चार पीढ़ियों बाद भी इन्होनें इनके पुरखे का आदर्श पहनावा-चाक-चौपटा तक फॉलो
किया है| और एक ये हरयाणवी-पंजाबी उदारवादी जमींदार परिवेश के लोगों को
देख लो, ब्याह-शादी-तीज-त्योहारों-पंचायतों-सभाओं के मौकों पर भी पुरखों की
सफेद या सुनहरे रंग की पगड़ियां सिरों पर रखने में भी बोझिल हो चले हैं|
99% सरफुल्ले मिलेंगे, वह भी 4 पीढ़ी गैप के बाद नहीं, अपितु मात्र 1-2 ही
पीढ़ी गैप में ही| बताओ चित्पावनी आरएसएस वाले पेशवे क्यों ना तरक्की व् राज
की राह चढ़ेंगे? जिनको अपने पुरखों का कल्चर-कस्टम-बिरसा भलीभांति संभालना
आता हो, कौनसी रेहमत-खिदमत ना उनके कदमों में पड़ी होगी? यह इस पर रहते हैं
तभी तो कोई इनके साथ 35 बनाम 1 नहीं कर पाता| जो अपना कल्चर-कस्टम सर-माथे
लेकर चलने का जिगरा नहीं कर पाए, उसको कभी इंसान मत आंकना और ना उसके किसी
प्रभाव में चलना|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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