वेस्टर्न वर्ल्ड में "कल्चर" शब्द "कल्ट"
यानि "खेती" से बना है और हमारे यहाँ यह शब्द एक भाषा संस्कृत पर बना है
जिसको बोलते ही मुश्किल से 1% लोग हैं| तो व्यापक स्तर पर जनसंख्या "कल्चर"
शब्द में कवर हुई या एक सिमित दायरे में बोले जाने वाली भाषा वाले शब्द
से? यह सवाल उन ज्ञानियों से है जो यह कहते हैं कि हमारी शब्दवाली ज्यादा
उत्तम व् व्यापक है? इसका एक अर्थ यह भी है कि एक भाषा से इस शब्द को बनाने
वालों के लिए बस उस भाषा को बोलने वाले ही कल्चर्ड हैं बाकी सब नगण्य|
यह है वेस्टर्न वर्ल्ड के शब्दों की व्यापकता जो मेजोरिटी को कवर करते
हैं, मात्र 1-2% को नहीं, फिर चाहे वह मेजोरिटी खेती करने वालों की हो या
इससे उतपन्न अन्न से पेट भरने वालों की यानि 100% वह भी 100% दिन ऑफ़
लाइफटाइम| वह कल्चर शब्द से उस कृषक को भी आभार व्यक्त करते हैं जो ना हो
तो जीवन में अन्न खाने को ना मिले जो कि हर जीवन का आधार है यानि पूर्णतया
कृतज्ञ लोग व् कृतज्ञ सोच वाला कल्चर| भाषा तो वेस्ट वाले भी बोलते हैं
परन्तु उन्होंने "कल्चर" के लिए "खेती से जुड़ा शब्द क्यों चुना", इनकी भाषा
से ही जुड़ा चुन लेते? दोनों ही शब्दों से कोई बैर या हेय नहीं है, बस सवाल
उठा तो पूछा; जिस महाज्ञानी के पास जवाब हो तो जरूर देवे| अन्यथा सोचिये
इस पर, क्योंकि आपकी मानसिक गुलामी यहीं पर बंधी प्रतीत होती है|
बचपन से सुनते आये थे और तथाकथित हरयाणवी-कल्चर को कम जानने वाले व् इसका
उपहास उड़ाने वाले पत्रकार अक्सर जब ताऊ देवीलाल से यह पूछते थे कि, 'बाकी
सब तो ठीक है, पर आपका कल्चर क्या है?" तो वो म्हारा बुड्ढा, म्हारा पुरख
इनको सही इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड का जवाब दिया करता था कि, "म्हारा कल्चर सै
एग्रीकल्चर"| और जो कोई भी हरयाणवी, हरयाणे के ग्राउंड जीरो से बाहर
देश-स्टेटों के शहरों या विदेशों में आन पहुंचा है वह सहज ही उस म्हारे
पुरखे की इस बात को समझेगा, इसके मर्म को समझेगा|
ईबी खुद को खेती से जोड़ने से शर्म आती हो जिसने, उसको यह लेख पढ़वा दियो|
विशेष: संस्कृत तीन साल पढ़ी है, 95-97/100 नंबर से कभी कम ना आये, संस्कृति शब्द भी सुनहरा है, इसका मान-सम्मान-ओहदा सब कायम है मेरी नजरों में और रहेगा; परन्तु बात वह होनी चाहिए जो व्यापकता को समाहित करती हो, तभी तो असली "वसुधैव कुटुंभ्कम" चरितार्थ होवेगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
ईबी खुद को खेती से जोड़ने से शर्म आती हो जिसने, उसको यह लेख पढ़वा दियो|
विशेष: संस्कृत तीन साल पढ़ी है, 95-97/100 नंबर से कभी कम ना आये, संस्कृति शब्द भी सुनहरा है, इसका मान-सम्मान-ओहदा सब कायम है मेरी नजरों में और रहेगा; परन्तु बात वह होनी चाहिए जो व्यापकता को समाहित करती हो, तभी तो असली "वसुधैव कुटुंभ्कम" चरितार्थ होवेगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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