Thursday, 21 November 2019

बीएचयू में मुस्लिम प्रोफेसर को संस्कृत पढ़ाने नहीं देने का एपिसोड!

जिस तरीके से बीएचयू में एक मुस्लिम प्रोफेसर को संस्कृत नहीं पढ़ाने दी जा रही, इसको देखते हुए तो ऐसा लग रहा है कि धीरे-धीरे वह युग वापिस आ रहा है जिसके बारे बताते हैं कि संस्कृत पढ़ने-पढ़ाने का हक एक धर्म के अंदर भी एक जाति-नश्ल-वर्ण विशेष को ही होता था या ऐसा उनके द्वारा स्वघोषित था? तो क्या अब अगला कदम यह होगा कि गैर-धर्मी के बाद दलित-ओबीसी प्रोफेसरस को भी संस्कृत पढ़ने-पढ़ाने से रुकवा दिया जायेगा?

इसको देखते हुए तो फिर नंबर आर्यसमाजी जाटों का भी आएगा, जो ब्याह-शादियों में फेरे तक अपने बच्चों के खुद करते-करवाते हैं? अपनी जाति से बाहर वाले से फेरे करवाना तो बहुत से गाम-कुनबों में आज भी अशुभ भी माना जाता है और स्वीकार्य भी नहीं है| मेरे तो खानदान-कुनबे-ठोले तक में पीढ़ियों से चला यह दस्तूर आज भी कायम है कि ब्याह फेरे हों या मरगत-उद्घाटन के हवन, हमेशा घर बड़ा बुड्ढा जानता हो तो उससे अन्यथा जाट शास्त्री से ही फेरे-हवन आदि करवाते हैं| मेरे बड़े भाई-भाभी के फेरे, भाभी जी के दादा जी ने करवाए, मेरे बाप-दादा-पड़दादा के फेरे जाट-बडेरों ने करवाए, छोटे भाई के फेरे जाट आर्यसमाजी ने करवाए| अभी 2018 में जब इंडिया गया था तो मेरी चचेरी दादी की मरगत का हवन तक जाट आर्यसमाजी से ही करवाया था फिर भले ही उसके लिए स्पेशल 2 घंटे इंतज़ार करना पड़ा सबको|

भाई, इन हालातों तो एक सलाह है कि जल्दी-जल्दी इन फेरों के मंत्रों को अपनी हरयाणवी में ट्रांसलेट मार लो और संस्कृत के साथ-साथ हरयाणवी में फेरे करवाने शुरू कर लो| क्या पता कब फरमान आ जाये कि संस्कृत पे तो हमारा कॉपीराइट है तुम प्रयोग नहीं कर सकते| साथ-साथ अग्नि के साथ-साथ सिख धर्म में जैसे "उनके धर्मग्रंथ" के राउंड्स काट के फेरे लेते हैं ऐसे ही "दादा नगर खेड़ों" के राउंड्स काट के फेरे लेने भी शुरू कर लो वरना पता लगा कि अग्नि वाले फेरों पे भी कॉपीराइट लागू हो गया कि यह वाले तो विशेष वर्ण-समूह वाले ही कर-करवा सकते हैं बस|

जुनसे ने हरयाणवी में फेरे करवाने की बढ़िया फीस चाहिए बेशक इब से ही हरयाणवी में ट्रांसलेट करके और सुर-ताल-लय ज्यों-की-त्यों संस्कृत वालों के तर्ज पे बिठाना शुरू कर लो| क्योंकि चिंता ना मानियो, इतनी जागरूकता फैला दी है साथियों ने हरयाणवी को ले के कि आने वाले वक्त में थम बेरोजगार भूखे नहीं मरोगे, इतनी डिमांड बढ़वा देंगे थारी|

फेर चाहे सर पे धर के नाच लियो इस संस्कृत ने और संदूकों में बंद करके रख लियो यह बीएचयू वाले| हद होती है जाहिलता-गंवारपणे और नस्लीय नफरत व् भेदभाव की भी| मेरे हैं मेरा धर्म है तो क्या मैं इसमें इतनी हद से ज्यादा की नस्लीय नफरत व् घमंड को भी पी जाऊँ? यहाँ फ्रांस की यूनिवर्सिटीज-स्कूल-कॉलेज तो क्या पूरे यूरोप-अमेरिका का दिखाओ इनको, इतने ईसाई टीचर बाइबिल ना पढ़ाते गोरों को जितने कई-कई इंस्टीटूशन्स में तो अरबी व् अफ्रीकन मूल के मुस्लिम पढ़ाते हैं| समझ ना आती देश इन गँवारों को झेल क्यों रहा है आखिर|

जो चीज इतनी बड़ी नफरत का पर्याय बनती हो वह किसी भी सभ्य धर्म का अंग तो कतई नहीं ही हो सकता; फिर किसी को इस लेख में लिखी बातें पसंद आवें या ना आवें| हम तो औरों के ही धर्म की वाहियात बातें नहीं सुनते तो अपने में कैसे सहन कर लें?

इनको दण्ड़काना शुरू करो कि, "या तो तुम सुधरो वरना अपनी पदवी से उतरो"

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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