Thursday, 2 April 2020

सोचा रहा हूँ कि इस लॉक-डाउन में रामायण की तर्ज पर तो "खापायण" और महाभारत की तर्ज पर "खापरथ" लिख डालूं, क्योंकि!

1) फंडियों के कल्चर में अलसु-पलसु हो रखी, सेक्टरों में रह रही मेरी एक चचेरी भाभी बोली, "देवर जी देखना, अभी महाभारत में कृष्णलीला शुरू हो रही है|" मैंने पूछा, "हाँ री भावजराणी, टाइम पास के लिए देख रही हो या कृष्ण का कुछ फॉलो भी करती हो?" चामल के बोली, "अरे देवर जी, कृष्ण तो मेरे भगवान, ठाकुर, मुरारी सब कुछ हो चुके|" इसपे मैंने तो बस इतना क्या कहा, "फिर तो मुरारी को फॉलो करते हुए जैसे मुरारी ने उसकी बहन सुभद्रा को उसकी बुआ कुंती के लड़के अर्जुन के साथ लव-अफेयर में भगा दिया था, ऐसे ही आप भी अपने इकलौते लड़के को अपनी इकलौती ननंद की लड़की के साथ भगा सकती हो कोई प्रॉब्लम नहीं, ब्याह देना दोनों को? जैसे मुरारी ने ब्याही थी अपनी ही बहन अपनी ही बुआ के लड़के से?" उस दिन से मुंह फुलाएं हांडै सै मेरे तैं| व्हट्स-एप्प, फेसबुक सारै ब्लॉक मारे बैठी है| वजह पूछूं डायरेक्ट फ़ोन करके तो बोलती है, "क्यूँ-क्यूँ तुझे शर्म ना आई, ऐसी बात कहते हुए?" मैंने भी अबकी बार तो यह कहते हुए दबड़का दी, "मखा जब तुझे शर्म ना आती ऐसे-ऐसों को भगवान मानते हुए जो अपनी बहन, अपनी बुआ के लड़के के साथ भगाते हों तो मैं पुरखों के सिद्धांतो के विपरीत बात थारे भेजे में डालने तक का भी चोर? मुझे दिक्कत इससे नहीं है कि आप उनको भगवान मानती हो, मुझे दिक्कत इससे है कि उनका हवाला दे के आपको एक बात करने को कही तो आप उसी पे बिदक पड़ी? और मखा इन फंडियों की बेहूदगियों के चलते रूसै से तो 14 बै रूस्सी पड़ी रह| मनांदा मैं भी कोनी इब आगै|

एक और बात सोच रहा था, "अभी महाभारत में "गाम-गुहांड" की लड़कियों के साथ रासलीला करते हुए कृष्ण के एपिसोड्स आएंगे| सोच रहा था कि जिनके यहाँ ब्याह-शादी-प्रेम-लव का सिस्टम "गाम-गौत-गुहांड" के कालयजी सिद्धांत पर टिका है, वह क्या व् कौनसा अपना कल्चर बता के जस्टिफाई करेंगे इसको अपने बच्चों को?"

2) एक मुंह बोली बुआ डाइवोर्स लिए बैठी है, बोली, "बेटा रामायण वाले राम में तो कोई कमी नहीं है?" मखा अच्छा तो फूफा से डाइवोर्स क्यों ले रखा है, राम को मानती हो तो? राम की लुगाई ने तो तब भी ना डाइवोर्स की सोची थी जब वो बेवजह ही, वह भी गर्भवती होते हुए बनवास निकाल दी थी| और तेरे को फूफा सिर्फ इतना ही कहते थे कि घर में सिस्टम से रहो, कस्टम से रहो; मखा तेरे से अपने कल्चर-कस्टम तो फॉलो हुए ना, आई बड़ी राम की भक्तणी| तेरे को फूफा बोले कि सिर्फ तू अग्निपरीक्षा देगी? मखा उतर जाएगी आग में अकेली, बिना कोई सवाल करे फूफा से? उस दिन से जब भी फ़ोन करता हूँ तो "बुआ ठीक है के" का जवाब भी "हूँ-हूँ" में दे के फोन काट दे रही है|

सोच ली बस देख लिया| लानी ही पड़ेंगी अब तो रामायण की तर्ज पर "खापायण" और महाभारत की तर्ज पर "खापरथ"| क्योंकि यह पोस्ट यह तो साबित करती है कम-से-कम कि जैसे ही हम अपनी औरतों-बच्चों को अपने कल्चर-कस्टम की चीजें याद दिलाते हैं तो इनके भक्ति के भूत ऐसे उतर के भागते हैं जैसे किसी ने भूत उतरने का झाड़ा लगा दिया हो| अरे वाह, ये तो मैं बैठे-बिठाये फंडी नामक भूत भगवाओ बाबा बन गया| बोलो "फंडियों के फूफा फुल्ला भगत की, जय! जय हो, जय हो, जय हो|"

विशेष: राम हो या कृष्ण, यह पोस्ट दोनों के भगवान या इंसान जिस भी रूप में उनका अस्तित्व है उनको चैलेंज नहीं करती| यह पोस्ट सिर्फ तर्क व् अपने कल्चर-कस्टम्स की थ्योरियों का कम्पेरेटिव एनालिसिस करती है; और इसको उसी रूप में लिया जाए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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