बात, कोरोना के चलते पुजारियों द्वारा सरकारों से बेरोजगारी भत्ता मांगने के मद्देनजर है|
इस विषय पर हुड्डा सरकार में हुआ भनभौरी मंदिर प्रकरण याद होगा? भनभौरी मंदिर में पुजारियों को नौकरी पर रखने का विरोध कर, उस वक्त की हुड्डा सरकार से पुजारियों को सरकारी कर्मचारी पालिसी के तहत तनख्वाह पर रखने का फैसला किसने वापिस करवाया था? खुद पुजारियों ने? यह कहते हुए कि हमारे पास चढ़ावा बहुत आता है, वह हमको तनख्वाह से कहीं ज्यादा पड़ता है, तो सरकारी तनख्वाह के लिए इतना बड़ा चढ़ावा सरकार के हवाले कैसे कर दें, हम उसको नहीं छोड़ेंगे| तो अब क्या नौबत आ गई, जो सरकारी भत्ते चाहियें?
वैसे भी मंदिर में आया चंदा-चढ़ावा-पैसा-सोना कोई किसान की खुले आसमान में खड़ी सफल थोड़े है कि ओले-बारिश-तूफ़ान में सब बह गई? रिजर्व में पड़े होंगे? कोरोना जैसे संकट में खुद के धर्म की जनता की मदद हेतु तो इसको निकालोगे नहीं शायद तो क्या इससे अपने खुद के खर्चे भी नहीं चला सकते? तो फिर इस धन का करते क्या हो? वह कुछ फेसबुक वालों की फैलाये कयासों को सच मानें तो कहीं थाईलैंड या कम्बोडिया तो नहीं भेजते?
भनभौरी प्रकरण दरअसल, यह जाट की असीम दयालुता का प्रमाण है| ऐसी दयालुता यह जाट ही दिखाते हैं, वरना अब खटटर से हुड्डा (एक जाट) द्वारा "दान में मिली धौली की जमीनो" की मल्कियतें जो ब्राह्मणों के नाम की गई थी, और खटटर ने आते ही वह वापिस ही छीन ली, वह वापिस ही ले कर दिखा दो? बावजूद इसके दिखा दो कि आरएसएस व् बीजेपी की घर की सरकार है? बात बुरी है और डंके की चोट पर कड़वी है परन्तु कहूंगा जरूर कि जाट, धौली के नाम पर दान में जमीनें दे के भी 80% ब्राह्मण की निगाह में वह दर्जा नहीं पाता, जो खट्टर-बीजेपी-आरएसएस जैसे इनसे ही वोट ले के, इनकी ही धौली की जमीनें तक वापिस छीन के भी पा रहे हैं|" किसी से छुपी बात नहीं कि दोबारा बीजेपी की सरकार बनवाने में जिन समुदायों का अग्रणी योगदान है, उनमें एक आप भी हैं|
बाकी मुझे क्या? यह तो एक बड़े ही शालीन ब्राह्मण मित्र ने ही मेरी इससे संबंधित एक पिछली पोस्ट पर सवाल खड़ा कर दिया तो भाई पढ़ ले यह भी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इस विषय पर हुड्डा सरकार में हुआ भनभौरी मंदिर प्रकरण याद होगा? भनभौरी मंदिर में पुजारियों को नौकरी पर रखने का विरोध कर, उस वक्त की हुड्डा सरकार से पुजारियों को सरकारी कर्मचारी पालिसी के तहत तनख्वाह पर रखने का फैसला किसने वापिस करवाया था? खुद पुजारियों ने? यह कहते हुए कि हमारे पास चढ़ावा बहुत आता है, वह हमको तनख्वाह से कहीं ज्यादा पड़ता है, तो सरकारी तनख्वाह के लिए इतना बड़ा चढ़ावा सरकार के हवाले कैसे कर दें, हम उसको नहीं छोड़ेंगे| तो अब क्या नौबत आ गई, जो सरकारी भत्ते चाहियें?
वैसे भी मंदिर में आया चंदा-चढ़ावा-पैसा-सोना कोई किसान की खुले आसमान में खड़ी सफल थोड़े है कि ओले-बारिश-तूफ़ान में सब बह गई? रिजर्व में पड़े होंगे? कोरोना जैसे संकट में खुद के धर्म की जनता की मदद हेतु तो इसको निकालोगे नहीं शायद तो क्या इससे अपने खुद के खर्चे भी नहीं चला सकते? तो फिर इस धन का करते क्या हो? वह कुछ फेसबुक वालों की फैलाये कयासों को सच मानें तो कहीं थाईलैंड या कम्बोडिया तो नहीं भेजते?
भनभौरी प्रकरण दरअसल, यह जाट की असीम दयालुता का प्रमाण है| ऐसी दयालुता यह जाट ही दिखाते हैं, वरना अब खटटर से हुड्डा (एक जाट) द्वारा "दान में मिली धौली की जमीनो" की मल्कियतें जो ब्राह्मणों के नाम की गई थी, और खटटर ने आते ही वह वापिस ही छीन ली, वह वापिस ही ले कर दिखा दो? बावजूद इसके दिखा दो कि आरएसएस व् बीजेपी की घर की सरकार है? बात बुरी है और डंके की चोट पर कड़वी है परन्तु कहूंगा जरूर कि जाट, धौली के नाम पर दान में जमीनें दे के भी 80% ब्राह्मण की निगाह में वह दर्जा नहीं पाता, जो खट्टर-बीजेपी-आरएसएस जैसे इनसे ही वोट ले के, इनकी ही धौली की जमीनें तक वापिस छीन के भी पा रहे हैं|" किसी से छुपी बात नहीं कि दोबारा बीजेपी की सरकार बनवाने में जिन समुदायों का अग्रणी योगदान है, उनमें एक आप भी हैं|
बाकी मुझे क्या? यह तो एक बड़े ही शालीन ब्राह्मण मित्र ने ही मेरी इससे संबंधित एक पिछली पोस्ट पर सवाल खड़ा कर दिया तो भाई पढ़ ले यह भी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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