आज़ादी से पहले के यूनाइटेड पंजाब में जिन्नाह को सर छोटूराम का अल्टरनेटिव बनाने की गाँधी-नेहरू से ले हिन्दू महासभा (आज की आरएसएस) व् मुस्लिम लीग की सारी कोशिशें नाकामयाब हो चुकी थी| तीनों यानि कांग्रेस, हिन्दू महासभा व् मुस्लिम लीग सर छोटूराम को पंजाब से खत्म करना चाहते थे| तो कांग्रेस के सरदार पटेल पर ट्राई करने की सोची|
बात 1943 की है लायलपुर (आज का फैसलाबाद) कॉलेज, पाकिस्तान की| जिस दिन, तारीख व् स्थान यानि लायलपुर कॉलेज में सर छोटूराम का झलसा था, कांग्रेस ने वहीँ उसी समय-स्थान पर सरदार पटेल की रैली रखवा दी| यूनियनिस्ट पार्टी ने प्रशासन से आग्रह भी किया कि यह स्थान व् समय जब हमारी रैली के लिए बुक था तो कांग्रेस को कैसे दिया गया? तो प्रसाशन ने आधा घंटा का वक्त आगे करके कांग्रेस की रैली पहले रखवा दी, ताकि सर छोटूराम को सुनने आने वाली भीड़ पहले पटेल को सुने और उन पर पटेल का प्रभाव बढ़े| योजनाबद्ध तरीके से पटेल का भाषण शुरू हुआ, रैली लम्बी खिंचनी थी इतनी कि यूनियनिस्टों की रैली का वक्त हो जाए; तो ऐसा होते देख अंग्रेजों की लंदन रिपोर्टिंगस की भाषा में "अक्खड़ जिद्दी जाट सर छोटूराम" ने ठीक अपना वक्त होते ही दूसरी तरफ अपना स्टेज संभाल बोलना शुरू किया तो सरदार पटेल के पंडाल की सारी भीड़ सर छोटूराम ने ठीक वैसे ही खींच ली, जैसे गढ़ी सांपला में जब कवि दादा लख्मीचंद का कवि दादा फौजी मेहर सिंह से आमने-सामने का मुकाबला हुआ तो देखते-देखते दादा लख्मीचंद के मंच की सारी भीड़ दादा मेहर सिंह के मंच पर जा जुटी थी| यानि सरदार पटेल का पंडाल खाली| बताते हैं कि सर छोटूराम ने एक ही बड़ी बात कही कि पहले वह वोहरा मुस्लिम जिन्नाह आया था गुजरात से अब पटेल को लाये हैं, बताओ यह गुजराती, पंजाबियों के हक-हलूल ठीक से समझेंगे या मैं तुम्हारे अपने बीच का?
बताते हैं कि इसके बाद सरदार पटेल को गाँधी-नेहरू-जिन्नाह द्वारा उनको सर छोटूराम के आगे प्रयोग करने की चाल समझ आई व् शर्मिंदा महसूस किये और उसके बाद कभी सर छोटूराम के आगे रैली नहीं की|
Source: Prof. Divyajyoti Singh, author of "mera ram sir chhoturam" book
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
बात 1943 की है लायलपुर (आज का फैसलाबाद) कॉलेज, पाकिस्तान की| जिस दिन, तारीख व् स्थान यानि लायलपुर कॉलेज में सर छोटूराम का झलसा था, कांग्रेस ने वहीँ उसी समय-स्थान पर सरदार पटेल की रैली रखवा दी| यूनियनिस्ट पार्टी ने प्रशासन से आग्रह भी किया कि यह स्थान व् समय जब हमारी रैली के लिए बुक था तो कांग्रेस को कैसे दिया गया? तो प्रसाशन ने आधा घंटा का वक्त आगे करके कांग्रेस की रैली पहले रखवा दी, ताकि सर छोटूराम को सुनने आने वाली भीड़ पहले पटेल को सुने और उन पर पटेल का प्रभाव बढ़े| योजनाबद्ध तरीके से पटेल का भाषण शुरू हुआ, रैली लम्बी खिंचनी थी इतनी कि यूनियनिस्टों की रैली का वक्त हो जाए; तो ऐसा होते देख अंग्रेजों की लंदन रिपोर्टिंगस की भाषा में "अक्खड़ जिद्दी जाट सर छोटूराम" ने ठीक अपना वक्त होते ही दूसरी तरफ अपना स्टेज संभाल बोलना शुरू किया तो सरदार पटेल के पंडाल की सारी भीड़ सर छोटूराम ने ठीक वैसे ही खींच ली, जैसे गढ़ी सांपला में जब कवि दादा लख्मीचंद का कवि दादा फौजी मेहर सिंह से आमने-सामने का मुकाबला हुआ तो देखते-देखते दादा लख्मीचंद के मंच की सारी भीड़ दादा मेहर सिंह के मंच पर जा जुटी थी| यानि सरदार पटेल का पंडाल खाली| बताते हैं कि सर छोटूराम ने एक ही बड़ी बात कही कि पहले वह वोहरा मुस्लिम जिन्नाह आया था गुजरात से अब पटेल को लाये हैं, बताओ यह गुजराती, पंजाबियों के हक-हलूल ठीक से समझेंगे या मैं तुम्हारे अपने बीच का?
बताते हैं कि इसके बाद सरदार पटेल को गाँधी-नेहरू-जिन्नाह द्वारा उनको सर छोटूराम के आगे प्रयोग करने की चाल समझ आई व् शर्मिंदा महसूस किये और उसके बाद कभी सर छोटूराम के आगे रैली नहीं की|
Source: Prof. Divyajyoti Singh, author of "mera ram sir chhoturam" book
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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