Saturday, 13 May 2017

यह कैसे भूमंडल के विजेता हैं जो भारत से बाहर राम-कृष्ण-परशुराम का नाम लेने से भी हिचकिचाते हैं?

मोदी ने लंदन में अपने अभिभाषण में भारत को "राम या कृष्ण" की बजाये "बुद्ध" का देश बोला, मैंने उसको अ ब स द वजहें दे के स्वीकार कर लिया; परन्तु श्रीलंका में भी भारत को "बुद्ध" का ही देश बोला, क्यों भाई "राम का देश" बोलने में रावण से डर लगा क्या? रावण का डर था तो कृष्ण का बोल देते, परन्तु यह क्या जहाँ जाते हैं "बुद्ध" का देश? जबकि घर में बुद्ध को मानने वालों को आरएसएस अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताती है?

सीख लो लोगो इनसे कुछ कि दुश्मन का नाम ले के भी कैसे पब्लिसिटी की रोटियां सेंकी जा सकती हैं| कैसे दुश्मन की खूबी को अपने फायदे के लिए बेचा जाता है| दुश्मन से साम्प्रदायिक दुश्मनी निभाते हैं, परन्तु जहां दुश्मन की रेपुटेशन से आर्थिक या रेप्युटेशनल लाभ दिखे तो उसी दुश्मन को अपना बताने से परहेज नहीं करते| आखिरकार यही यथार्थ है आर्थिक लाभ व् रेपुटेशन का|

परन्तु मुझे अफ़सोस तो यह है कि हजारों वर्ष पुराने राम-कृष्ण को यह इतना भी बड़ा नहीं मानते कि यह बुद्ध की जगह उनका नाम ले के यही आर्थिक लाभ व् रेपुटेशन कमा सकें? क्या इनके नाम आगे ना करना इनकी हीन भावना तो नहीं? यह कैसे भूमंडल के विजेता होने के दावे करते रहते हैं इतिहास में, जबकि यह राम-कृष्ण या परशुराम का नाम भारत से बाहर लेने से भी हिचकिचाते हैं?

वैसे "बुद्ध" के अलावा भारत को किसी दूसरे अन्य व्यक्ति का देश कहने की मोदी हिम्मत कर पाए हैं तो वह हैं मुरसान रियासत के जाट नरेश राजा महेंद्र प्रताप जी| जब मोदी अफ़ग़ानिस्तान संसद का उद्घाटन करने गए थे तो राजा जी का नाम बड़े गर्व से लिए थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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