Tuesday, 12 November 2019

तुम्हारी सांस नहीं निकल रही जबसे मोदी ने राम-मंदिर पर फैसला करवाया है?

कुछ भक्त दोस्त बोल रहे हैं कि तुम्हारी सांस नहीं निकल रही जबसे मोदी ने राम-मंदिर पर फैसला करवाया है? तो सुन भाई मेरी साँस की बात, तूने बिलबिलाना तो फिर भी है; फिर भी सुन ही ले:

राम मंदिर इतना बड़ा मुद्दा होना ही नहीं था अगर राजीव गाँधी थोड़ा और जी जाते और एक योजना और पीएम रह जाते| वो इन लोगों को 30 साल राजनैतिक रोटियाँ सेकनें का मौका ही नहीं देते इस मुद्दे पर| मंदिर की निर्माण स्थापना तो उन्होंने उनके प्रधानमंत्री रहते हुए 9 नवंबर 1989 को ही ना करवा दी थी| यह तो अब तब जा के चेते हैं जब 30 साल इस मुद्दे पे जनता का वक्त-ऊर्जा-संसाधन-दिमाग सब चूस छोड़ा, ताकि देश में हर तरफ पसरी पड़ी मंदी-बेरोजगारी-आरजकता से जनता का ध्यान कुछ और समय के लिए भटकाए रखा जा सके| नहीं तो स्पेशल 30 साल लगाने से कौनसा हिन्दुओं का मक्का हरिद्वार से अयोध्या शिफ्ट किया जाना था या है?


बाकि मेरे जैसों के लिए तो राम हो या श्याम, शिवजी हो या हनुमान, संतोषी हो या काली, अल्लाह हो या वाहेगुरु; मेरे पुरखों के सिद्धांत वाले "दादा नगर खेड़े" में मेरे ज्ञात पुरखों समेत यह सब भी ऑटोमेटिकली समाहित हैं अगर जैसे कि दावे किये जाते हैं कि यह हमारे असली वाले पुरखे थे तो| पुरखे थे तो पुरखों का तो हमारे यहाँ एक ही सर्वधाम है और उसमें यह सब व् अन्य जो भी गाम-खेड़े में आम हो या ख़ास हो के गए, मरने के बाद सब बराबर तुलते हैं| अब इस बहस में तो मुझे घसीटना मत कि नहीं राम सबसे बड़ा या शिवजी या कृष्ण या कोई और; इतनी ऊर्जा ना है मेरे में| इन पर गुटबाजी ना होवे, या तेरे जैसे कौनसा बड़ा कौनसा छोटा की तुलना ना करे, इसलिए पुरखों ने खेड़ो में मूर्ती ही ना रखी कोई से की भी| न बिठाया मर्द-पुजारी, दे के 100% पूजा-धोक का इंचार्ज अपनी औरतों को; सारे क्लेश एक ठोड ही काट राखे सदियों से|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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