Sunday, 2 June 2019

ना मरया रे बेटा सींक-पाथरी, ना मरया रे आहुलाणे-मदीनें; अर जा मरया रे बेटा गैभाँ के निडाणे!

लेख का कनेक्शन हरयाणा सीएम को चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी द्वारा "खट्टर" कहने से है| वास्तविक हरयाणवी कल्चर क्या है, यह भी आपको इस लेख में बारीकी से जानने को मिलेगा, अत: पूरा पढियेगा|

यह ऊपर शीर्षक वाला क्रंदन आज से पांच-छह पीढ़ी पहले जागसी गाम में हुए नामी धाड़ी दादा निहाल सिंह की मेरे गाम निडाना में मौत होने पर उनकी माँ ने उनकी लाश देखकर चीत्कार किया था| हरयाणा में बदमासी के नाम से सबसे मशहूर गामों में नाम है गोहाना वाली जागसी का| "गैभाँ" शब्द का शुद्ध हरयाणवी भाषा में अर्थ होता है, "शुरू-शुरू में लड़ाई से डरने वाले, कन्नी काटने वाले, एक जगह कमा के मानवता को सर्वोपरि रख के बसने वाले परन्तु सर पे आई पे उठा-उठा पटकने वाले"| और ऐसा हुआ भी है, इसी निडाना में| दादा चौधरी सहिया सिंह मलिक (सांजरण पान्ने की उदमी क्लैन में हुए हैं) जैसे 100-100 घोड़ों से सजी गाम लूटने चढ़ने वाली धाड़ को अकेले वापस मोड़ने वाले अमर यौद्धेय निडाना के खेड़े में हुए हैं और धाड़ों से आमने-सामने की टक्कर में 18-18 को अकेले मौत के घाट उतारने वाले दादा चौधरी गुलाब सिंह मलिक (भंता पान्ने से, अक्सर पूछा करता हूँ कि इस भंते शब्द का बुद्ध धर्म वाले भंते से कोई कनेक्शन लगता है) भी हुए हैं| इस गाम के लोग वह हैं जिनसे प्रेरणा पा यहाँ के बाह्मणों तक ने अपनी विधवा बेटियों के पुनर्विवाह शुरू किये| आज से लगभग सौ साल पहले दादा जी गूगन बाह्मण ने उनकी विधवा बेटी (म्हारी बुआ, 36 बिरादरी की बेटी-बुआ, म्हारी बेटी-बुआ, यह सगी बुआ-बेटी के पैरलेल होती हैं) का पुनर्विवाह किया तो उनको गाम के बाह्मणों ने पंचायत कर जात-बिरादरी से गिरा गाम निकाला दिया तो गाम के जाटों ने गाम में मलवे ठोले की तरफ अपनी जमीनों पर बसाया व् खेती-बाड़ी को जमीनें दी| परन्तु गाम नहीं छोड़ने दिया क्योंकि दादा गूगन ने मानवता का वह काम किया था जिसके लिए जाट समाज पूरे विश्व में जाना जाता है|

यह रेपुटेशन रही है हरयाणा में जिला जिंद के निडाना नामी गणतंत्र, निडाना नगर खेड़े की| इस नगर शब्द को वह लोग अच्छे से समझ लें जो खामखा अपने को ग्रामीण कहते हैं, यह नगर शब्द हमारे गाम-खेड़ों के साथ तब से है जब जींद हो, रोहतक हो, सोनीपत हो, दिल्ली हो या 1947 में बसा कुरुक्षेत्र (इससे पहले कुरुक्षेत्र नाम के शहर का कोई रिकॉर्ड नहीं इंडिया में, किसी को बहम हो तो दूर कर लेना) हो, यह या तो बसे नहीं थे या गाम यानि हमारे नगर खेड़ों जैसे ही थे| जिसको इन बातों पर बहस करनी हो खुला स्वागत है| हरयाणवी कल्चर ना ग्रामीण कभी था ना आज है, आगे आपने धक्के से इसपे ग्रामीण का ठप्पा लगवाना हो तो नादानियों से लगवाते रहो| और ऐसी ही कहावतें-सामाजिक रुतबे व् आंकलन की बातें/कहावतें/लोकोक्तियाँ यहाँ हर गाम-नगर खेड़े रुपी गणतंत्र की हैं| जब तक आप हरयाणा के इस गणतंत्र रुपी कांसेप्ट को नहीं समझेंगे यहाँ के कल्चर के हास्यरंग व् हास्यरस आपको समझ नहीं आएंगे| अगर आप "गैभ" हैं तो यह कल्चर आपको गैभ ही कहेगा यही इसका बेबाकपना व् स्वछंदता है|

हरयाणवी भाषा की आठ मुख्य बोलियाँ हैं व् दस इसके जियोग्राफिक घेरे हैं जो यह हैं बाँगरू (बांगर), बागड़ी (बागड़), देशवाली/खादर, खड़ी बोली (नया शब्द कौरवी), रांगड़ी, ब्रजभाषा, मेवाती, अहिरावती| मेरा गाम पड़ता है बांगर व् खादर के बॉर्डर पर, ठेठ बांगर वाले हमें खादरी बोलते हैं और ठेठ खादर वाले बांगरू|

तो यह तो है यहाँ की कल्चरल सरंचना की कुछ बेसिक सी बातें| अब आते हैं विवादों में चल रहे "खट्टर" शब्द पर:

खट्टर हरयाणवी कल्चर में गौत भी है जो अरोड़ा/खत्री, जाट व् राजपूत तीनों में तो पक्के से पाया जाता है और आवारा पशु व् नालायक इंसान को भी यहाँ "खट्टर" ही कहते हैं व् कंडम हो चुकी बस-गाड़ी को "खटारा" कहते हैं|

सर छोटूराम की यूनाइटेड पंजाब सरकार में यूनियनिस्ट गवर्नमेंट के 2 दफा प्रीमियर रहे जनाब सर सिकंदर हयात खान, "खट्टर" गौती मुस्लिम जाट थे|

हरयाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर भी खुद को बार-बार जाट बता रहे हैं| ताजा मामला अभी लोकसभा चुनाव प्रचार में रोहतक के गाम निंदाना व् मदीना में उनकी जुबानी ही सुनने को मिला है| जिसमें निंदाना में उन्होंने चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान से आया हूँ इसलिए आप नहीं मान रहे परन्तु मैं हूँ जाट ही| मदीना में तो सीएम के मामा हैं जो ढिल्लो गौती हैं, दूर के मामा हैं शायद|

अब बात उनकी जो "खट्टर" शब्द पर चौटाला साहब की टिप्पणी को व्यर्थ का मुद्दा बना रहे हैं|

एक तो यह वही लोग हैं जिन्होनें जब 2005 में चौटाला साहब की जगह हुड्डा साहब सीएम आये थे तो कहा था की "टांग-टांग बदली, बाकि तो वही है" यानि लंगड़िये की जगह दो टांग वाला आया है परन्तु है जाट ही| तो अभी चौटाला साहब के बयान पर मान-मर्यादा-सभ्यता का उवाच करने वाले, यह मात्र 15 साल पहले की अपनी सभ्यता ना भूलें और "नई-नई डूमणी अल्लाह ही अल्लाह पुकारे" की तर्ज पर ज्यादा सभ्य दिखाने और वास्तविक सभ्य होने में क्या फर्क हैं यह समझ लें|

दूसरा हरयाणा में चौटाला शब्द लंगड़े का प्रतीक भी माना जाता है और इसको ऐसा पकाने में सबसे ज्यादा योगदान जाट समाज का ही है|

चौधरी बंसीलाल के जमाने में जब भी किसी के यहाँ भैंस को कटड़ा होता था तो सब कहते थे कि बंसीलाल हुआ है|

मेरे जुलाने हल्के व् जिंद जिले में हुए दादा दल सिंह को "पानी का बादल" व् "भिंडा झोटा" कहते थे|

और आज के दिन गली-गोरों पर घुमते आवारा सांडों को क्या गाम वाले और क्या शहर वाले सब देखते ही बोलते हैं "खट्टर आ गया"| ना बोलते हों शहरों वाले भी तो बता दो?

जहाँ तक व्यक्तिगत बदजुबानी की बात है तो खुद सीएम खट्टर का 3 साल पहले का वह बयान भूल गए क्या जिसमें उन्होंने कटाक्ष किया था कि "हरयाणवी कंधे से ऊपर कमजोर व् नीचे मजबूत होते हैं"? तब तो किसी मीडिया ने हल्ला नहीं मचाया था यूँ?

वैसे बता दूँ, हरयाणवी दोनों ही से मजबूत होता है| बस थोड़ा लोकतान्त्रिक ज्यादा होता है, जिसको आपने उसकी बौद्धिक कमजोरी समझ लिया है| आपकी समस्या क्या है कि आप सिर्फ बुद्धि से मजबूत हैं शरीर से नहीं, इसलिए आपको बुद्धि ही सब कुछ दिखती है| परन्तु ऐसा होता तो आरएसएस के संस्थापक गोलवलकर उनकी पुस्तक "बंच ऑफ़ थॉट्स" में यह नहीं लिखते कि, "हमें दिमाग व् शरीर दोनों की ताकत संचित करनी होगी, चाहिए होगी"| और आपको बचपन से शायद चिड़ यह लगी कि हरयाणवी मानुष गोलवलकर महाशय की इस परिभाषा पर बाई-डिफ़ॉल्ट सेट बैठते हैं| आपको अपने ही गुरु का दिया मंत्र याद नहीं रहता, आखिर क्यों? यह कौनसी कमजोरी की निशानी है, दिमागी या शारीरिक?

यहाँ बाँगरू का मजाक बागड़ी बनाते हैं और बागड़ी का खादरी व् खादरों का खड़ी बोली वाले व् खड़ी बोली वालों का ब्रज वाले व् ब्रज वालों का अहिरावती वाले और अहिरावती वालों का बाँगरू| और ख़ास बता दूँ, यह लेग-पुल्लिंग करने वाले भी सबसे ज्यादा हरयाणवी चाहे किसी भी बिरादरी के हों और सबसे ज्यादा नकल घड़ने वाले भी हरयाणवी|

यह विश्व की सबसे लोकतान्त्रिक धराओं में से एक है, यहाँ "अनाज के ढेर पर बैठा जाट, राजा को उसका हाथी के बेचे है के" कहते रहने का कल्चर रहा है| यहाँ जिसको आप-हम अल्ट्रा मॉडर्न एडवांस कॉर्पोरेट कल्चर में बैठ "सर/मैडम" की बजाये डायरेक्ट नाम से बोलने को सिविलाइज़ेशन कहते हैं, यह हरयाणवी कल्चर में सदियों से रहा है| इसलिए यहाँ "आ जाट के", "आ बाह्मण के" बोल के आपको एक चमार जाति वाला बुलाता रहा है और "आ धानक के", "आ कुम्हार के" बोल के झीमर व् जाट बुलाते रहे हैं| ग्लोबल गूगल (Google) कंपनी में जो "एम्प्लायर-एम्प्लोयी" की बजाये "वर्किंग पार्टनर" का कल्चर है वह हरयाणा में "सीरी-साझी" शब्द के नाम से सदियों-युगों से चलन में है|

तो यहाँ यह राजशाही/तानाशाही/वर्णवाद की उच्चता-नीचता ना तो ढूंढना, ना कभी एक्सपेक्ट करना और ना ही थोंपने की कोशिश करना| और यह संदेश इस मुद्दे को बेवजह इतना तूल दिए हुए मीडिया के गैर-हरयाणवी भांड अच्छे से समझ लें| इन बातों पर ऐसे-ऐसे लजवाना कांड हो जाते हैं जिनके बारे आज भी पंजाब-पटियाला में कहावत चलती है कि, "लजवाने रे तेरा नाश जाईयो, तैने बड़े पूत खपाये"| जब तक बिखरे चलते हैं चलते हैं परन्तु जब सर जोड़ते हैं तो कटटर दुश्मनी वाले दादा भूरा सिंह व् दादा निंघहिया सिंह की तरह जोड़ते हैं व् पूरी की पूरी रियासत के ग्रास का काल बन जाते हैं|

आप हमारा कल्चर सीखना नहीं चाहते, हमारी भाषा बोलना नहीं चाहते, इससे नफरत भी करते हैं तो भी हमारे लिए चलेगा| कोई भी हिंदुस्तानी नागरिक देश के किसी भी कोने में रोजगार कर सकता है रह सकता है सिर्फ इस तर्ज पर हरयाणा में अपने अस्तित्व व् रिहायश को जस्टिफाई करने वालो हमें कोई दिक्क्त नहीं आपसे, परन्तु याद रखना यही हिंदुस्तान का कानून हमें हमारे कल्चर-मान-मान्यता को बचाने-बढ़ने व् प्रचारित रखने का भी अधिकार देता है| आप हमारे मुँहों पर ऐसे पट्टी नहीं रख सकते|

और रखने का बहम भी कभी मत पालना| क्योंकि हम महाराजा सूरजमल के अंश हैं, सहते हैं जब तक सहते हैं और जब विदा करने पर आते हैं तो हम मुंबई के बाल ठाकरों व् राज ठाकरों की भांति पीटते नहीं, गुजरात वालों की तरह गाड़ियां भर के भी नहीं भेजेंगे, अपितु पानीपत की तीसरी लड़ाई वाले पेशवों की जैसे मरहमपट्टी करके धुर घर तक छुड़वाए थे ऐसे छुडवायेंगे| तब ना रो पाओगे और हंस पाओगे| हमारे कल्चर-मान-मान्यता के उपहास या इसको कुचलने व् खत्म करने के सपनों में सिर्फ ग्याभण ही हुए रह जाओगे|
इधर थोड़ा हरयाणवियों से भी अनुरोध है कि मीडिया या सरकार के हर एजेंडा में गंडासे में चढ़ते गैरे की ढाल मत चढ़ा करो| कुछ देर इनके तमाशे भी देखा करो, इनको फूं-फ़ां करके शांत होने का मौका दिया करो| उससे भी जरूरी, कोई मुद्दा कितना दूरगामी है वह आंकलन करके अपने स्टाइल में प्रतिक्रिया दी जाए तो बेहतर व् इनके शब्द अपने मुंह में रखे जाने से खुद को बचाया जाये|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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