गुर्गे फिट कर रखे हैं जो आपको जाट-जाट में उलझाए रखेंगे| यह गुर्गे चंदे का हिसाब भी नहीं दे रहे और हिसाब मांगने पर त्योड़ी चढ़ा रहे हैं और घुर्रा भी रहे हैं| इनको आदेश है कि ना खुद दूसरे मुद्दे उठाएंगे और ना आपको उन मुद्दों को उठाने की ध्यान आने देंगे, जिससे जाट अन्य समाजों से तो जुड़ेगा ही; साथ ही जाट बनाम नॉन-जाट के मुद्दे को भी गौण करने में मदद करेगा|
और यही आरएसएस और बीजेपी चाहती है कि यह जाट-जाट का अलाप 2019 के चुनाव तक भी कायम रहे ताकि दूसरे समाज खुद भी इनसे डरते रहें और रहे-सही मीडिया मैनेजमेंट के माध्यम से डराए जाते रहें; और ऐसे जाट के अलावा सबके वोट अपनी झोली में ले 2019 की सरकार फिर से परवान चढ़वा ली जाए|
हरयाणा में किसान राजनीति का दम भरने वाली राजनैतिक पार्टियों को भी यह समझना होगा कि राजनैतिक पार्टी के उठाने से मुद्दे आमजन के नहीं बना करते| लेकिन अगर राजनैतिक पार्टियां अपने कैडर को जनता का रूप दे, जनता के बीच उतार और जनता के गैर-राजनैतिक संगठनों की पीठ थपथपा किसानी मुद्दों को उठवावें और फिर उस माहौल में खुद उनकी आवाज बनें तो रास्ता सरल होगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
यह तो तय है कि चाहे कोई जाटों से कितना ही चिढ़ता रहे और कोई कितना ही कुछ कह ले; परन्तु उत्तरी भारत में किसानी मुद्दों पर जब जब कोई क्रांति या आवाज उठी; जाट सर्वदा से उसका अग्रमुख रहे हैं| कोई भी किसी अन्य किसान जाति का नेता अपने झूठे अहम् की तृप्ति हेतु कितना ही जाटों से किसान जातियों को तोड़ने के प्रयास कर ले, परन्तु किसान का हित जिस दिन चाहेगा; बिना जाट सोच ही नहीं पायेगा| और यह बात जाट के अलावा अन्य किसान जातियों को भी सोचनी होगी कि अपने जातिगत नेताओं के झूठे दम्भ पालने हेतु अपने किसानी हक यूँ ही बलि चढ़ाते रहोगे या इन नेताओं को यह भी कहोगे कि अगर किसान के भले की बात करके, सब किसान जातियों को साथ नहीं उठाते हो तो घर बैठो; कौम की आर्थिक बदहाली की कीमत पर तुम्हें और कितना पालें?
दूसरी बात, बीजेपी जाटों को आरक्षण देगी तो 2019 के चुनावों के आसपास देगी, वो भी इलेक्शन से 2-3 महीने पहले और 2-3 महीने बाद तक| और फिर वही स्टेटस-कवो मेन्टेन कर दिया जायेगा जाट-आरक्षण का जो आज है|
मेरा मानना है कि जाटों को अब वर्तमान व्यवस्था के तहत आरक्षण मांगने की अपनी रणनीति में दोहरा बदलाव लाना होगा| फ़िलहाल जो आरक्षण मिल रहा है वो लेने की मुहीम के साथ-साथ, इसके समानांतर "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी!" की तर्ज पर अन्य समाजों-वर्गों के साथ 100% आरक्षण की मांग का नया मोर्चा अभी से खड़ा करना शुरू करना होगा| या कम-से-कम नीचे-नीच उसकी नींव रखनी शुरू करनी होगी, ताकि जाट बनाम नॉन-जाट रचने वालों को इस मुद्दे पर तमाम 100% आरक्षण चाहने वाले वर्गों को एकजुट कर जवाब दिया जा सके|
आरक्षण को 100 % वाली लाइन पर लाना ही होगा और अन्य किसानी जातियों के साथ किसान मुद्दों पर जुड़ना शुरू करना होगा; वर्ना अनाचारी व् किसान कौम के दुश्मन लोगों ने आरक्षण के नाम पर जाट कौम में ही कुछ ऐसे गुर्गे फिट कर रखे हैं जो आपको जाट-जाट में उलझाए रखेंगे| यह गुर्गे चंदे का हिसाब भी नहीं दे रहे और हिसाब मांगने पर त्योड़ी चढ़ा रहे हैं और घुर्रा भी रहे हैं| इनको आदेश है कि ना खुद दूसरे मुद्दे उठाएंगे और ना आपको उन मुद्दों को उठाने की ध्यान आने देंगे, जिससे जाट अन्य समाजों से तो जुड़ेगा ही; साथ ही जाट बनाम नॉन-जाट के मुद्दे को भी गौण करने में मदद करेगा|
और यही आरएसएस और बीजेपी चाहती है कि यह जाट-जाट का अलाप 2019 के चुनाव तक भी कायम रहे ताकि दूसरे समाज खुद भी इनसे डरते रहें और रहे-सही मीडिया मैनेजमेंट के माध्यम से डराए जाते रहें; और ऐसे जाट के अलावा सबके वोट अपनी झोली में ले 2019 की सरकार फिर से परवान चढ़वा ली जाए|
हरयाणा में किसान राजनीति का दम भरने वाली राजनैतिक पार्टियों को भी यह समझना होगा कि राजनैतिक पार्टी के उठाने से मुद्दे आमजन के नहीं बना करते| लेकिन अगर राजनैतिक पार्टियां अपने कैडर को जनता का रूप दे, जनता के बीच उतार और जनता के गैर-राजनैतिक संगठनों की पीठ थपथपा किसानी मुद्दों को उठवावें और फिर उस माहौल में खुद उनकी आवाज बनें तो रास्ता सरल होगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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