जेंडर सेंसिटिविटी, जेंडर इक्वलिटी, औरत के सम्मान व् फेमिनिज्म तक की बातें करने वाले तो ख़ासा ध्यान देना!
"हो बाबा जी तेरी श्यान पै 'बेमाता' चाळा करगी,
कलम तोड़गी लिख दी पूँजी रात-दिवाळा करगी!"
बचपन से यह रागनी सुनके बड़ा हुआ हूँ, जिसको जब भी सुनता था तो हरयाणवी कल्चर में फीमेल का क्या ओहदा है स्वत: ही समझ आती थी| वह 'बेमाता' शब्द के जरिये इंसान को घड़ने वाली कही जाती थी, वह एक औरत बताई गई| परन्तु अब बदल रहा है कुछ, कैसे:
"बटुआ सा मुंह लेरी, पतली कमर,
आम जी नैं छोड़ी कोन्या किते रै कसर"
'आम', की जगह असल में क्या है इस गाने को सुनने वाले समझ ही गए होंगे| मैं इस जगह जो असल है उसका एक मैथोलॉजिकल अवतार के तौर पर बहुत सम्मान करता हूँ और यह दुर्भाग्य ही है कि इस मुद्दे पर ध्यान दिलवाने हेतु इस बात को इस तरीके से रख रहा हूँ| क्योंकि सीधा नाम ले के इनसे जुडी लोगों की भावना नहीं दुखाना चाहता परन्तु बात रखनी भी जरूरी थी तो राखी|
आदरणीय लेखकों और गायकों; अगर आप वाकई हरयाणवी कल्चर के पैरोकार हैं तो क्या बेमाता का ओहदा 'आम' को शिफ्ट करना, एक कल्चर में औरत के सम्मान का जो ओहदा है वह मर्द पर शिफ्ट कर देना नहीं है?
एक तो नेशनल से ले स्टेट मीडिया तक वैसे ही हरयाणवी कल्चर को घोर मर्दवादी बताने पर दिन-रात पिला रहता है तो ऐसे में किस से उम्मीद करूँ इसमें औरत के सम्मान की जो धारणाएं-मान-मान्यताएं हैं उनको बचाने की?
फ्रांस में रहता हूँ, औरत को सम्मान देने के मामले में इनसे बेहतर कल्चर आजतक नहीं देखा| भारतीय परिवेश में इस तरह का इसके नजदीक लगता कोई कल्चर है तो उसमें मैं सिखिज्म व् हरयाणवी को बहुत आगे काउंट करता हूँ| इतना आगे तो जरूर कि अगर कोई कम्पेरेटिव स्टडी खोल के बैठे तो उनको इतना तो जरूर साबित कर दूँ कि हरयाणवी कल्चर औरत को सम्मान देने में अन्य किसी भारतीय कल्चर से इतना ज्यादा तो जरूर है कि वह 19 की बजाये 21 साबित होवे|
अत: इन कलाकारों, लेखकों से इतना अनुरोध करूँगा कि एक ऐसे वक्त में जब सामाजिक संस्थाओं से ले समाज के जागरूक लोग तक इन चीजों की बजाये घोर राजनीति में ही उलझे पड़े हैं तो ऐसे में इन चीजों को मेन्टेन रखने की आपकी जिम्मेदारी सबसे बड़ी है| कृपया इसको सिद्द्त व् जिम्मेदारी से निभाएं| हो सके तो इस नए गाने के लेखकों गायकों तक जरूर यह बात पहुंचाएं और बताएं कि ठीक है धन कमाना भी जरूरी है परन्तु जहाँ कल्चर की कात्तर-कात्तर बिखरती दिखें उस राह जाना पड़े, आप इतने भी कम टैलेंट के साथ नहीं ज्वाजे हो बेमाता ने|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
"हो बाबा जी तेरी श्यान पै 'बेमाता' चाळा करगी,
कलम तोड़गी लिख दी पूँजी रात-दिवाळा करगी!"
बचपन से यह रागनी सुनके बड़ा हुआ हूँ, जिसको जब भी सुनता था तो हरयाणवी कल्चर में फीमेल का क्या ओहदा है स्वत: ही समझ आती थी| वह 'बेमाता' शब्द के जरिये इंसान को घड़ने वाली कही जाती थी, वह एक औरत बताई गई| परन्तु अब बदल रहा है कुछ, कैसे:
"बटुआ सा मुंह लेरी, पतली कमर,
आम जी नैं छोड़ी कोन्या किते रै कसर"
'आम', की जगह असल में क्या है इस गाने को सुनने वाले समझ ही गए होंगे| मैं इस जगह जो असल है उसका एक मैथोलॉजिकल अवतार के तौर पर बहुत सम्मान करता हूँ और यह दुर्भाग्य ही है कि इस मुद्दे पर ध्यान दिलवाने हेतु इस बात को इस तरीके से रख रहा हूँ| क्योंकि सीधा नाम ले के इनसे जुडी लोगों की भावना नहीं दुखाना चाहता परन्तु बात रखनी भी जरूरी थी तो राखी|
आदरणीय लेखकों और गायकों; अगर आप वाकई हरयाणवी कल्चर के पैरोकार हैं तो क्या बेमाता का ओहदा 'आम' को शिफ्ट करना, एक कल्चर में औरत के सम्मान का जो ओहदा है वह मर्द पर शिफ्ट कर देना नहीं है?
एक तो नेशनल से ले स्टेट मीडिया तक वैसे ही हरयाणवी कल्चर को घोर मर्दवादी बताने पर दिन-रात पिला रहता है तो ऐसे में किस से उम्मीद करूँ इसमें औरत के सम्मान की जो धारणाएं-मान-मान्यताएं हैं उनको बचाने की?
फ्रांस में रहता हूँ, औरत को सम्मान देने के मामले में इनसे बेहतर कल्चर आजतक नहीं देखा| भारतीय परिवेश में इस तरह का इसके नजदीक लगता कोई कल्चर है तो उसमें मैं सिखिज्म व् हरयाणवी को बहुत आगे काउंट करता हूँ| इतना आगे तो जरूर कि अगर कोई कम्पेरेटिव स्टडी खोल के बैठे तो उनको इतना तो जरूर साबित कर दूँ कि हरयाणवी कल्चर औरत को सम्मान देने में अन्य किसी भारतीय कल्चर से इतना ज्यादा तो जरूर है कि वह 19 की बजाये 21 साबित होवे|
अत: इन कलाकारों, लेखकों से इतना अनुरोध करूँगा कि एक ऐसे वक्त में जब सामाजिक संस्थाओं से ले समाज के जागरूक लोग तक इन चीजों की बजाये घोर राजनीति में ही उलझे पड़े हैं तो ऐसे में इन चीजों को मेन्टेन रखने की आपकी जिम्मेदारी सबसे बड़ी है| कृपया इसको सिद्द्त व् जिम्मेदारी से निभाएं| हो सके तो इस नए गाने के लेखकों गायकों तक जरूर यह बात पहुंचाएं और बताएं कि ठीक है धन कमाना भी जरूरी है परन्तु जहाँ कल्चर की कात्तर-कात्तर बिखरती दिखें उस राह जाना पड़े, आप इतने भी कम टैलेंट के साथ नहीं ज्वाजे हो बेमाता ने|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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