यह दो ज्ञान पकड़ा के जनता को,
करके जनता का ब्रैनवॉश; बना के दिमागों से शूद्र-दरिद्र, मौज मार रहे देश
में फंडी व् कॉर्पोरेट वाले भक्त; कौनसे दो ज्ञान?
एक: "तुम क्या ले के आये थे, क्या ले के जाओगे, क्यों रोते हो, तुम्हारा क्या था जो खो गया, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं दिया, जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जाएगा"! गारंटी दूँ, जो इस तथाकथित ज्ञान को एक भी "यस-बैंक" टाइप घोटालों की चपेट में आने वाला जिंदगी में दोबारा जुबान पर ला ले तो|
दूसरा: कुछ उद्घोष जैसे कि "भारत माता की जय", "वन्दे मातरम" और "जय श्री राम" आदि-आदि!
और भुगत इन भक्ति के चासडूओं के साथ सारा देश रहा है| और धर के नाच लो फंडी-फलहरियों को सर पे| देश-देश क्या, अपने-अपने घरों की चाबियाँ भी इनको दे दो; जो नहीं सबके घरों के यस-बैंक से ले सारे प्राइवेट कॉर्पोरेट - सरकारी इंस्टीटूशन्स बेचने-रसातल में बैठाने जैसे ये बड्डे-बड्डे चुघड़े थारे घरों के ना चास दें तो कहियो|
भक्ति-आध्यात्म राह और रूह लगता ही सुहाया करै, कंचनों की तरह माचने से यूँ ही का...च लिकड़ा करै, ज्यों अब निकाल रखी फंडियों ने| इनका क्या बिगड़ै, कुछ नहीं क्योंकि आबादी से पहले बर्बादी की ट्रेनिंग लिए होता है फंडी|
वही बात कर्म से कोई शूद्र ना हुआ करता, असली शूद्र दिमाग व् सोच का हुआ करता है; जो फंडियों ने सबसे ज्यादा तथाकथित पढ़ेलिखे व् मॉडर्न शहरी बनाये हैं| कसर गामों में भी कम ना रह रही| यह शुद्रपणा ही है कि तुम्हारे बैंक एकाउंट्स खाली कर दिए, नौकरी कोई छोड़ी नहीं और तुम फिर भी चुसक नहीं रहे या भक्ति में ही डूबे पड़े हो| दुत्कार दो इन फंडियों को अभी भी वक्त है, वक्त है कि अभी फंडी वह प्रलय नहीं लाये हैं; जिसके लिए कि यह सधाए और पठाये हुए हैं|
या फिर इन जैसे ही बनो हो तो कम-से-कम अपने तो घर, बैंक खाते भर लो; इतने बड़े उस्ताद स्तर के सयाने तुम नहीं| 99% अपनी लांगड़ सी यूँ फड़वाये हांडै सैं इनके हाथां ज्युकर पागल कुत्ते के फटफेडे में आ गए हों|
A fresh satire news:
धर्मगुरु लोगों ने सरकार से कहा है कि "यस-बैंक" के लुटे हुए ग्राहकों को हमारे लिए यह वाला गीता-ज्ञान जनता में प्रचारित करने की ड्यूटी लगाई जाए:
"तुम क्या ले के आये थे, क्या ले के जाओगे, क्यों रोते हो, तुम्हारा क्या था जो खो गया, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं दिया, जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जाएगा"
धर्मगुरुवों का तर्क है कि इस तरह लुटे हुए लोग ही इस ज्ञान के असली प्रचारक कहला सकते हैं व् लोगों को इसको मानने हेतु बेहतरीन तरीके से कन्विंस कर सकते हैं|
परन्तु अभी तक सरकार ने जितनों को भी कांटेक्ट किया है सब सरकार और धर्मवालों को गालियाँ देते सुने गए हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
एक: "तुम क्या ले के आये थे, क्या ले के जाओगे, क्यों रोते हो, तुम्हारा क्या था जो खो गया, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं दिया, जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जाएगा"! गारंटी दूँ, जो इस तथाकथित ज्ञान को एक भी "यस-बैंक" टाइप घोटालों की चपेट में आने वाला जिंदगी में दोबारा जुबान पर ला ले तो|
दूसरा: कुछ उद्घोष जैसे कि "भारत माता की जय", "वन्दे मातरम" और "जय श्री राम" आदि-आदि!
और भुगत इन भक्ति के चासडूओं के साथ सारा देश रहा है| और धर के नाच लो फंडी-फलहरियों को सर पे| देश-देश क्या, अपने-अपने घरों की चाबियाँ भी इनको दे दो; जो नहीं सबके घरों के यस-बैंक से ले सारे प्राइवेट कॉर्पोरेट - सरकारी इंस्टीटूशन्स बेचने-रसातल में बैठाने जैसे ये बड्डे-बड्डे चुघड़े थारे घरों के ना चास दें तो कहियो|
भक्ति-आध्यात्म राह और रूह लगता ही सुहाया करै, कंचनों की तरह माचने से यूँ ही का...च लिकड़ा करै, ज्यों अब निकाल रखी फंडियों ने| इनका क्या बिगड़ै, कुछ नहीं क्योंकि आबादी से पहले बर्बादी की ट्रेनिंग लिए होता है फंडी|
वही बात कर्म से कोई शूद्र ना हुआ करता, असली शूद्र दिमाग व् सोच का हुआ करता है; जो फंडियों ने सबसे ज्यादा तथाकथित पढ़ेलिखे व् मॉडर्न शहरी बनाये हैं| कसर गामों में भी कम ना रह रही| यह शुद्रपणा ही है कि तुम्हारे बैंक एकाउंट्स खाली कर दिए, नौकरी कोई छोड़ी नहीं और तुम फिर भी चुसक नहीं रहे या भक्ति में ही डूबे पड़े हो| दुत्कार दो इन फंडियों को अभी भी वक्त है, वक्त है कि अभी फंडी वह प्रलय नहीं लाये हैं; जिसके लिए कि यह सधाए और पठाये हुए हैं|
या फिर इन जैसे ही बनो हो तो कम-से-कम अपने तो घर, बैंक खाते भर लो; इतने बड़े उस्ताद स्तर के सयाने तुम नहीं| 99% अपनी लांगड़ सी यूँ फड़वाये हांडै सैं इनके हाथां ज्युकर पागल कुत्ते के फटफेडे में आ गए हों|
A fresh satire news:
धर्मगुरु लोगों ने सरकार से कहा है कि "यस-बैंक" के लुटे हुए ग्राहकों को हमारे लिए यह वाला गीता-ज्ञान जनता में प्रचारित करने की ड्यूटी लगाई जाए:
"तुम क्या ले के आये थे, क्या ले के जाओगे, क्यों रोते हो, तुम्हारा क्या था जो खो गया, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं दिया, जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जाएगा"
धर्मगुरुवों का तर्क है कि इस तरह लुटे हुए लोग ही इस ज्ञान के असली प्रचारक कहला सकते हैं व् लोगों को इसको मानने हेतु बेहतरीन तरीके से कन्विंस कर सकते हैं|
परन्तु अभी तक सरकार ने जितनों को भी कांटेक्ट किया है सब सरकार और धर्मवालों को गालियाँ देते सुने गए हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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