1) यहाँ गाम-नगरों के नाम खेड़े (ललित खेड़ा) हैं तो खेड़ी (शीला खेड़ी) भी हैं, गढ़ (बहादुरगढ़) हैं तो गढ़ी (राखीगढ़ी) भी हैं, कलां (खानपुर कलां) हैं तो खुर्द (उगालन खुर्द) भी हैं|
2) यहाँ "दादा नगर खेड़ा" पुल्लिंग शब्द के धाम को 100% औरतों की अगुवाई व् आधिपत्य में (कोई मर्द पुजारी सिस्टम नहीं) धोका जाता है तो परस-चुपाड़ स्त्रीलिंग शब्द की जगह में अधितकर मर्द बैठते हैं|
3) बंगालियों को जब विधवा विवाह आंदोलन चलाने की सूझी (राजाराम मोहनराय के वक्त), उससे युगों-युगों पहले से यहाँ विधवा विवाह भी होते थे और विधवा स्त्री को समाज के हर फंक्शन में बराबरी से भाग लेने का अधिकार रहा है; यह नहीं कि कई समाजों की तरह मनहूस मान कर कालकोठरियों या विधवाश्रमों में सड़ने को फेंक दी जाती हो|
4) 99% खेड़े-खेड़ी नॉन-पुरोहित जमात के बसाये हुए हैं; कभी कोई अपशकुन नहीं हुआ आजतक| यह उन बंदबुद्धियों के लिए जो हर बात पर टूने-टोटके-शोण-कसोण के लिए एक विशेष जमात को बुलाने की रयाँ-रयाँ लगाते रहते हैं|
5) 'देहल-धाणी की औलाद' का दादा नगर खेड़े बड़े बीरों का जो नियम है इसके अनुसार पिता के गौत की जगह माँ का गौत भी औलाद का गौत हो सकता है; पूरे विश्व में यह, सिर्फ इस सिस्टम में है|
6) सर्वखाप, खाप या पंचायत सब के सब स्त्रीलिंग शब्द हैं, कभी सोचा इस एंगल से? आखिर क्यों रखे गए थे यह शब्द स्त्रीलिंग में? क्या भावना थी उदारवादी जमींदारों की इसके पीछे?
गुस्ताखी माफ़: खेड़े-खेड़ी, गढ़-गढ़ी के कॉम्बिनेशंस की भाँति मंदिर-मंदिरी या मठ-मठी या डेरा-डेरी या अखाडा-अखाडी देखे-सुने आपने? यह विश्व के सबसे कटटर मर्दवाद के अड्डे हैं| और इसीलिए इनको हरयाणवी उदारवादी जमींदारी खटकती है, इनकी खाप खटकती है|
ऊपर के छह उदाहरणों जैसे और भी बहुतेरे उदाहरण हैं| मकसद बताने का यही है कि किसी भी टीवी सीरियल-फिल्म-एनजीओ-गोलबिंदीगैंग-कथावाचक या 35 बनाम 1 टाइप्स वाले नफरत व् सम्प्रदायवाद के कीड़ों से जेंडर न्यूट्रैलिटी या सेंसिटिविटी सीखने-सुनने से पहले अपने पुरखों के युगों-पुराने स्थापित व् सत्यापित इस सिस्टम को जान लें तो शायद ही आपका जी करेगा इनको सुनने तक को भी| वरन आपको इनकी 90% बातें सबसे बड़ा जाहिलपना व् गंवारपना लगेंगी, ना-काबीले-गौर लगेंगी| तो इससे पहले यह इनका जाहिलपना और गँवारपना आपमें ठूंसें, अपनी चीजों को खुद जानें व् समझें; उसके बाद इनके पास भी कुछ काम का लगे तो ग्रहण कर लेवें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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