Happy upcoming Sanjhi visarajn in advance!
दशहरे व् नवरात्रों के बारे तो मूलत: आप सभी जानते ही होंगे| आइए आपको बिलकुल सेम तारीखों में मनाये जाने वाले हरयाणा-हरयाणवियों के ठेठ त्यौहार "सांझी" बारे बताते हैं|
सांझी सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं अपितु "खाप सोशल इकनोमिक साइकिल" का एक नायाब सिंबल भी रहा है|
मूल हरयाणवी परम्पराओं और समाज में हर त्यौहार को मनाने के आर्थिक इकॉनमी को चालू रखने के कारण प्रमुखता से होते आये हैं| उदारवादी जमींदारी सभ्यता से बाहुल्य इस समाज में हर त्यौहार या तो आर्थिक लाभ-हानि, लेन-देन से जुड़ा होता आया है या फसल चक्र से या फिर सामाजिक व् वास्तविक मान-मान्यता त्योहारों के जरिये सीखने-सिखाने के तरीकों से जुड़ा होता आया है| काल्पनिक कहानियों के आधार पर घड़े हुए त्योहारों से हरयाणा मुक्त ही रहा है|
अभी पड़ोसी राज्यों के शरणार्थी और विस्थापित भाई-बहनों के हमारे यहां पलायन के चलते और खुद हम कट्टर प्रवृति के ना होते हुए इन त्योहारों को मनाने लगे| परन्तु हमें अपने मूल त्यौहार भी कभी नहीं भूलने चाहियें|
जैसे कि हमारे यहां गुजरात के गरबों (नवरात्रों) व् सांझी विसर्जन के साथ-साथ सांझी विसर्जन की दशमीं की रात तमाम पुराने मिटटी के बने पानी रखने के लिए प्रयोग होने वाले बर्तन गलियों में फेंक के फोड़े जाया करते थे, जैसे मटका, माट आदि| और इसका कुम्हार की इकॉनमी से जुड़ा कारण हुआ करता| साल में एक बार यह पुराने हो चुके बर्तन फोड़ते आये हैं हम| क्योंकि इसी वक्त कुम्हार के चाक से बने नए बर्तन पक के तैयार हो जाया करते और उसकी बिक्री हो इसलिए हर घर पुराने बर्तन तोड़ दिया करता था|
हालाँकि सारे बर्तन नहीं तोड़े जाया करते, परन्तु कुम्हार को उसकी इकॉनमी चलाने हेतु सिंबॉलिक परम्परा बनी रहे, इसलिए हर घर कुछ बर्तन या जो वाकई में जर्जर हो चुके होते, उनको जरूर फोड़ा करता| और कुम्हार को उसके बिज़नेस की आस्वस्तता जरूर झलकाया करता|
खुद मैंने बचपन में मेरी बुआओं के साथ घर के पुराने मटके गलियों में फोड़ते देखा भी है और फोड़े भी हैं| इसको "जाटू सोशल इकनोमिक साइकिल" भी कहा करते हैं| मुझे विश्वास है कि जो चालीस-पचास की उम्र के हरयाणवी फ्रेंड मेरी लिस्ट में हैं वो मेरी इस बात से सहमत भी करेंगे|
ठीक इसी प्रकार हमारे यहां खेतों में गन्ना पकने के वक्त पहला गन्ना तोड़ के लाने पे दिए जलाये जाते थे, परन्तु इसको अवध-अयोध्या से इम्पोर्टेड दिवाली के साथ रिप्लेस करवा दिया गया|
बसंत-पंचमी तो सब जानते हैं कि सरसों पे पीले फूल आने की ख़ुशी में मनता आया है|
बैशाखी गेहूं की फसल पकने की ख़ुशी में मनती आई है|
आइये अब ठेठ-हरयाणवी भाषा में जानते हैं कि कैसे सांझी का त्यौहार इकनोमिक साइकिल के साथ-साथ कल्चरल लर्निंग्स भी देता है:
सांझी का पर्व: सांझी सै हरयाणे के आस्सुज माह का सबतैं बड्डा दस द्य्नां ताहीं मनाण जाण आळा त्युहार, जो अक ठीक न्यूं-ए मनाया जा सै ज्युकर बंगाल म्ह दुर्गा पूज्जा, या गुजरात म्ह गरबा अर अवध म्ह दशहरा दस द्यना तान्हीं मनाया जांदा रह्या सै|
हरयाणवी कल्चर में पराणे जमान्ने तें ब्याह के आठ द्य्न पाछै भाई बेबे नैं लेण जाया करदा अर दो द्य्न बेबे कै रुक-कें फेर बेबे नैं ले घर आ ज्याया करदा। इस ढाळ यू दसमें द्य्न बेबे सुसराड़ तैं पीहर आ ज्याया करदी। इसे सोण नैं मनावण ताहीं आस्सुज की मोस तैं ले अर दशमी ताहीं यू उल्लास-उत्साह-स्नेह का त्युहार मनाया जाया करदा। अर इस्ते नई पीढ़ी के बालकों ताहिं इस कस्टम की बारीकी खेल-खेल में सीखा दी जाया करती|
आस्सुज की मोस तें-ए क्यूँ शरू हो सै सांझी का त्युहार: वो न्यूं अक इस द्य्न तैं ब्याह-वाण्या के बेड़े खुल ज्यां सें अर ब्याह-वाण्या मौसम फेर तैं शरू हो ज्या सै। इस ब्याह-वाण्या के मौसम के स्वागत ताहीं यू सांझी का दस द्य्न त्युहार मनाया जाया करदा/जा सै। ब्याह-वाण्याँ का मौसम इसलिए क्योंकि इस वक्त जमींदार-किसान अपने खेती-बाड़ी से फ्री वक्त में होता था, या तो फसल पकाई पे आ चुकी होती थी या कट चुकी होती थी| तो घर में धन की उपलब्धता भी और वक्त भी दोनों होते थे| प्रैक्टिकल और व्याहारिक वजहें बता दी हैं, इसकी वजहें खामखा तंत्र-पंत्रों में जोड़ के देखने की जरूरत ना है|
के हो सै सांझी का त्युहार: जै हिंदी के शब्दां म्ह कहूँ तो इसनें भींत पै बनाण जाण आळी न्य्रोळी रंगोली भी बोल सकें सैं| आस्सुज की मोस आंदे, कुंवारी भाण-बेटी सांझी घाल्या करदी। जिस खात्तर ख़ास किस्म के सामान अर तैयारी घणे द्य्न पहल्यां शरू हो ज्याया करदी।
सांझी नैं बनाण का सामान: आल्ली चिकणी माट्टी/ग्यारा, रंग, छोटी चुदंडी, नकली गहने, नकली बाल (जो अक्सर घोड़े की पूंछ या गर्दन के होते थे), हरा गोबर, छोटी-बड़ी हांड़ी-बरोल्ले। चिकनी माट्टी तैं सितारे, सांझी का मुंह, पाँव, अर हाथ बणाए जाया करदे अर ज्युकर-ए वें सूख ज्यांदे तो तैयार हो ज्याया करदा सांझी बनाण का सारा सामान|
सांझी बनाण का मुहूर्त: जिह्सा अक ऊपर बताया आस्सुज के मिन्हें की मोस के द्य्न तैं ऊपर बताये सामान गेल सांझी की नीम धरी जा सै। आजकाल तो चिपकाणे आला गूंद भी प्रयोग होण लाग-गया पर पह्ल्ड़े जमाने म्ह ताजा हरया गोबर (हरया गोबर इस कारण लिया जाया करदा अक इसमें मुह्कार नहीं आया करदी) भींत पै ला कें चिकणी माट्टी के बणाए होड़ सुतारे, मुंह, पाँ अर हाथ इस्पै ला कें, सूखण ताहीं छोड़ दिए जा सैं, क्यूँ अक गोबर भीत नैं भी सुथरे ढाळआँ पकड़ ले अर सुतारयां नैं भी। फेर सूखें पाछै सांझी नैं सजावण-सिंगारण खात्तर रंग-टूम-चुंदड़ी वगैरह लगा पूरी सिंगार दी जा सै।
सांझी के भाई के आवण का द्यन: आठ द्यन पाछै हो सै, सांझी के भाई के आण का द्य्न। सांझी कै बराबर म्ह सांझी के छोटे भाई की भी सांझी की ढाल ही छोटी सांझी घाली जा सै, जो इस बात का प्रतीक मान्या जा सै अक भाई सांझी नैं लेण अर बेबे की सुस्राड़ म्ह बेबे के आदर-मान की के जंघाह बणी सै उसका जायजा लेण बाबत दो द्य्न रूकैगा|
दशमी के द्य्न भाई गेल सांझी की ब्य्दाई: इस द्यन सांझी अर उनके भाई नैं भीतां तैं तार कें हांड़ी-बरोल्ले अर माँटा म्ह भर कें धर दिया जा सै अर सांझ के बख्त जुणसी हांडी म्ह सांझी का स्यर हो सै उस हांडी म्ह दिवा बाळ कें आस-पड़ोस की भाण-बेटी कट्ठी हो सांझी की ब्य्दाई के गीत गांदी होई जोहडां म्ह तैयराण खातर जोहडां क्यान चाल्या करदी।
उडै जोहडां पै छोरे जोहड़ काठे खड़े पाया करते, हाथ म्ह लाठी लियें अक क्यूँ सांझी की हंडियां नैं फोडन की होड़ म्ह। कह्या जा सै अक हांडी नैं जोहड़ के पार नहीं उतरण दिया करदे अर बीच म्ह ए फोड़ी जाया करदी|
भ्रान्ति: सांझी के त्युहार का बख्त दुर्गा-अष्टमी अर दशहरे गेल बैठण के कारण कई बै लोग सांझी के त्युहार नैं इन गेल्याँ जोड़ कें देखदे पाए जा सें। तो आप सब इस बात पै न्यरोळए हो कें समझ सकें सैं अक यें तीनूं न्यारे-न्यारे त्युहार सै। बस म्हारी खात्तर बड्डी बात या सै अक सांझी न्यग्र हरयाणवी त्युहार सै अर दुर्गा-अष्टमी बंगाल तैं तो दशहरा अयोध्या व् थाईलैंड का त्युहार सै। दुर्गा-अष्टमी अर दशहरा तो इबे हाल के बीस-तीस साल्लां तैं-ए हरयाणे म्ह मनाये जाण लगे सें, इसतें पहल्यां उरानै ये त्युहार निह मनाये जाया करदे। दशहरे को हरयाणे म्ह पुन्ह्चाणे का सबतें बड्डा योगदान राम-लीलाओं नैं निभाया सै|
आप सभी को शुद्ध हरयाणवी त्यौहार सांझी की बधाई के साथ-साथ, गुजरात के गरबा, बंगाल की दुर्गा पूजा (नवरात्रे), अवध व् थाईलैंड के दशहरे की भी शुभकामनाएं|
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