Monday, 3 June 2019

"हमें दिमाग की ताकत के साथ शरीर की ताकत भी चाहिए होगी" - बंच ऑफ़ थॉट्स पुस्तक में आरएसएस संस्थापक गोलवलकर के विचार|

इन्हीं को फॉलो करके, कितना भी बड़े दिमाग वाला हो वह भी आरएसएस की दी लाठी काँधे पर रख मार्च पास्ट करता देखा गया है| परन्तु सलंगित अख़बार को देखिये, यह शारीरिक बल का मजाक उड़ा कर सीएम साहब क्या गोलवलकर की बात का उलंघन व् अनादर नहीं कर रहे हैं? और दिमाग की ताकत पर इनको भी भरोसा नहीं तभी रोज आरएसएस में लाठियां भांजते हैं, वही शारीरिक ताकत हासिल करने को जिसका यह खबर मजाक उड़ा रही है? यानि एक हिसाब से स्वीकार रहे हैं कि हममें शारीरिक बल तो है ही नहीं, दिमाग की ताकत भी उतनी नहीं कि लाठी का सहारा ना लेवें? यानि घूम फिर के दिमाग की सारी तिगड़म लगा के भी आखिरकार आरएसएस की शाखाओं में पकड़ते तो वही लाठी हैं, जिसका फूफा लठ हर हरयाणवी के घर में बाई-डिफ़ॉल्ट रखा होता है?

तो बताओ अक्ल बड़ी या लाठी? गोलवलकर के अनुसार तो दोनों ही जरूरी| तो जब दोनों ही जरूरी तो यह चिढ़ कैसी? इस हिसाब से तो बल्कि हरयाणवी दोनों का बेजोड़ मेल हुआ? वरना क्या बिना अक्ल ही हरयाणा देश की सबसे अमीर स्टेट कहलाती, देश के सबसे ज्यादा करोड़पति ग्रामीणों की स्टेट कहलाती? अक्ल होगी तभी तो जोड़ा होगा? और लठ तो बाई-डिफ़ॉल्ट ट्रेडमार्क है ही हरयाणा का|

हाँ, हरयाणवी लोकतान्त्रिक होते हैं, बाँट के खाना-खिलाना जानते हैं, मुसीबत में पड़े को अपने रिसोर्सेज दे बसाना जानते हैं तो इसका मतलब यह थोड़े हुआ कि वह कंधे से ऊपर कमजोर हो गए; यह तो मानवता हुई ना?
सो टेंशन नहीं लेने का, सीएम साहब, आपके गुरु का जो नियम आरएसएस की शाखाएं भी ज्वाइन करके लोग हासिल नहीं कर पाते यानि बुद्धि व् लाठी दोनों की ताकत, एक हरयाणवी वह बाई-डिफ़ॉल्ट ले के पैदा होता है प्लस में वह तीसरी ताकत लोकतान्त्रिक मानवता भी लिए होता है| जिसके चलते मुंबई-गुजरात से पिट-छित के आये उत्तरी-पूर्वी भारतीय भी हमारे हरयाणा में ही सबसे ज्यादा सेफ रोजगार पाते हैं|

अत: जिस लेवल की अक्ल व् कंधे से ऊपर की मजबूती का शायद आप इशारा (चार-सौ-बीसी, दगाबाजी, टैक्सचोरी, 99 का फेर आदि-आदि) कर रहे हैं वह हमें चाहिए भी नहीं| वैसे भी हमें अपने लठ की ताकत से खुद ही डर लगता है इसलिए इसको आप भी मत जगाएं| यह सोई हुई ही अच्छी है, अन्यथा जब-जब जागी है तो शिवजी उर्फ़ दादा ओडिन-जी-वांडरर की भांति धरती के सारे जहर को साफ़ कर-कर गई है|

और ऐसे विचार रखकर भी आप "हरयाणा एक, हरयाणवी एक" जैसे नारे कैसे दे लेते हैं? इस खबर से साबित होता है कि हरयाणा में पैदा होकर भी हरयाणवी नहीं बन पाए आप तो| ऐसी धूर्तता अगर आपके अनुसार दिमागी ताकत है तो यह आपको ही मुबारक| वह चूहे-बिल्ली वाली बात| बिल्ली ने मारा झप्पटा चूहा जा घुसा बिल में, बिल्ली को उसकी पूँछ ही हाथ लग पाई| बिल्ली ने चूहे को बिल के अंदर आवाज लगाई कि, "आ जा रे चूहे तेरी पूंछ जोड़ दूँ"| चूहा बोला, "ना री मौसी रहने दे, हम तो यूँ लांडे ही खा कमाएंगे"| तो इतनी हद से ज्यादा अक्ल का भी क्या करना सीएम साहब जो समाज में तानाशाही/वर्णवादिता की परिचायक बन जाए|

वो जैसे कहते हैं ना कि साइंस तभी तक भली जब तक उसका पॉजिटिव प्रयोग हो, नेगटिव प्रयोग होव तो विश्व का विनाश कर दे साइंस| ऐसा ही मसला दिमाग की ताकत का है, पॉजिटिव व् मानवीय दिशा में इस्तेमाल करें तो सार्थक नहीं तो सब निरर्थक|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


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