आज दिल्ली विजय दिवस के उपलक्ष्य में नीचे पढ़िए कि क्यों "दिल्ली को जाटों की बहु" कहा जाता है?
ऐसे 3 दिवस आते हैं महाराजा सूरजमल व् इनकी मित्र बिरादरियों के बाँटें, जब दिल्ली फतेह की गई| एक यह तारीख|
दूसरी दिल्ली फतेह की तारीख है फरवरी 1764, जब दिल्ली तीस-हजारी में सरदार जट्ट भघेल सिंह धालीवाल जी द्वारा दिल्ली फतेह की गई थी| उन्होंने 30 हजार सेना के साथ दिल्ली जीती थी, इसीलिए इस जगह का नाम उसके बाद से "30 हजारी" पड़ गया|
तीसरी तारीख है अक्टूबर 1764 की महाराजा जवाहरमल वाली दिल्ली फतेह की| यह तब की बात है जब उनकी माँ-रानी महारानी किशोरी जी की प्रेरणा पर अहमदशाह अब्दाली को ठेंगा दिखाते हुए दिल्ली फतेह की गई थी| इसमें दिल्ली के सिंहासन समेत लाल किले के वो अष्टधातु के किवाड़ जिनको अल्लाउद्दीन खिलजी चित्तौड़गढ़ किले से उखाड़ लाया था व् दिल्ली किले में लगा दिए थे, वो लालकिले से उखाड़ लोहागढ़ सेना (जिसको जाट सेना भी कहा जाता है, लोहागढ़ एक जाट रियासत होने के नाते) भरतपुर ले गई थी, जो कि आज भी भरतपुर के "दिल्ली-गेट" में शोभायमान हैं|
इसीलिए तो कवि जयप्रकाश घुसकानी वाले लिखते हैं कि, "धोखा-पट्टी सीखी नहीं, जंग में पछाड़ लाये, मुग़लों का सिंहासन जाट दिल्ली से उखाड़ लाये'|
यह तीन लड़ाइयां, वैसे तो जाट व् इसकी तमाम मित्र बिरादरियों के नाम हैं परन्तु एक तो यह जाटों के नेतृत्व में की गई, दूसरा इनमें 80% सेना जाट ही होती थी इसलिए आम जनता, इन लगातार दिल्ली विजयों के कारण "दिल्ली को जाटों की बहु" कहने लग गई थी, कि जब जी में आती है तब जैसे कोई बहु लेने जाता है ससुराल, ऐसे दिल्ली आते हैं और "दिल्ली की जीत" नामक बहु ले कर ही लौटते हैं|
काश! इन फंडियों ने कभी वास्तव में उसी बराबरी से इन समाजों को ट्रीट किया होता जिसकी लालसा सी ये, "हिन्दू एकता व् बराबरी" के नारे में दिखाते हैं तो इंडिया इतने लम्बे वक्त तक गुलाम नहीं रहता| परन्तु इनको बीमारी है "बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद" टाइप में हर चीज अपने हाथ में ले उसकी ऐसी-तैसी करने की, जैसे अब देश के भाईचारे (सत्ता हाथ लगते ही रचा ना फरवरी 2016 का 35 बनाम 1 का क्लेश) से ले इकॉनमी तक का चुघड़ा चास रखा; बस इनकी इस "बंदराई चपलता" के चक्र में देश ने भुगता ही भुगता है सिर्फ| और अब भी जब तक ये रहेंगे, सिर्फ भुगतवाएंगे ही भुगतवाएंगे|
खैर, एक काम की बात: तथाकथित हिन्दू राष्ट्रवादीयों की बिरादरी से होते महाराजा सूरजमल तो 10 मई "इंटरनेशनल वीरता दिवस" की तरह मनाया जा रहा होता| महाराजा सूरजमल व् इनकी मित्र बिरादरियों के बालकों (जब इनको अपने मतलब साधने हों) को बहकाने को तो पता नहीं कितने ही फंडी "हिन्दुआ सूरज, हिन्दुआ सूरज" लिखेंगे लेकिन ईमानदारी से बंदे को उनकी वीरता व् योगदान के लिए क्रेडिट देना हो तो ऐसे कान मारेंगे जैसे कीड़े पड़ रे हों इनके कानों में, क्या लोकसभा में फोटो नहीं लगनी चाहिए ऐसे वीरों की? तो महाराजा सूरजमल व् इनकी मित्र बिरादरियों के बालकों, देखिए व् समझिये इन "हिन्दू एकता व् बराबरी" वालों के यह तथाकथित घल्लू-घारे| इनसे जुड़े हो तो या तो इनके तमाम स्टेजों पर महाराजा सूरजमल जैसे वास्तविक वीरों के नाम दर्ज करवा दो सदा के लिए अन्यथा तो दरी बिछाने से ज्यादा की औकात मत मानना इनके यहाँ अपनी| अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में बेशक जुड़े रहो, छोटे-मोटे फायदे पूरे करते रहो परन्तु खुद को इस बहम में मत रखना कि अपनी कौम-बिरादरियों के नाम पे कुछ योगदान कर रहे हो इसके जरिये| और छोडो तुम इनसे "हिन्दू एकता व् बराबरी" के नारे को ही प्रैक्टिकली धरातल पर लागू ही करवा के दिखा दो, बाकि उछालते नहीं यह नारा इसलिए उनसे कहता नहीं; परन्तु यह उछालते हैं तो कह रहा हूँ|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
ऐसे 3 दिवस आते हैं महाराजा सूरजमल व् इनकी मित्र बिरादरियों के बाँटें, जब दिल्ली फतेह की गई| एक यह तारीख|
दूसरी दिल्ली फतेह की तारीख है फरवरी 1764, जब दिल्ली तीस-हजारी में सरदार जट्ट भघेल सिंह धालीवाल जी द्वारा दिल्ली फतेह की गई थी| उन्होंने 30 हजार सेना के साथ दिल्ली जीती थी, इसीलिए इस जगह का नाम उसके बाद से "30 हजारी" पड़ गया|
तीसरी तारीख है अक्टूबर 1764 की महाराजा जवाहरमल वाली दिल्ली फतेह की| यह तब की बात है जब उनकी माँ-रानी महारानी किशोरी जी की प्रेरणा पर अहमदशाह अब्दाली को ठेंगा दिखाते हुए दिल्ली फतेह की गई थी| इसमें दिल्ली के सिंहासन समेत लाल किले के वो अष्टधातु के किवाड़ जिनको अल्लाउद्दीन खिलजी चित्तौड़गढ़ किले से उखाड़ लाया था व् दिल्ली किले में लगा दिए थे, वो लालकिले से उखाड़ लोहागढ़ सेना (जिसको जाट सेना भी कहा जाता है, लोहागढ़ एक जाट रियासत होने के नाते) भरतपुर ले गई थी, जो कि आज भी भरतपुर के "दिल्ली-गेट" में शोभायमान हैं|
इसीलिए तो कवि जयप्रकाश घुसकानी वाले लिखते हैं कि, "धोखा-पट्टी सीखी नहीं, जंग में पछाड़ लाये, मुग़लों का सिंहासन जाट दिल्ली से उखाड़ लाये'|
यह तीन लड़ाइयां, वैसे तो जाट व् इसकी तमाम मित्र बिरादरियों के नाम हैं परन्तु एक तो यह जाटों के नेतृत्व में की गई, दूसरा इनमें 80% सेना जाट ही होती थी इसलिए आम जनता, इन लगातार दिल्ली विजयों के कारण "दिल्ली को जाटों की बहु" कहने लग गई थी, कि जब जी में आती है तब जैसे कोई बहु लेने जाता है ससुराल, ऐसे दिल्ली आते हैं और "दिल्ली की जीत" नामक बहु ले कर ही लौटते हैं|
काश! इन फंडियों ने कभी वास्तव में उसी बराबरी से इन समाजों को ट्रीट किया होता जिसकी लालसा सी ये, "हिन्दू एकता व् बराबरी" के नारे में दिखाते हैं तो इंडिया इतने लम्बे वक्त तक गुलाम नहीं रहता| परन्तु इनको बीमारी है "बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद" टाइप में हर चीज अपने हाथ में ले उसकी ऐसी-तैसी करने की, जैसे अब देश के भाईचारे (सत्ता हाथ लगते ही रचा ना फरवरी 2016 का 35 बनाम 1 का क्लेश) से ले इकॉनमी तक का चुघड़ा चास रखा; बस इनकी इस "बंदराई चपलता" के चक्र में देश ने भुगता ही भुगता है सिर्फ| और अब भी जब तक ये रहेंगे, सिर्फ भुगतवाएंगे ही भुगतवाएंगे|
खैर, एक काम की बात: तथाकथित हिन्दू राष्ट्रवादीयों की बिरादरी से होते महाराजा सूरजमल तो 10 मई "इंटरनेशनल वीरता दिवस" की तरह मनाया जा रहा होता| महाराजा सूरजमल व् इनकी मित्र बिरादरियों के बालकों (जब इनको अपने मतलब साधने हों) को बहकाने को तो पता नहीं कितने ही फंडी "हिन्दुआ सूरज, हिन्दुआ सूरज" लिखेंगे लेकिन ईमानदारी से बंदे को उनकी वीरता व् योगदान के लिए क्रेडिट देना हो तो ऐसे कान मारेंगे जैसे कीड़े पड़ रे हों इनके कानों में, क्या लोकसभा में फोटो नहीं लगनी चाहिए ऐसे वीरों की? तो महाराजा सूरजमल व् इनकी मित्र बिरादरियों के बालकों, देखिए व् समझिये इन "हिन्दू एकता व् बराबरी" वालों के यह तथाकथित घल्लू-घारे| इनसे जुड़े हो तो या तो इनके तमाम स्टेजों पर महाराजा सूरजमल जैसे वास्तविक वीरों के नाम दर्ज करवा दो सदा के लिए अन्यथा तो दरी बिछाने से ज्यादा की औकात मत मानना इनके यहाँ अपनी| अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में बेशक जुड़े रहो, छोटे-मोटे फायदे पूरे करते रहो परन्तु खुद को इस बहम में मत रखना कि अपनी कौम-बिरादरियों के नाम पे कुछ योगदान कर रहे हो इसके जरिये| और छोडो तुम इनसे "हिन्दू एकता व् बराबरी" के नारे को ही प्रैक्टिकली धरातल पर लागू ही करवा के दिखा दो, बाकि उछालते नहीं यह नारा इसलिए उनसे कहता नहीं; परन्तु यह उछालते हैं तो कह रहा हूँ|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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