Monday, 11 November 2019

नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला! सतनाम वाहेगुरु!

इस धर्म की महानता का अंदाजा इसी से लगा लीजिये कि 1850 के आसपास हिन्दू जाट लगभग इसकी तरफ झुक गया था| तब हिन्दू जाट को सिखिज्म में जाने से रोकने के लिए, "जाट जी" व् "जाट देवता" लिख-लिख जाट की स्तुति भरा "सत्यार्थ-प्रकाश" लाया गया, जाट की मान-मान्यताओं को पहली बार ऑफिशियली स्वीकार कर, जाट के "दादा नगर खेड़ों" के "मूर्ती-पूजा" नहीं करने के कांसेप्ट पर आधारति "आर्य-समाज" 1875 में स्थापित करवाया गया व् इस तरह से सनातनियों के प्रति भरे पड़े जाट के गुस्से को शांत करते हुए जाट को सिखिज्म में नहीं जाने से मनाने में कुछ हद तक बात बनी| कुछ हद तक इसलिए क्योंकि करनाल-थानेसर-कैथल तक सिखिज्म फ़ैल चुका था, बस "आर्य-समाज" की वजह से यह आगे फैलने से रुका|

और यह बात 35 बनाम 1 रचने वाले आज फिर से भूले लगते हैं कि जाट तुम्हारे साथ है तो तुम्हारी अपनी बुद्धि की इसमें किसी करामात के चलते नहीं अपितु जाट को यथोचित "जाट जी" व् "जाट देवता" वाला सम्मान देने व् उसके "मूर्ती पूजा" नहीं करने जैसे बसिक सिद्धांतों को ग्रंथों में अंगीकार करने की वजह से| इसलिए यह 35 बनाम 1 के षड्यंत्र बंद ही कर दें तो अच्छा होगा अन्यथा जाट फिर से विमुख हुआ तो अबकी बार शायद ही रुके| यह 35 बनाम 1 रचने वाले वे लोग हैं जिनको जाट को सिखिज्म में जाते देख सबसे ज्यादा बेचैनी-छटपटाहट हुई थी कि हाय-हाय जाट ही चला गया तो हमारी दान-दक्षिणा रुपी इनकम कहाँ से आएगी| 

बाबा नानक के प्रकाश पर्व की सबनू वधाईयाँ जी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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