बड़े चौटाला साहब द्वारा हरयाणा सीएम को खटटर कहने के प्रकरण पर यह मेरी दूसरी व् अंतिम पोस्ट है|
इसमें है हरयाणा लाइव टीवी वाली महिला एंकर को मेरा जवाब, जो हरयाणवियों को मानवता-सभ्यता का पाठ पढ़ा रही थी|
मीडिया व् राजनीति में बैठे जितने भी लोग चौटाला साहब के बयान को बेवजह का तूल दे रहे हैं उनको बता दूँ कि यहाँ व्यक्तियों-क्षेत्रों-बोलियों के अपभृंश व् उपहास करने का विश्व का सबसे श्रेष्ट कल्चर है, इसलिए बुरा ना मानें|
यहाँ तो पानीपत की तीसरी लड़ाई जीतने को अपनी औरतों समेत आये सदाशिवराव भाऊ के जुल्म-क्रूरता-निर्दयिता को देख हमारी औरतों ने "हाऊ" शब्द घड़ लिया था| आज भी औरतें छोटे बच्चों को देर-सवेर बाहर निकलने या रात को सोते वक्त, वक्त से नहीं सोने पर यह कह के सुला देती हैं कि, "सो जा नहीं तो हाऊ खा ज्यांगे"| और उनके पास इसकी सबसे बड़ी वजह थी बिना युद्ध जीते, अपनी औरतें साथ ला, उनपे दुश्मन के जुल्म ढलवाने व् उनके कत्ले-आम व् बलात्कार होने की वजह बनना| यह तो जाट थे यहाँ सो मरहम पट्टी करके इनको बचा लिया वरना अब्दाली ने तो एक-एक तो मार देना था| और क्योंकि यह विश्व की सबसे बड़ी मूर्खता थी कि युद्ध जीते नहीं और अति-आत्मविश्वास की अति करते हुए औरतों-बच्चों को भी हाँक लाये| इसलिए हरयाणवी औरतों के मुख से "भाऊ" की जगह "हाऊ" कहलाये|
तो इस कल्चर ने तो ऐसे-ऐसे खब्बी-खां मजाक के पात्र बनाने से नहीं बख्शे तो आप क्यों मुंह सुजा रहे हो? आप क्यों इसको सभ्यता-मानवता-शालीनता का मुद्दा बनाते हो? और गजब की बात तो यह है कि इसको मुद्दा मीडिया में बैठी उस वर्ग की औरतें ज्यादा बना रही हैं जो यदाकदा जाटों के यहाँ औरतों की स्थिति को भी ऐसी दयनीय बता के दर्शाने से बाज नहीं आती हैं कि जैसे जाट तो औरत के मामले में सबसे क्रूर लोग हैं विश्व के|
जबकि इनके खुद के समाजों में इनकी इतनी भी औकात नहीं कि अपने मर्दों से मंदिरों में 50% पुजारी की पोस्टों पर पुजारनों का हक मांग सकें| 100 में असल तो 100 नहीं तो 99% पुजारी पोस्टों पर मर्द कब्जे किये बैठे हैं परन्तु इनको फिर भी औरतों के हक-हलूल दूसरों के यहाँ सही नहीं हैं वही दीखते हैं| चिंता ना करो अपने मर्दों से अपने यह हक तक नहीं मांग सकने तक की गुलामों, जाटों ने तो अपने "दादा नगर खेड़ों" में पूरा 100% पूजा-धोक का हक दे ही अपनी औरतों को रखा है| मर्दवाद को तो हम पूजा-पाठ के मामले में घुसने भी नहीं देते|
हाँ, यह टीवी सेरिअल्स, फ़िल्में और जगराते-भंडारे-चौंकियों की बहकावे में पड़ बहुत सी जाटणियां अपने कल्चर की इस ख़ूबसूरती से उल्टी हटी हुई सी दिखती हैं| क्योंकि शायद इनको मेरे जैसे ऐसे मानवीय पहलु दिखाने वाले जाट समाज में ही बहुत कम हैं तो कमी हमारी ही है| वरना जिस दिन हमने अपनी जाटणियों को अपना कल्चर उतनी सीरियसनेस से बताना शुरू कर दिया जितनी से तुम्हारे वाले तुम्हें बता के भी तुम्हारा 50% पुजारन का हक नहीं देते, उस दिन हमारे वाली तो थारे तोते उड़ा देंगी|
खैर, लब्बो-लवाब यही है कि "अधजल गगरी छलकत जाए" वाले ढकोसले कम-से-कम हमारे सामने तो करो मत| तुम में, तुम्हारे समाजों-वर्णों में मानवता-सभ्यता का क्या अर्श है और क्या फर्श है भलीभांति जानते हैं| वही बात जाओ पहले अपने हक ले लो अपने मर्दों से, फिर चाहे तुम "गोल बिंदी गैंग वाली हो" या मेरी दादी की भाषा में "चुंडे पाटी हुई हो" या लटूरों वाली हो| हमें पता है हम क्या हैं, यूँ ही नहीं सारा भारत तुम्हारी मीडिया वाली ही भाषा में कही जाने वाली "जाटलैंड" पर मजदूरी-दिहाड़ी-रोजगार-व्यापार करने चला आता है| यहाँ तक कि मुंबई में बाल ठाकरों व् राज ठाकरों से पिटे-छीते हुए व् गुजरात से भर-भर ट्रेनें उत्तर-पूर्व को भगाये हुओं को भी यही मीडिया की भाषा वाली "जाटलैंड" अंतिम आसरा दिखती है|
हरयाणवियों, यह लेख उस हरयाणा लाइव वाली एंकर को भेज देना जिसका बोलने का लहजा भी उत्तर-पूर्व भारत का है| और वहां अपनी स्टेट सुधारने हेतु वहीँ रह के कुछ करने के बजाये, चली है यहाँ आ के हरयाणवियों को शालीनता-सभ्यता सिखाने| अपने टूक खा लो टिक कें, हरयाणा से यू आड़े भाऊ का हाऊ बनाते आये, थमनें क्यों मुंह सुजाये?
"कह दो इन भांड-भंडेले-बेसुरों को कि तुम्हारी कहबत में ना हम अपने हास्यरस व् हास्यरंग का गला घोटेंगे, यूँ ही ठहाके म्हारे पुरखों ने ठोकें और यूँ ही हम ठोकेंगे"! वरना थारी कहबैत में तो हम अपनी बहु-बेटियों को साउथ इंडिया की भांति देवदासी बना के मंदिरों में पंडों के लिए परोस तक दे तो सभ्य व् शालीन ना कहलाएं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इसमें है हरयाणा लाइव टीवी वाली महिला एंकर को मेरा जवाब, जो हरयाणवियों को मानवता-सभ्यता का पाठ पढ़ा रही थी|
मीडिया व् राजनीति में बैठे जितने भी लोग चौटाला साहब के बयान को बेवजह का तूल दे रहे हैं उनको बता दूँ कि यहाँ व्यक्तियों-क्षेत्रों-बोलियों के अपभृंश व् उपहास करने का विश्व का सबसे श्रेष्ट कल्चर है, इसलिए बुरा ना मानें|
यहाँ तो पानीपत की तीसरी लड़ाई जीतने को अपनी औरतों समेत आये सदाशिवराव भाऊ के जुल्म-क्रूरता-निर्दयिता को देख हमारी औरतों ने "हाऊ" शब्द घड़ लिया था| आज भी औरतें छोटे बच्चों को देर-सवेर बाहर निकलने या रात को सोते वक्त, वक्त से नहीं सोने पर यह कह के सुला देती हैं कि, "सो जा नहीं तो हाऊ खा ज्यांगे"| और उनके पास इसकी सबसे बड़ी वजह थी बिना युद्ध जीते, अपनी औरतें साथ ला, उनपे दुश्मन के जुल्म ढलवाने व् उनके कत्ले-आम व् बलात्कार होने की वजह बनना| यह तो जाट थे यहाँ सो मरहम पट्टी करके इनको बचा लिया वरना अब्दाली ने तो एक-एक तो मार देना था| और क्योंकि यह विश्व की सबसे बड़ी मूर्खता थी कि युद्ध जीते नहीं और अति-आत्मविश्वास की अति करते हुए औरतों-बच्चों को भी हाँक लाये| इसलिए हरयाणवी औरतों के मुख से "भाऊ" की जगह "हाऊ" कहलाये|
तो इस कल्चर ने तो ऐसे-ऐसे खब्बी-खां मजाक के पात्र बनाने से नहीं बख्शे तो आप क्यों मुंह सुजा रहे हो? आप क्यों इसको सभ्यता-मानवता-शालीनता का मुद्दा बनाते हो? और गजब की बात तो यह है कि इसको मुद्दा मीडिया में बैठी उस वर्ग की औरतें ज्यादा बना रही हैं जो यदाकदा जाटों के यहाँ औरतों की स्थिति को भी ऐसी दयनीय बता के दर्शाने से बाज नहीं आती हैं कि जैसे जाट तो औरत के मामले में सबसे क्रूर लोग हैं विश्व के|
जबकि इनके खुद के समाजों में इनकी इतनी भी औकात नहीं कि अपने मर्दों से मंदिरों में 50% पुजारी की पोस्टों पर पुजारनों का हक मांग सकें| 100 में असल तो 100 नहीं तो 99% पुजारी पोस्टों पर मर्द कब्जे किये बैठे हैं परन्तु इनको फिर भी औरतों के हक-हलूल दूसरों के यहाँ सही नहीं हैं वही दीखते हैं| चिंता ना करो अपने मर्दों से अपने यह हक तक नहीं मांग सकने तक की गुलामों, जाटों ने तो अपने "दादा नगर खेड़ों" में पूरा 100% पूजा-धोक का हक दे ही अपनी औरतों को रखा है| मर्दवाद को तो हम पूजा-पाठ के मामले में घुसने भी नहीं देते|
हाँ, यह टीवी सेरिअल्स, फ़िल्में और जगराते-भंडारे-चौंकियों की बहकावे में पड़ बहुत सी जाटणियां अपने कल्चर की इस ख़ूबसूरती से उल्टी हटी हुई सी दिखती हैं| क्योंकि शायद इनको मेरे जैसे ऐसे मानवीय पहलु दिखाने वाले जाट समाज में ही बहुत कम हैं तो कमी हमारी ही है| वरना जिस दिन हमने अपनी जाटणियों को अपना कल्चर उतनी सीरियसनेस से बताना शुरू कर दिया जितनी से तुम्हारे वाले तुम्हें बता के भी तुम्हारा 50% पुजारन का हक नहीं देते, उस दिन हमारे वाली तो थारे तोते उड़ा देंगी|
खैर, लब्बो-लवाब यही है कि "अधजल गगरी छलकत जाए" वाले ढकोसले कम-से-कम हमारे सामने तो करो मत| तुम में, तुम्हारे समाजों-वर्णों में मानवता-सभ्यता का क्या अर्श है और क्या फर्श है भलीभांति जानते हैं| वही बात जाओ पहले अपने हक ले लो अपने मर्दों से, फिर चाहे तुम "गोल बिंदी गैंग वाली हो" या मेरी दादी की भाषा में "चुंडे पाटी हुई हो" या लटूरों वाली हो| हमें पता है हम क्या हैं, यूँ ही नहीं सारा भारत तुम्हारी मीडिया वाली ही भाषा में कही जाने वाली "जाटलैंड" पर मजदूरी-दिहाड़ी-रोजगार-व्यापार करने चला आता है| यहाँ तक कि मुंबई में बाल ठाकरों व् राज ठाकरों से पिटे-छीते हुए व् गुजरात से भर-भर ट्रेनें उत्तर-पूर्व को भगाये हुओं को भी यही मीडिया की भाषा वाली "जाटलैंड" अंतिम आसरा दिखती है|
हरयाणवियों, यह लेख उस हरयाणा लाइव वाली एंकर को भेज देना जिसका बोलने का लहजा भी उत्तर-पूर्व भारत का है| और वहां अपनी स्टेट सुधारने हेतु वहीँ रह के कुछ करने के बजाये, चली है यहाँ आ के हरयाणवियों को शालीनता-सभ्यता सिखाने| अपने टूक खा लो टिक कें, हरयाणा से यू आड़े भाऊ का हाऊ बनाते आये, थमनें क्यों मुंह सुजाये?
"कह दो इन भांड-भंडेले-बेसुरों को कि तुम्हारी कहबत में ना हम अपने हास्यरस व् हास्यरंग का गला घोटेंगे, यूँ ही ठहाके म्हारे पुरखों ने ठोकें और यूँ ही हम ठोकेंगे"! वरना थारी कहबैत में तो हम अपनी बहु-बेटियों को साउथ इंडिया की भांति देवदासी बना के मंदिरों में पंडों के लिए परोस तक दे तो सभ्य व् शालीन ना कहलाएं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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