1) आज भी
विधवा को पुनर्विवाह की इजादत नहीं| जो आज भी दिवंगत पति की प्रॉपर्टी से
बेदखल कर सर मुंडवा कर हरिद्वार से हुगली तक की गंगा के विधवा-घाटों या
वृन्दावन जैसे विधवा आश्रमों में फ़ंडी-फलहरियों की कामवासना पूर्ती हेतु
फेंक दी जाती हैं| वृन्दावन में तो 80% उसी बंगाल की स्वर्ण विधवाएं हैं जो
जेनएयू में सबसे ज्यादा कोटाधारी होते हैं और पूरे देश के स्वघोषित सबसे
बड़े विद्वान् कहलाते हैं| इन पर कभी नहीं बोलेंगे यह जबकि इनको हरयाणा की
जाट-खाप इन मामलों में सबसे प्रिय टारगेट दिख जायेंगे| वह जाट-खाप जिसके
यहाँ पूरे देश में सबसे सम्भव शान से दिवंगत पति की प्रॉपर्टी पर बसते-घसते
हुए जीवन जीती हैं विधवाएं| कोई माई का लाल हमारे यहाँ किसी विधवा को उसकी
प्रॉपर्टी से इनकी तरह बदहाली करके बेदखल तो करके दिखाए| कभी शादी-ब्याह
के मौकों पर विधवा का खड़ा होना अशुभ नहीं माना जाता बल्कि घर की बाकी औरतों
के बराबर हर फंक्शन में शामिल की जाती हैं|
2) इनको खाप-पंचायतों के चबूतरों पर महिलाएं नहीं होती पहले झटके दीखता है परन्तु मंदिरों के चबूतरों पर, गृभगृहों में, पुजारी की पोस्टों पर महिलाएं नहीं होती वह इनमें से अधिकतर को होता तब भी नहीं दीखता जब रोज-रोज मंदिरों में घंटा भी बजा के आते हैं और पूजा-प्रसाद भी चढ़ा के आते हैं| सुसरे जो धरती के सबसे बड़े हिपोक्रेट व् घुन्ने ना हों तो|
3) इनको हरयाणा का दलित, बिहार-बंगाल के महादलित से भी दुखी व् प्रताड़ित लगता है| और इसपे बिना हुए भी विवाद खड़े करवाने को जाट नाम का शब्द व् पात्र इनका सबसे प्रिय होता है| वह हरयाणा जहाँ, इनके बिहार-बंगाल में सवर्णों का सताया हुआ दलित-महादलित-ओबीसी बेसिक दिहाड़ी वाला रोजगार पाता है, इनको उसको वहीँ बिहार-बंगाल में रोजगार मुहैया करवाने बारे प्लान-प्रोजेक्ट बनाने से ज्यादा, उस हरयाणा के जहाँ दलित को इतनी नौबत तो कभी आती ही नहीं कि मात्र बेसिक दिहाड़ी को उसको अपना गृहराज्य छोड़ हजारों कोस दूर जाना पड़े, वहां दलित-जाट का गेम इनका सबसे फेवरेट है|
4) इनको शहरों की आरडब्लूए वाली सोसाइटीज के हर उलटे-सीधे-पाबंदी के नियम आधुनिकता दीखते हैं बस तालिबान-तुगलकी फरमान तो एक हरयाणा उसमें भी खासकर जाट व् खाप के यहाँ नजर आता है; फिर चाहे खुद सुसरे तुगलकाबाद की ही किसी आरडब्लूए में रहते हों|
और सुनी है कि फीस तो इतनी सस्ती है कि इतना सस्ता तो बीपीएल वालों को अनाज भी नहीं मिलता?
ओ भाई, ऊपर लिखा शीर्षक में कि तुम्हारे ज्ञान-टैलेंट पर कोई सवाल नहीं परन्तु पहले अपने यह प्रेजुडाइस भी क्लियर कर लो| जाटों-खापों की चिंता करने से पहले अपने बिहार-बंगाल की चिंता कर लो क्योंकि सुना है जेएनयू में तुम 80% वही से हो? बिहार-बंगाल को इतना समृद्ध व् समर्थ बना के दिखाओ कि वहां से मजदूर अन्य राज्यों में रोजगार ढूंढने नहीं जाने की बजाये वहीँ की वहीँ रोजगार पावें तो मानें तुम्हारे इंटेल्लेक्ट को| वरना इन सूखे आडिलियस्टिक इंटेल्लेक्ट के सगूफों पर तो मेरा दादा मुझे "बोळी-खयल्लो" कर मेरी पीठ थपथपा सर पुचकार कर न्यूं कह दिया करदा जा घरां, तेरी दादी दूध गर्म कर रही सै, पी कें सो जा|
बाकी थारी फीस माफ़ी की मांग में थारे साथ हूँ, थारी ही क्या पूरे देश में हर लेवल की शिक्षा निशुल्क होनी चाहिए| पर थोड़ा अपनी ईगो व् एरोगेंस को इतने तो बैलेंस में रखो कि मुझे यह अंतिम तुम्हारे समर्थन वाली ही लाइन लिखने की जरूरत पड़े, ऊपर वाला उपदेश ना पाथना पड़े|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
2) इनको खाप-पंचायतों के चबूतरों पर महिलाएं नहीं होती पहले झटके दीखता है परन्तु मंदिरों के चबूतरों पर, गृभगृहों में, पुजारी की पोस्टों पर महिलाएं नहीं होती वह इनमें से अधिकतर को होता तब भी नहीं दीखता जब रोज-रोज मंदिरों में घंटा भी बजा के आते हैं और पूजा-प्रसाद भी चढ़ा के आते हैं| सुसरे जो धरती के सबसे बड़े हिपोक्रेट व् घुन्ने ना हों तो|
3) इनको हरयाणा का दलित, बिहार-बंगाल के महादलित से भी दुखी व् प्रताड़ित लगता है| और इसपे बिना हुए भी विवाद खड़े करवाने को जाट नाम का शब्द व् पात्र इनका सबसे प्रिय होता है| वह हरयाणा जहाँ, इनके बिहार-बंगाल में सवर्णों का सताया हुआ दलित-महादलित-ओबीसी बेसिक दिहाड़ी वाला रोजगार पाता है, इनको उसको वहीँ बिहार-बंगाल में रोजगार मुहैया करवाने बारे प्लान-प्रोजेक्ट बनाने से ज्यादा, उस हरयाणा के जहाँ दलित को इतनी नौबत तो कभी आती ही नहीं कि मात्र बेसिक दिहाड़ी को उसको अपना गृहराज्य छोड़ हजारों कोस दूर जाना पड़े, वहां दलित-जाट का गेम इनका सबसे फेवरेट है|
4) इनको शहरों की आरडब्लूए वाली सोसाइटीज के हर उलटे-सीधे-पाबंदी के नियम आधुनिकता दीखते हैं बस तालिबान-तुगलकी फरमान तो एक हरयाणा उसमें भी खासकर जाट व् खाप के यहाँ नजर आता है; फिर चाहे खुद सुसरे तुगलकाबाद की ही किसी आरडब्लूए में रहते हों|
और सुनी है कि फीस तो इतनी सस्ती है कि इतना सस्ता तो बीपीएल वालों को अनाज भी नहीं मिलता?
ओ भाई, ऊपर लिखा शीर्षक में कि तुम्हारे ज्ञान-टैलेंट पर कोई सवाल नहीं परन्तु पहले अपने यह प्रेजुडाइस भी क्लियर कर लो| जाटों-खापों की चिंता करने से पहले अपने बिहार-बंगाल की चिंता कर लो क्योंकि सुना है जेएनयू में तुम 80% वही से हो? बिहार-बंगाल को इतना समृद्ध व् समर्थ बना के दिखाओ कि वहां से मजदूर अन्य राज्यों में रोजगार ढूंढने नहीं जाने की बजाये वहीँ की वहीँ रोजगार पावें तो मानें तुम्हारे इंटेल्लेक्ट को| वरना इन सूखे आडिलियस्टिक इंटेल्लेक्ट के सगूफों पर तो मेरा दादा मुझे "बोळी-खयल्लो" कर मेरी पीठ थपथपा सर पुचकार कर न्यूं कह दिया करदा जा घरां, तेरी दादी दूध गर्म कर रही सै, पी कें सो जा|
बाकी थारी फीस माफ़ी की मांग में थारे साथ हूँ, थारी ही क्या पूरे देश में हर लेवल की शिक्षा निशुल्क होनी चाहिए| पर थोड़ा अपनी ईगो व् एरोगेंस को इतने तो बैलेंस में रखो कि मुझे यह अंतिम तुम्हारे समर्थन वाली ही लाइन लिखने की जरूरत पड़े, ऊपर वाला उपदेश ना पाथना पड़े|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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