क्या आप, किसी ऐसी फॅमिली को जानते हो जिसके यहाँ नियोग से औलाद हुई हो
और वह ढिंढोरा पीटती पाई गई हो कि देखो जी हमारे यहाँ जो बच्चे हुए हैं ये
इनके असली बाप के नहीं अपितु किसी के फल-खीर आदि से हुए हैं? किसी ऐसी
फॅमिली का पता चल भी जाए तो आप उनको कितना आदर-सम्मान-ओहदा-रुतबा देते हो,
मेरे ख्याल से दया की दृष्टि से देखते हुए साइड में कर देते हो? अगर इसके
विपरीत एक का भी जवाब हो तो, बेशक ऐसी कथा-कहानियों को अपना इतिहास-कल्चर
मानना अन्यथा अपने वास्तविक पुरखों को जानने की कोशिश करना|
दत्तक औलादें कोई अच्छा काम करें तो उनको आदर्श मानने में कोई बुराई नहीं
परन्तु इतना बड़ा भी आदर्श मत मान बैठना कि कहीं अपना वंशबेल व् कल्चर ही
उनसे जोड़ के देखने लगो और पता लगा कि इस चक्कर में दत्तक बाप भी जाति बाहर
वालों को बना बैठे| अगर मैं ऐसे खानदानों को अपना वंश या कल्चर बताऊंगा तो
दुनिया हँसेगी मुझपे कि क्या ऐसे निर्बुद्धि लोग थे तेरे पुरखे कि अगर
नियोग से तुम्हारी माओं को गर्भ धारण करवाए गए तो तुम राजे-महाराजे होते
हुए भी घर-खानदान की इतनी गंभीर बात गुप्त ना रखवा सके? वही करे यकीन ऐसी
कथा-कहानियों पर जिनकी अपनी बुद्धि भर्मित हो या चेतना मृत हो| और कोई यह
कहे कि अजी ऐसा तो इतिहास बताने हेतु करना पड़ता है, तो ऐसा है ऐसे बताने
वालों को कहो कि अपनी जाति, अपने खानदान वालों पे बना के सुना-बता-दिखा लें
ऐसा इतिहास| सीधी बात मैं कहा नहीं करता, लेकिन बात सीधी ही होती है बस
व्यक्त ऐसे तरीके से करता हूं कि किसी के अहम पर भी ना बैठूं और जो समझना
चाहता हो वह समझ भी जाए| हम शरीफ व् इंसनियत भरे खानदानों-जातियों के लोग
हैं, ऐसे किसी के परिवारों की निजताओं की बख्खियाँ उधेड़ना और उनको लोकचर्चा
का विषय बनाना ना हमारा डीएनए और ना हमारा कल्चर|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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