जिस "आज़ाद हिन्द सरकार" की यह फ़ौज थी, उसकी स्थापना स्थापना 1 दिसंबर 1915 को नोबेल पुरस्कार नॉमिनी मुरसन नरेश राजा महेंद्र प्रताप ठेनुवा जी ने काबुल में की थी| राजा जी इसके प्रथम राष्ट्रपति थे, बरकतुल्ला खान प्रधानमंत्री व् सरदार मोहन सिंह इस सरकार की आर्मी यानि "आज़ाद हिन्द फ़ौज" के प्रथम कमांडर थे| दूसरे कमांडर रास बिहारी बोस बने व् उनके बाद तीसरे कमांडर बने नेता जी सुभाषचंद्र बोस| इस सरकार को 31 देशों का समर्थन प्राप्त था|
जब फरवरी 2016 में 35 बनाम 1 वालों द्वारा जाट बनाम नॉन-जाट छिड़वाया गया, वह भी स्वधर्म वालों की स्टेट-सेण्टर दोनों जगह सरकार होते हुए तो कुलमुलाहट हुई जानने की कि यह जाट ऐसी क्या बड़ी तौब हैं या रहे हैं जो 35 बनाम 1 में इनका ही नाम आया, बाकी 35 को छोड़कर| तो तथ्यों को सही से खोजना शुरू किया| तब जाकर बहुत से तथ्यों में से एक ऐतिहासिक तथ्य जो करेक्ट किया गया वह यह कि नेता जी प्रथम नहीं अपितु तीसरे कमांडर थे आज़ाद हिन्द फ़ौज के जो आज़ाद हिन्द सरकार की डिफेंस विंग थी, जिस सरकार के जिसके संस्थापक व् राष्ट्रपति जाट राजा महेंद्र प्रताप जी हुए| किसी ने सही कहा है कि "जाट जितना दबया जायेगा वह उतना ही बढ़ेगा"| भला हो इस 35 बनाम 1 वालों का वरना हम तो यही पढ़ते आये थे कि "आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना किसने करी" और जवाब बताया जाता रहा नेता जी ने| इसीलिए जाट भोला है उसको नार्मल परिस्तिथियों में फर्क ही नहीं पड़ता कि उसके किये का क्रेडिट किसको दिया जा रहा है या कौन आपस में बाँट रहे हैं|
हाँ, मगर इससे नेता जी का बलिदान किसी भी तरीके से अंश मात्र भी कम नहीं हो जाता| उन जैसा देशभक्त सदियों में एक होता है| नेता जी को उनके जन्मदिवस पर पुन: शत-शत नमन|
और यह इस बंगाली बाबू का जलवा व् इनको हरयाणवियों द्वारा (विशाल हरयाणा) निश्छल गले से लगाने की तासीर थी जिसकी वजह से हरयाणवी लोग अपने अच्छे-खासे हरयाणवी पहनावे को "बंगाली कुरता-पजामा" कहने लगे| वरना बंगाली कुरता कटे गले का होता है व् हरयाणवी कुरता कॉलर वाला, बंगाल में कुर्ते के नीचे धोती पहनते हैं जबकि हरयाणवी में पजामा| करेक्ट कर लीजिये इस फैक्ट को भी कि बंगाली में कुरता-पायजामा नाम की कोई ड्रेस नहीं होती| हम हरयाणवी इसको बंगाली कुरता-पायजामा बोलते हैं तो सिर्फ इस बंगाली बाबू को अपना सम्मान दिखाने को|
लेकिन यह प्यार यह निश्छलता उन बेशर्मों को इतनी सहजता से समझ नहीं आती जो रोजी-रोटी से ले छत तक के आसरे को आ जमते हैं विशाल हरयाणा में परन्तु बोलने के नाम पर इनके मुंह से हरयाणवियों की बुराइयाँ ही मिलती हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
जब फरवरी 2016 में 35 बनाम 1 वालों द्वारा जाट बनाम नॉन-जाट छिड़वाया गया, वह भी स्वधर्म वालों की स्टेट-सेण्टर दोनों जगह सरकार होते हुए तो कुलमुलाहट हुई जानने की कि यह जाट ऐसी क्या बड़ी तौब हैं या रहे हैं जो 35 बनाम 1 में इनका ही नाम आया, बाकी 35 को छोड़कर| तो तथ्यों को सही से खोजना शुरू किया| तब जाकर बहुत से तथ्यों में से एक ऐतिहासिक तथ्य जो करेक्ट किया गया वह यह कि नेता जी प्रथम नहीं अपितु तीसरे कमांडर थे आज़ाद हिन्द फ़ौज के जो आज़ाद हिन्द सरकार की डिफेंस विंग थी, जिस सरकार के जिसके संस्थापक व् राष्ट्रपति जाट राजा महेंद्र प्रताप जी हुए| किसी ने सही कहा है कि "जाट जितना दबया जायेगा वह उतना ही बढ़ेगा"| भला हो इस 35 बनाम 1 वालों का वरना हम तो यही पढ़ते आये थे कि "आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना किसने करी" और जवाब बताया जाता रहा नेता जी ने| इसीलिए जाट भोला है उसको नार्मल परिस्तिथियों में फर्क ही नहीं पड़ता कि उसके किये का क्रेडिट किसको दिया जा रहा है या कौन आपस में बाँट रहे हैं|
हाँ, मगर इससे नेता जी का बलिदान किसी भी तरीके से अंश मात्र भी कम नहीं हो जाता| उन जैसा देशभक्त सदियों में एक होता है| नेता जी को उनके जन्मदिवस पर पुन: शत-शत नमन|
और यह इस बंगाली बाबू का जलवा व् इनको हरयाणवियों द्वारा (विशाल हरयाणा) निश्छल गले से लगाने की तासीर थी जिसकी वजह से हरयाणवी लोग अपने अच्छे-खासे हरयाणवी पहनावे को "बंगाली कुरता-पजामा" कहने लगे| वरना बंगाली कुरता कटे गले का होता है व् हरयाणवी कुरता कॉलर वाला, बंगाल में कुर्ते के नीचे धोती पहनते हैं जबकि हरयाणवी में पजामा| करेक्ट कर लीजिये इस फैक्ट को भी कि बंगाली में कुरता-पायजामा नाम की कोई ड्रेस नहीं होती| हम हरयाणवी इसको बंगाली कुरता-पायजामा बोलते हैं तो सिर्फ इस बंगाली बाबू को अपना सम्मान दिखाने को|
लेकिन यह प्यार यह निश्छलता उन बेशर्मों को इतनी सहजता से समझ नहीं आती जो रोजी-रोटी से ले छत तक के आसरे को आ जमते हैं विशाल हरयाणा में परन्तु बोलने के नाम पर इनके मुंह से हरयाणवियों की बुराइयाँ ही मिलती हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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