आज़ादी से पहले इंडिया में लंदन के जरिये तीन चैनलों से राजनीति चलती थी|
अगर तब के यूनाइटेड पंजाब व् उत्तरी भारत की खासतौर से बात करूँ तो यह थे:
नंबर एक - जैनी
नंबर दो - सनातनी (कांग्रेस-आरएसएस आदि)
नंबर तीन - उदारवादी जमींदार यानि सर छोटूराम व् यूनियनिस्ट पार्टी
इन तीनों में सबसे ज्यादा फायदा सर छोटूराम ने किया, अपने लंदन से सेट किये अलाइंस चैनल के माध्यम से हर वर्ग के इकनोमिक व् सिविल राइट्स मामलों में|
पहले दो चैनल आज भी खुले हैं, यूँ के यूँ चल रहे हैं परन्तु तीसरा चैनल जारी रखने की सर छोटूराम के बाद किसी ने ख़ास जेहमत नहीं उठाई| जबकि उन द्वारा किसान राजनीति की तैयार की गई बिसात पर स्टेट से ले नेशनल लेवल के बड़े-बड़े किसान-राजनीति के पुरोधा सब खेल गए|
आज के दिन इस चैनल को फिर से शुरू करने की सर छोटूराम के जमानों से भी ज्यादा जरूरत आन पड़ी है| क्योंकि आज़ादी के 70 सालों में किसान राजनीति व् इनकी सामाजिक संस्थाओं (जैसे कि खाप) की जो दुर्गति की गई है या हुई है इतनी तो 200 साल के राज में ना कभी अंग्रेजों ने करी और ना उनसे पहले 700 साल के राज में मुस्लिमों ने करी| उन्होंने यातनाएं दी जरूर परन्तु खापों जैसी संस्थाओं को इतना जलील कभी नहीं किया कि कोई खुद को खाप-परिवेश का बताने से ही कतराने लगे|
जब भी गहनता से सोचता हूँ कि क्या-कैसे सम्भव होगा दोबारा किसान राजनीति के दिन वापिस लाना? तो सबसे मजबूत चैनल सर छोटूराम वाला ही नजर आता है| सर छोटूराम की समझ को दाद देता हूँ कि जिसकी जिद्द सी थी कि, "अगर अलायन्स करके ही राजनीति करनी है तो, फंडियों की बजाये सीधा उनसे यानि अंग्रेजों से करूँ; जिनसे खुद फंडी भी अलायन्स में चलता है"| अंग्रेज, जो कम-से-कम तेरे कल्चर-कस्टम में दखल-अंदाजी नहीं करते, फंडी तो दुश्मन ही सबसे बड़ा कल्चर- कस्टम का होता है| फंडी आपकी इकॉनमी से पहले आपके कल्चर-कस्टम को नेस्तोनाबूत करने के माहौल बनाता है; आपको उससे नफरत करनी सिखाता है, उसको हेय दृष्टि से देखना सिखाता है| जबकि एक ख़ास बात और कि फंडी व् अंग्रेज आपस में नीचे-नीचे नफरत भी करते थे जबकि सर छोटूराम को अपनी कोई भी बात अंग्रेजों से मनवानी होती थी तो डंके की चोट पर मनवा लेते थे| याद कीजिये अंग्रेजों से गेहूं के भाव 6 रूपये मन की बजाये 11 रूपये मन करवा लेने का किस्सा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
नंबर एक - जैनी
नंबर दो - सनातनी (कांग्रेस-आरएसएस आदि)
नंबर तीन - उदारवादी जमींदार यानि सर छोटूराम व् यूनियनिस्ट पार्टी
इन तीनों में सबसे ज्यादा फायदा सर छोटूराम ने किया, अपने लंदन से सेट किये अलाइंस चैनल के माध्यम से हर वर्ग के इकनोमिक व् सिविल राइट्स मामलों में|
पहले दो चैनल आज भी खुले हैं, यूँ के यूँ चल रहे हैं परन्तु तीसरा चैनल जारी रखने की सर छोटूराम के बाद किसी ने ख़ास जेहमत नहीं उठाई| जबकि उन द्वारा किसान राजनीति की तैयार की गई बिसात पर स्टेट से ले नेशनल लेवल के बड़े-बड़े किसान-राजनीति के पुरोधा सब खेल गए|
आज के दिन इस चैनल को फिर से शुरू करने की सर छोटूराम के जमानों से भी ज्यादा जरूरत आन पड़ी है| क्योंकि आज़ादी के 70 सालों में किसान राजनीति व् इनकी सामाजिक संस्थाओं (जैसे कि खाप) की जो दुर्गति की गई है या हुई है इतनी तो 200 साल के राज में ना कभी अंग्रेजों ने करी और ना उनसे पहले 700 साल के राज में मुस्लिमों ने करी| उन्होंने यातनाएं दी जरूर परन्तु खापों जैसी संस्थाओं को इतना जलील कभी नहीं किया कि कोई खुद को खाप-परिवेश का बताने से ही कतराने लगे|
जब भी गहनता से सोचता हूँ कि क्या-कैसे सम्भव होगा दोबारा किसान राजनीति के दिन वापिस लाना? तो सबसे मजबूत चैनल सर छोटूराम वाला ही नजर आता है| सर छोटूराम की समझ को दाद देता हूँ कि जिसकी जिद्द सी थी कि, "अगर अलायन्स करके ही राजनीति करनी है तो, फंडियों की बजाये सीधा उनसे यानि अंग्रेजों से करूँ; जिनसे खुद फंडी भी अलायन्स में चलता है"| अंग्रेज, जो कम-से-कम तेरे कल्चर-कस्टम में दखल-अंदाजी नहीं करते, फंडी तो दुश्मन ही सबसे बड़ा कल्चर- कस्टम का होता है| फंडी आपकी इकॉनमी से पहले आपके कल्चर-कस्टम को नेस्तोनाबूत करने के माहौल बनाता है; आपको उससे नफरत करनी सिखाता है, उसको हेय दृष्टि से देखना सिखाता है| जबकि एक ख़ास बात और कि फंडी व् अंग्रेज आपस में नीचे-नीचे नफरत भी करते थे जबकि सर छोटूराम को अपनी कोई भी बात अंग्रेजों से मनवानी होती थी तो डंके की चोट पर मनवा लेते थे| याद कीजिये अंग्रेजों से गेहूं के भाव 6 रूपये मन की बजाये 11 रूपये मन करवा लेने का किस्सा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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