आईये समझें कैसे?
मुलायम सिंह यादव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ना सिर्फ अपना राजनैतिक गुरु मानते हैं अपितु खुद को चौधरी साहब का उत्तराधिकारी भी बताते हैं|
परन्तु चौधरी साहब के दिए राजनैतिक मूलमंत्र मजगर यानी म-अजगर + दलित + पिछड़ा ( मजगर यानी मुस्लिम-अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत व् दलित) से इन्होनें आते ही ज को अलग करने की राजनीति खेली| और इसकी शुरुवात इन्होनें रक्षामंत्री रहते हुए "जाट-रेजिमेण्ट के कैडर में छेड़छाड़ करके कर दी थी| 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे तो अपने ही गुरु के मूलमंत्र वाले मजगर से म व् ज को फाड़ने की इन्होनें "अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मारने वाली" प्रकाष्ठा ही कर दी थी|
भले ही बीजेपी ने यह लालच दे के यह दंगा करवाया था कि इससे जो धुर्वीकरण होगा उसका मुस्लिम वोट तुम ले लेना और हिन्दू वोट हम ले लेंगे| और हो गई इनके साथ "ना माया मिली ना राम वाली"| बीजेपी तो ऐसा काला कोयला है कि जिसके साथ दलाली में हाथ काले होवें ही होवें; हरयाणा में इनेलो और ताऊ देवीलाल व् चौधरी बंसीलाल के साथ क्या-क्या करती आई है बीजेपी उससे भी रिफरेन्स नहीं ली|
इनेलो वालो सावधान पब्लिकली ना सही, परन्तु अंदर खाते बीजेपी से क्या गलबहियाँ पा के चल रहे हो; हमको सब खबर है| अब भी दूर हट जाओ इनसे, वरना यह तुमको "कुत्ते को मार, बंजारा जैसे रोया था" उस तरिके से रोने लायक भी नहीं छोड़ेंगे| याद रखना, 1999-2004 वाली सरकार में इनेलों ने जो बीजेपी की वाट लगाई थी, उसको भूले नहीं हैं यह लोग; मौका मिलते ही गच्चा खा जाने वाला झटका देंगे, सो इनसे जरा सम्भल के|
खैर, आगे बढ़ते हैं| मुज़फ्फरनगर दंगे वाले झांसे में पड़ने से पहले अगर मुलायम की जगह लालू यादव होते तो जैसे बिहार में रथयात्रा के दौरान अडवाणी को जेल में डाल दिए थे, ऐसे बीजेपी के इस ऑफर को ठंडे बस्ते में डाल देते और मुज़फ्फरनगर में लालू यादव चिड़िया को भी पर नहीं मारने देते|
यहां यह याद रखें कि मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जाटों ने इनको वोट नहीं दिए तो यह हारे; नहीं अपितु ज के बाद ग व् र भी इनसे टूट गया| और 2017 चुनाव में तो यह म को भी एक नहीं रख पाए| यानि खुद की पोलिटिकल स्ट्रेटेजी से जो a bad carpenter quarrels with own tools टाइप में इन्होनें खटबढ़ शुरू की थी, अंत में वही मुलायम सिंह यादव की राजनीति को लील गई|
और यही वजह है कि दंगों की डील से शुरू हुई दास्तां, अब पुरजोर डिमांड वाले स्टाइल में सहारनपुर-मेरठ में लाइव चल रही है| वो भी हिन्दू या मुस्लिम के बीच नहीं, बल्कि सतयुगी टाइप वाले हिन्दू स्वर्ण व् हिन्दू दलित के बीच|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
मुलायम सिंह यादव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ना सिर्फ अपना राजनैतिक गुरु मानते हैं अपितु खुद को चौधरी साहब का उत्तराधिकारी भी बताते हैं|
परन्तु चौधरी साहब के दिए राजनैतिक मूलमंत्र मजगर यानी म-अजगर + दलित + पिछड़ा ( मजगर यानी मुस्लिम-अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत व् दलित) से इन्होनें आते ही ज को अलग करने की राजनीति खेली| और इसकी शुरुवात इन्होनें रक्षामंत्री रहते हुए "जाट-रेजिमेण्ट के कैडर में छेड़छाड़ करके कर दी थी| 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे तो अपने ही गुरु के मूलमंत्र वाले मजगर से म व् ज को फाड़ने की इन्होनें "अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मारने वाली" प्रकाष्ठा ही कर दी थी|
भले ही बीजेपी ने यह लालच दे के यह दंगा करवाया था कि इससे जो धुर्वीकरण होगा उसका मुस्लिम वोट तुम ले लेना और हिन्दू वोट हम ले लेंगे| और हो गई इनके साथ "ना माया मिली ना राम वाली"| बीजेपी तो ऐसा काला कोयला है कि जिसके साथ दलाली में हाथ काले होवें ही होवें; हरयाणा में इनेलो और ताऊ देवीलाल व् चौधरी बंसीलाल के साथ क्या-क्या करती आई है बीजेपी उससे भी रिफरेन्स नहीं ली|
इनेलो वालो सावधान पब्लिकली ना सही, परन्तु अंदर खाते बीजेपी से क्या गलबहियाँ पा के चल रहे हो; हमको सब खबर है| अब भी दूर हट जाओ इनसे, वरना यह तुमको "कुत्ते को मार, बंजारा जैसे रोया था" उस तरिके से रोने लायक भी नहीं छोड़ेंगे| याद रखना, 1999-2004 वाली सरकार में इनेलों ने जो बीजेपी की वाट लगाई थी, उसको भूले नहीं हैं यह लोग; मौका मिलते ही गच्चा खा जाने वाला झटका देंगे, सो इनसे जरा सम्भल के|
खैर, आगे बढ़ते हैं| मुज़फ्फरनगर दंगे वाले झांसे में पड़ने से पहले अगर मुलायम की जगह लालू यादव होते तो जैसे बिहार में रथयात्रा के दौरान अडवाणी को जेल में डाल दिए थे, ऐसे बीजेपी के इस ऑफर को ठंडे बस्ते में डाल देते और मुज़फ्फरनगर में लालू यादव चिड़िया को भी पर नहीं मारने देते|
यहां यह याद रखें कि मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जाटों ने इनको वोट नहीं दिए तो यह हारे; नहीं अपितु ज के बाद ग व् र भी इनसे टूट गया| और 2017 चुनाव में तो यह म को भी एक नहीं रख पाए| यानि खुद की पोलिटिकल स्ट्रेटेजी से जो a bad carpenter quarrels with own tools टाइप में इन्होनें खटबढ़ शुरू की थी, अंत में वही मुलायम सिंह यादव की राजनीति को लील गई|
और यही वजह है कि दंगों की डील से शुरू हुई दास्तां, अब पुरजोर डिमांड वाले स्टाइल में सहारनपुर-मेरठ में लाइव चल रही है| वो भी हिन्दू या मुस्लिम के बीच नहीं, बल्कि सतयुगी टाइप वाले हिन्दू स्वर्ण व् हिन्दू दलित के बीच|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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