Thursday 23 January 2020

समुदाय विशेषों में जमीनों बारे गलत धारणा भरने-भरवाने वाले फंडियों के लिए!

गलत धारणा क्या?: 'तुम, तुम्हारे पुरखे पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनकी जमीनों पर मजदूरी करते आये हो तो इसलिए तुमको भी जमीनों में हक मिलने चाहियें|'

अगर हम इन्हीं कारिस्तानियों पर आ गए और तुम्हारे जैसे यह जहरबुझी जुबानों वाले जहर फ़ैलाने लगे तो ना कोई फैक्ट्रियों-दुकानों का मालिक बचेगा और ना कोई मंदिर-डेरों का| क्योंकि फैक्टरियों में हिस्से बारे हर मजदूर को हम तुम्हारा ही लॉजिक पकड़ाएंगे कि 'तुम, तुम्हारे पुरखे पीढ़ी-दर-पीढ़ी फैक्ट्रियों-दुकानों में मजदूरी करते आये हो तो इसलिए तुमको भी फैक्टरियों-कंपनियों-दुकानों में हक मिलने चाहियें|' और मंदिर-डेरे तो हैं ही 100% दानकर्ताओं की प्रॉपर्टी तो उनमें से तो आंदोलन चला के कभी भी हिस्सेदारी क्लेम कर लो|

इसलिए हे फंडियों, इतने भी स्याणे नहीं हो जितने समझते हो| तुम्हारी स्यानपत तभी तक चलती है जब तक जमीनों वाले खामोश हैं| जिस दिन धुन में उत्तर आये लोगों के दर-दरवाजों पर भीख मांगने को भी तरसोगे तुम| टिक के खा लो राजी-रजा से जो भी समाज खिला रहा है| जमीनों वाले किसान हैं, वह फसल उगाना जानते हैं तो उससे बेहतर उसको काटना जानते हैं और तुम्हारे जैसे खरपतवार को तो हा-के काटते हैं|

और जिनको जमीन वालों के खिलाफ भड़का रहे हो उनको तो जमीन वाले व् जमीन वालों के पुरखे काम के बदले पैसा-अनाज-तूड़ा आदि रुपी दिहाड़ी भी देते आये हैं, अकबर तक के जमानों से जमीनों के टैक्स भरने के रिकार्ड्स इंडिया से ले लन्दन तक की ब्रिटिश लाइब्रेरीज के आर्काइज में पड़े हैं| तुम अपनी सोचो कि तुम कैसे मलकियतें साबित करोगे, उन ठिकानों की जहाँ बैठ तुम्हें ऐसी वाहियातें सूझती हैं?

"खुद की जीरो इन्वेस्टमेंट, लोगों से 100% दान-रुपी इन्वेस्टमेंट के मॉडल चला के गुजारे करने वालो; "जिनके घर शीशों के होते हैं, वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते"| याद रखना, तुम अगर जमीनों के अन्यायकारी बंटवारों की बात उठाओगे तो फैक्ट्रियों व् मंदिर-डेरों की प्रॉपर्टी-आमदनी के बंटवारे भी हो सकते हैं| और जैसा कि ऊपर बताया, जमीनों से पहले फैक्ट्री-मंदरों-दुकानों के बंटवारे बाँटने बनेंगे तुम्हारे ही लॉजिक पर चले तो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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