जनादेश का संकेत साफ़ है कि हिन्दोस्तां में कहीं भी अधिनायकवाद चल सकता
होगा परन्तु हरयाणा में नहीं चल सकता| यहाँ उदारवादी जमींदारी की सर्वखाप
की "खापोलॉजी" व् "दादानगर खेड़ों" और आर्य समाज की "मूर्तिपूजा व्
फंड-पाखंड से रहित" थ्योरियों पर अपने इनके दादाओं की पीढ़ी के वक्त तक
कन्फर्म तौर पर कायम रहे पुरखे, बाप वाली पीढ़ी के वक्त कन्फ्यूज्ड हुए
(टीवी के जरिये दिमाग में माइथोलॉजी फ़िल्में व् सीरियल्स के जरिये) समूहों
की आज की पीढ़ी ने अपने दादाओं वाली चेतना में आते हुए वोट के जनादेश से
हरयाणवी स्टाइल में सत्ता वालों को "पैंडा छोड़ो" कह दी है|
लेकिन इसके बावजूद इन्होने जेजेपी व् निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बना ली है तो ऐसे में इस फ़िलहाल हुई वोटिंग के जरिये आये इस "पैंडा छोड़" संदेश के मतन को कायम व् और दुरुस्त रखने हेतु क्या कदम इन तबकों को उठाने होंगे? जैसे कि:
1) सर्वधर्म सर्वजातीय सर्वखाप द्वारा "खापलीला थिएटर ग्रुप" गठित कर, खापों के इतिहास को प्रचारित करने हेतु खाप-प्रचार मंडलियां बना "खापरात्रे" आयोजित करने का वक्त है|
2) आर्यसमाज संस्थाओं में घुस आई माइथोलॉजी व् ढोंग-फंड-पाखंड व् इनको घुसाने को घुसे हुए फंडियों को इन संस्थाओं से बाहर करने का वक्त है|
3) अपने समाज से बाहर से ना दान लेंगे और 100% फाइनेंसियल ट्रांसपेरेंसी के सर्वसमाज के हित के कार्यक्रमों के अलावा किसी को कहीं भी फूटी कोड़ी नहीं देंगे के विचार फ़ैलाने होंगे| और उनको तो कन्फर्म नहीं देंगे जो समाज को दान देने के नाम पर एक धेला नहीं देते जबकि लेने के नाम पर 90-99% खुद डकार जाते हैं| स्याने लोग कह कर गए हैं कि कोई दुश्मन बनाना हो तो फ्री का दे के बना लो; यह वही फ्री वाले दुश्मन बनाते हो ऐसे लोगों को दान देकर जिनकी ना समाज के प्रति कोई जवाबदेही है और ना दान के हिसाबकिताब की| और फिर ऐसे ही दानों से फरवरी 2016 जैसे जाट बनाम नॉन-जाट दंगे फाइनेंस होते हैं; जिसको इसका संज्ञान ना हो अच्छे से यह बात संज्ञान में ले लेवे|
अब प्रथम दो बिंदुओं पर थोड़ा विस्तार से:
"खापलीला थिएटर ग्रुप" क्या करे: सर्वखाप के वह गैर-राजनैतिक लोग, जो इस ग्रुप की संवेदना व् उद्देश्य के प्रति कटिबद्द हों, इस समूह में होवें| दिवाली-दशहरे के वक्त यह प्रचार 10-15 दिन का होवे| और खापलैंड के गाम-खेड़ों-शहरों में हर रोज खाप के इतिहास के एक अध्याय पर तारीखों के कर्म में थिएटर परफॉरमेंस होवें; कुछ-एक थिएटर प्ले इस तरह हो सकते हैं:
1. 1 - थिएटर प्ले नंबर एक: सर्वखाप द्वारा महाराजा हर्षवर्धन बैंस की बहन को दुश्मन की कैद से छुड़वाना व् उस राज में खापों को सवैंधानिक संस्थाओं का दर्जा मिलना| छटी सदी का अध्याय|
1.2 - थिएटर प्ले नंबर दो: सर्वखाप द्वारा पुष्यमित्र सुंग की बौद्ध जाटों को मारने आई 1 लाख की आर्मी को मात्र 9000 जाट यौद्धेयों द्वारा 1500 शहीदी देते हुए पछाड़ना व् "मार दिया मठ", "कर दिया मठ", "हो गया मठ" जैसी कहावतों की गिनती में इजाफे को वहीँ विराम लगाना| - इसका संदर्भ सर के. सी. यादव की पुस्तक "हरयाणा का इतिहास" में विस्तार से दिया गया है|
1.3 - थिएटर प्ले नंबर तीन: सर्वखाप द्वारा महमूद गजनी को लूटना| ग्यारहवीं सदी का अध्याय|
1.4 - थिएटर प्ले नंबर चार: सर्वखाप द्वारा पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहमद गौरी को मारना| बारहवीं सदी का अध्याय|
1.5 - थिएटर प्ले नंबर पांच: सर्वखाप आर्मी की गौरी के दिल्ली में रिप्रेजेन्टेटिव कुत्तबुद्दीन ऐबक से चौधरी जाटवान जी गठवाला के नेतृत्व में हांसी-हिसार के देपल के मैदानों में हुई भिंड़त और कैसे जीत कर भी ऐबक रोया| बारहवीं सदी का अध्याय|
1.6 - थियटर प्ले छह: जिंद की दादिरानी भागीरथी द्वारा चुगताई वंश के चार सेनापतियों समेत उनकी सेना को गोहाना से बरवाला तक दौड़ा-दौड़ा मारना|
1.7 - थियटर प्ले सात: सर्वखाप द्वारा राजा चौधरी देवपाल राणा जी के नेतृव्त में सेनापति दादा चौधरी हरवीर सिंह गुलिया बादली वाले द्वारा तैमूरलंग की टांग तोडने व् हिन्दोस्तां से भगाने का सन 1398 का किस्सा|
1.8 - थिएटर प्ले आठ: सर्वखाप द्वारा बाबर के खिलाफ राणा सांगा की मदद करने का किस्सा|
1.9 - थिएटर प्ले नौ: दादिरानी समाकौर के अपमान व् आक्रोश पर सर्वखाप द्वारा कलानौर रियासत को तोड़ डालना| सन 1620 का अध्याय|
1.10 - थिएटर प्ले दस: सर्वखाप द्वारा गॉड गोकुला के नेतृत्व में औरंगजेब के विरुद्ध हुई किसान विद्रोह की क्रांति| सन 1669 का अध्याय|
1.11 - थिएटर प्ले ग्यारह: 1761 में ब्राह्मण पेशवा सदाशिवराव द्वारा सर्वखाप को पत्र लिख पानीपत की तीसरी लड़ाई में मदद माँगना| देखना अभी जो पानीपत मूवी आ रही है उसमें इस किस्से का जिक्र तक भी आएगा या नहीं; यह जिक्र नहीं कर रहे इसीलिए तो खुद करने होंगे|
1.12 - थिएटर प्ले बारह: सर्वखाप द्वारा 1857 में हुई विशाल किसान क्रांति का नेतृत्व, जिसको प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दे दिया गया| इसमें दिखाया गया हो कि कैसे अंग्रेजों ने सर्वखाप के दो टुकड़े कर इसको 'यमुना आर' व् 'यमुना पार' में विभाजित कर दिया था|
1.13 - थिएटर प्ले तेरह: सर्वखाप द्वारा वक्त-वक्त पर की महापंचायतों के नियम-कायदों की पंचायत के विस्तार समेत फेहरिस्तों के अध्याय|
1.14 - थिएटर प्ले चौदह: सर्वखाप द्वारा वक्त-वक्त पर किये वह सामाजिक न्याय के अध्याय जिनकी वजह से गाम के गाम उजड़ने से बसे, भाईचारे बिछड़ने से बचे|
1.15 - थिएटर प्ले पंद्रह: सर्वखाप की अन्य नामीगिरामी हस्तियों, यौद्धेयों, मुख्यालयों, खाप-सरंचना व् इन द्वारा बनाये गए चौपाल-परस-एजुकेशन संस्थान व् गुरुकुलों की स्थापना के किस्से व् जानकारी इसमें हो|
जानता हूँ कि यह सब एक स्वपन जैसा है, खाप के अन्य तो क्या शायद खुद खाप वाले व् खाप मानने वाले ही इस पर यकीन ना कर पाएं| परन्तु इस बारे प्रचुर जागरूकता भी फैला दी जाए तो इन थिएटर प्लेज का होना मुश्किल या नामुमकिन भी नहीं| अभी फ़िलहाल तो लोगों में इन थिएटर प्लेज की जरूरत बारे प्रचार ही जोरो-शोरों से हो जायेगा तो करिश्मा हो जायेगा|
अब चलते-चलते आर्यसमाज के संभावित फ्यूचर कोर्स पर:
करतारपुर साहिब का खुलना आर्यसमाज को बहुत बड़ा संदेश देता है| संदेश देता है कि किन वजहों-मंशाओं से आर्यसमाज बना, वह सब चर्चित होता रहेगा, इसमें आई या शुरू दिन से रही या जानबूझकर डाली गई कुरीति व् बुराईयों को दूर कर लिया जायेगा पंरतु सबसे पहले इसको फंडी के ढोंग-पाखंड से मुक्त कर पुनः बहाल करवाया जाए| ताकि एक ऐसा प्लेटफार्म आर्यसमाजियों के हाथ में जरूर रहे जिसमें उनके पुरखों के खून पसीने से बनी इमारतें-जमीनें-संस्थाएं हैं, वह निरंतर इनके ही नियंत्रण में रहें| इन्हीं इमारतों-जमीनों पर कब्जा करने को फंडियों की निगाह गड़ी हुई है|
मूर्ती-पूजा नहीं करने का कांसेप्ट जो कि मूर्ती-रहित दादा नगर खेड़ों के आध्यात्म से उठाकर बिना इन खेड़ों को इसका क्रेडिट दिए आर्यसमाज में डाला गया था यह हर किसी को स्पष्ट किया जाए| सिखिज्म जैसे अपने पुरखों को ही अपना भगवान् मानता है ऐसे ही आर्य समाज भी अपने पुरखों को ही अपना भगवान मानता है; और इस आस्था की जड़ें जाती हैं पुरखों के स्थापित किये दादा नगर खेड़ों में, उदारवादी जमींदारी की थ्योरियों में| सिखिज्म जैसे माइथोलॉजी से दूर रहा है ऐसे ही आर्यसमाज भी माइथोलॉजी से दूर वैज्ञानिक तर्कों पर खड़ा है|
इनको खड़ा कर लीजिये, दुरुस्त कर लीजिये वरना आने वाली पीढ़ियाँ धिक्कारेंगी|
जिनको कीचड़ में खिलने वाले फूल चाहियें उनको कहिये कि अपने घरों-समाजों-वर्णों में भाई से भाई, वर्ण से वर्ण, जाति से जाति, इस बनाम उस आदि वाली द्वेष-नफरत-ईर्ष्या आदि वाला फैला के कीचड़ जितने चाहें उतने ऐसे फूल उगा लें; परन्तु हमसे यह उम्मीद ना रखें कि उनके ऐसे फूलों के लिए अपने घर-समाज-सम्प्रदायों में कीचड़ फैलाएंगे या फैलने देंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
लेकिन इसके बावजूद इन्होने जेजेपी व् निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बना ली है तो ऐसे में इस फ़िलहाल हुई वोटिंग के जरिये आये इस "पैंडा छोड़" संदेश के मतन को कायम व् और दुरुस्त रखने हेतु क्या कदम इन तबकों को उठाने होंगे? जैसे कि:
1) सर्वधर्म सर्वजातीय सर्वखाप द्वारा "खापलीला थिएटर ग्रुप" गठित कर, खापों के इतिहास को प्रचारित करने हेतु खाप-प्रचार मंडलियां बना "खापरात्रे" आयोजित करने का वक्त है|
2) आर्यसमाज संस्थाओं में घुस आई माइथोलॉजी व् ढोंग-फंड-पाखंड व् इनको घुसाने को घुसे हुए फंडियों को इन संस्थाओं से बाहर करने का वक्त है|
3) अपने समाज से बाहर से ना दान लेंगे और 100% फाइनेंसियल ट्रांसपेरेंसी के सर्वसमाज के हित के कार्यक्रमों के अलावा किसी को कहीं भी फूटी कोड़ी नहीं देंगे के विचार फ़ैलाने होंगे| और उनको तो कन्फर्म नहीं देंगे जो समाज को दान देने के नाम पर एक धेला नहीं देते जबकि लेने के नाम पर 90-99% खुद डकार जाते हैं| स्याने लोग कह कर गए हैं कि कोई दुश्मन बनाना हो तो फ्री का दे के बना लो; यह वही फ्री वाले दुश्मन बनाते हो ऐसे लोगों को दान देकर जिनकी ना समाज के प्रति कोई जवाबदेही है और ना दान के हिसाबकिताब की| और फिर ऐसे ही दानों से फरवरी 2016 जैसे जाट बनाम नॉन-जाट दंगे फाइनेंस होते हैं; जिसको इसका संज्ञान ना हो अच्छे से यह बात संज्ञान में ले लेवे|
अब प्रथम दो बिंदुओं पर थोड़ा विस्तार से:
"खापलीला थिएटर ग्रुप" क्या करे: सर्वखाप के वह गैर-राजनैतिक लोग, जो इस ग्रुप की संवेदना व् उद्देश्य के प्रति कटिबद्द हों, इस समूह में होवें| दिवाली-दशहरे के वक्त यह प्रचार 10-15 दिन का होवे| और खापलैंड के गाम-खेड़ों-शहरों में हर रोज खाप के इतिहास के एक अध्याय पर तारीखों के कर्म में थिएटर परफॉरमेंस होवें; कुछ-एक थिएटर प्ले इस तरह हो सकते हैं:
1. 1 - थिएटर प्ले नंबर एक: सर्वखाप द्वारा महाराजा हर्षवर्धन बैंस की बहन को दुश्मन की कैद से छुड़वाना व् उस राज में खापों को सवैंधानिक संस्थाओं का दर्जा मिलना| छटी सदी का अध्याय|
1.2 - थिएटर प्ले नंबर दो: सर्वखाप द्वारा पुष्यमित्र सुंग की बौद्ध जाटों को मारने आई 1 लाख की आर्मी को मात्र 9000 जाट यौद्धेयों द्वारा 1500 शहीदी देते हुए पछाड़ना व् "मार दिया मठ", "कर दिया मठ", "हो गया मठ" जैसी कहावतों की गिनती में इजाफे को वहीँ विराम लगाना| - इसका संदर्भ सर के. सी. यादव की पुस्तक "हरयाणा का इतिहास" में विस्तार से दिया गया है|
1.3 - थिएटर प्ले नंबर तीन: सर्वखाप द्वारा महमूद गजनी को लूटना| ग्यारहवीं सदी का अध्याय|
1.4 - थिएटर प्ले नंबर चार: सर्वखाप द्वारा पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहमद गौरी को मारना| बारहवीं सदी का अध्याय|
1.5 - थिएटर प्ले नंबर पांच: सर्वखाप आर्मी की गौरी के दिल्ली में रिप्रेजेन्टेटिव कुत्तबुद्दीन ऐबक से चौधरी जाटवान जी गठवाला के नेतृत्व में हांसी-हिसार के देपल के मैदानों में हुई भिंड़त और कैसे जीत कर भी ऐबक रोया| बारहवीं सदी का अध्याय|
1.6 - थियटर प्ले छह: जिंद की दादिरानी भागीरथी द्वारा चुगताई वंश के चार सेनापतियों समेत उनकी सेना को गोहाना से बरवाला तक दौड़ा-दौड़ा मारना|
1.7 - थियटर प्ले सात: सर्वखाप द्वारा राजा चौधरी देवपाल राणा जी के नेतृव्त में सेनापति दादा चौधरी हरवीर सिंह गुलिया बादली वाले द्वारा तैमूरलंग की टांग तोडने व् हिन्दोस्तां से भगाने का सन 1398 का किस्सा|
1.8 - थिएटर प्ले आठ: सर्वखाप द्वारा बाबर के खिलाफ राणा सांगा की मदद करने का किस्सा|
1.9 - थिएटर प्ले नौ: दादिरानी समाकौर के अपमान व् आक्रोश पर सर्वखाप द्वारा कलानौर रियासत को तोड़ डालना| सन 1620 का अध्याय|
1.10 - थिएटर प्ले दस: सर्वखाप द्वारा गॉड गोकुला के नेतृत्व में औरंगजेब के विरुद्ध हुई किसान विद्रोह की क्रांति| सन 1669 का अध्याय|
1.11 - थिएटर प्ले ग्यारह: 1761 में ब्राह्मण पेशवा सदाशिवराव द्वारा सर्वखाप को पत्र लिख पानीपत की तीसरी लड़ाई में मदद माँगना| देखना अभी जो पानीपत मूवी आ रही है उसमें इस किस्से का जिक्र तक भी आएगा या नहीं; यह जिक्र नहीं कर रहे इसीलिए तो खुद करने होंगे|
1.12 - थिएटर प्ले बारह: सर्वखाप द्वारा 1857 में हुई विशाल किसान क्रांति का नेतृत्व, जिसको प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दे दिया गया| इसमें दिखाया गया हो कि कैसे अंग्रेजों ने सर्वखाप के दो टुकड़े कर इसको 'यमुना आर' व् 'यमुना पार' में विभाजित कर दिया था|
1.13 - थिएटर प्ले तेरह: सर्वखाप द्वारा वक्त-वक्त पर की महापंचायतों के नियम-कायदों की पंचायत के विस्तार समेत फेहरिस्तों के अध्याय|
1.14 - थिएटर प्ले चौदह: सर्वखाप द्वारा वक्त-वक्त पर किये वह सामाजिक न्याय के अध्याय जिनकी वजह से गाम के गाम उजड़ने से बसे, भाईचारे बिछड़ने से बचे|
1.15 - थिएटर प्ले पंद्रह: सर्वखाप की अन्य नामीगिरामी हस्तियों, यौद्धेयों, मुख्यालयों, खाप-सरंचना व् इन द्वारा बनाये गए चौपाल-परस-एजुकेशन संस्थान व् गुरुकुलों की स्थापना के किस्से व् जानकारी इसमें हो|
जानता हूँ कि यह सब एक स्वपन जैसा है, खाप के अन्य तो क्या शायद खुद खाप वाले व् खाप मानने वाले ही इस पर यकीन ना कर पाएं| परन्तु इस बारे प्रचुर जागरूकता भी फैला दी जाए तो इन थिएटर प्लेज का होना मुश्किल या नामुमकिन भी नहीं| अभी फ़िलहाल तो लोगों में इन थिएटर प्लेज की जरूरत बारे प्रचार ही जोरो-शोरों से हो जायेगा तो करिश्मा हो जायेगा|
अब चलते-चलते आर्यसमाज के संभावित फ्यूचर कोर्स पर:
करतारपुर साहिब का खुलना आर्यसमाज को बहुत बड़ा संदेश देता है| संदेश देता है कि किन वजहों-मंशाओं से आर्यसमाज बना, वह सब चर्चित होता रहेगा, इसमें आई या शुरू दिन से रही या जानबूझकर डाली गई कुरीति व् बुराईयों को दूर कर लिया जायेगा पंरतु सबसे पहले इसको फंडी के ढोंग-पाखंड से मुक्त कर पुनः बहाल करवाया जाए| ताकि एक ऐसा प्लेटफार्म आर्यसमाजियों के हाथ में जरूर रहे जिसमें उनके पुरखों के खून पसीने से बनी इमारतें-जमीनें-संस्थाएं हैं, वह निरंतर इनके ही नियंत्रण में रहें| इन्हीं इमारतों-जमीनों पर कब्जा करने को फंडियों की निगाह गड़ी हुई है|
मूर्ती-पूजा नहीं करने का कांसेप्ट जो कि मूर्ती-रहित दादा नगर खेड़ों के आध्यात्म से उठाकर बिना इन खेड़ों को इसका क्रेडिट दिए आर्यसमाज में डाला गया था यह हर किसी को स्पष्ट किया जाए| सिखिज्म जैसे अपने पुरखों को ही अपना भगवान् मानता है ऐसे ही आर्य समाज भी अपने पुरखों को ही अपना भगवान मानता है; और इस आस्था की जड़ें जाती हैं पुरखों के स्थापित किये दादा नगर खेड़ों में, उदारवादी जमींदारी की थ्योरियों में| सिखिज्म जैसे माइथोलॉजी से दूर रहा है ऐसे ही आर्यसमाज भी माइथोलॉजी से दूर वैज्ञानिक तर्कों पर खड़ा है|
इनको खड़ा कर लीजिये, दुरुस्त कर लीजिये वरना आने वाली पीढ़ियाँ धिक्कारेंगी|
जिनको कीचड़ में खिलने वाले फूल चाहियें उनको कहिये कि अपने घरों-समाजों-वर्णों में भाई से भाई, वर्ण से वर्ण, जाति से जाति, इस बनाम उस आदि वाली द्वेष-नफरत-ईर्ष्या आदि वाला फैला के कीचड़ जितने चाहें उतने ऐसे फूल उगा लें; परन्तु हमसे यह उम्मीद ना रखें कि उनके ऐसे फूलों के लिए अपने घर-समाज-सम्प्रदायों में कीचड़ फैलाएंगे या फैलने देंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment