Saturday, 11 January 2020

नगर खेड़े दी खैर वे साइयाँ, नगर खेड़े दी खैर; मुक्क जां सबतों बैर वे साइयाँ मुक्क जां सबतों बैर!


पंजाबी भाषा में "दादा नगर खेड़े" पर बहुत ही आध्यात्मिक व् रोमांचित करने वाला गाना आया है कंवर ग्रेवाल जी दा:

शीर्षक है: "नगर खेड़े दी खैर वे साइयाँ, नगर खेड़े दी खैर; मुक्क जां सबतों बैर वे साइयाँ मुक्क जां सबतों बैर" - तुस्सी वी सुनो from youtube video link given at the end of this post.|

इसमें दर्जनों ऐसे शब्द हैं जो सिर्फ पंजाबी, हरयाणवी या उर्दू भाषा में मिलते हैं परन्तु हिंदी में नहीं मिलते| हिंदी भी अच्छी भाषा है परन्तु वह भी सीखिए-जानिये यानि हरयाणवी जिसको हरयाणवी ग्रामीण तो आज भी बोलता है| मेरे जैसे सरफिरे एनआरआई हरयाणवी तो जब भी कोई हरयाणवी मिलता है तो बात ही सिर्फ हरयाणवी में होती हैं| फिर नहीं याद रहती हिंदी, इंग्लिश या फ्रेंच|

फंडी का एक फंडा होता है अपने एजेंडा को फैलाने का कि अपनी बात झूठ हो या सच उसको फ़ैलाने व् स्थापित करने हेतु अगर 100 बार भी बोलना पड़े तो बोलते-फैलाते रहो जब तक कि वह अंतत: सच की तरह स्थापित ना हो जाए जनमानस में| और इसके मोटिवेशन के लिए यह जो नेरेटिव रखते हैं उसको कहते हैं कि, "100 बार बोलने से तो झूठ भी सच हो जाता है"| यही तो फंडा है इनका माय्थोलॉजीज को सत्य की तरह स्थापित करवाने का पब्लिक में; वरना देख लो माइथोलॉजी के नाम पर इन्होनें जितना भी स्थापित किया है आजतक उसके जो अगर 95% के कहीं कोई आर्कियोलॉजिकल से ले विभिन्न गज़ेटियर तक में जिक्रे भी मिल जाएँ तो|

मुझे इनकी यह सनक अच्छी लगती है परन्तु झूठ को सच सत्यापित करवाने हेतु की अपेक्षा इसके विपरीत सत्य को जिन्दा जिलाये रखने हेतु| इसलिए दादा नगर खेड़ों जैसी वास्तविक चीजों को जिन्दा रखने हेतु, पुरखों की कल्चरल किनशिप को बनाये रखने हेतु फैलवाइये/फैलाईये| वह 100 बार झूठ फैलाते नहीं थकते आप 5-10 बार अपनी औलादों-पीढ़ियों को पुरखों की यह मान-मान्यताओं वाली सच्चाई नहीं बता सकते? कैसे दादा-दादी-नाना-नानी हो रे तुम आज वालो, जो पोता-पोती-दोहता-दोहतियों को तुम्हारे बाप-दादों-माँ-दादियों की यह चीजें ही पास नहीं कर सकते अगर? या तुम कुछ न्यारे ही उतरे हो धरती पर?

चलिए फैलाइये, सुनिए-सुनवाइये| वरन यह गाना तो ऐसा है कि ब्याह-शादियों से ले बैठकों तक में बैठकर सुबह-शाम सुनिए| धुन भी कितनी रूहानी बनाई है गायक व् उनकी टीम ने| आहा मेरा तो बारम्बार सुनकर भी जी नहीं भरा है, सुने ही जा रहा हूँ, "नगर खेड़े दी खैर वे साइयाँ, नगर खेड़े दी खैर; मुक्क जां सबतों बैर वे साइयाँ मुक्क जां सबतों बैर"|

रमेश चहल भाई को यह गाना भेजने के लिए ख़ास धन्यवाद|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

YouTube Link of the Song: https://www.youtube.com/watch?v=60wwmuViptk

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