कई दिन से कैडर के कई साथी पीछे पड़े हुए थे कि आपको क्षत्रिय की आपकी एनालाइज़ की हुई परिभाषा बतानी ही पड़ेगी, अन्यथा हम इन बावले उदारवादी जमींदारों और उनमें भी खासकर जाटों को इस क्षत्रिय शब्द के फितूर से बाहर कैसे ला पाएंगे? मखा यार रहने दो, तम खामखा बवाल करवाओगे, जाटों की नाराजगी तो मैं झेल लूंगा परन्तु खामखा राजपूत साथियों को खासकर बिदकवाओगे तुम मेरे से| बोले, बिदकाने नहीं उनकी भी आँखें खोलनी हैं| मैंने कहा हम-तुम कौन होते हैं किसी की आँखें खोलने वाले? तुम्हारी खुल गई, इतना बहुत, तुम खुश रहो| वह इस परिभाषा के साथ खुश हैं, उनको उधर रहने दो ना? क्यों जूत बजवा रहे हो? बोले, राजपूत व् अन्य क्षत्रिय गीता बहुत पढ़ते हैं, कृष्ण द्वारा करण वाला ज्ञान पढ़ के खुद को उस "लग्जीरियस गुलामी" में पड़े रहने हेतु आश्वस्त कर लेंगे| परन्तु इस क्षत्रिय शब्द के चक्कर में जाट ज्यादा बावले हुए घूम रहे हैं, साथ ही बहुतेरे राजपूत तक जाटों को क्षत्रिय शब्द में स्वीकार नहीं करते| आप बताओ बस| अरे तो तुम जाट भी इसी तरीके के कोई करार कर लो ना यार, जैसे क्षत्रिय शब्द ओढ़ने वालों ने कर रखे| बोले धौळी की जमीनें तक फ्री में इनमें बाँट रखी, धर्म-कर्म के नाम पर सबसे ज्यादा इनको हम देवें और के अपने घर भी गिरवी रख देवें इनके; तब जा के इनको दिखेगा कि इनका वास्तविक हितैषी कौन है? मखा ये यूँ चाहवें से कि थम इनके साथ क्षत्रिय टाइप वाले करार में जाओ, तो ये तुम्हारी ना तो बदनामी फैलवायेंगे और ना ही 35 बनाम 1 रचवायेंगे तुम्हारे खिलाफ| अरे तो गुरु जी, इसीलिए तो यह क्षत्रिय वाला करार समझना है, इसको समझाओ तो पहले सही से| इसके pros एंड cons दिखाओ तो पहले| कुछ जचेगा तो कर लेंगे हम भी यह या इसी टाइप का कोई करार| मखा जिन जाटों को जंच चुका वो सदियों पहले ही राजपूत बन, क्षत्रिय का टाइटल ले चुके| बाकी थारै-म्हारै रास आवै कोनी यो करार| बोले वो बाद में देखेंगे पहले आप इसकी परिभाषा की व्याख्या बताओ| मखा थम मुझे सूली पे चढ़ा दो, लो सुनो क्यों है, "क्षत्रिय बेगार-बधिर-मूक मात्र बॉडीगॉर्ड विद एक्स्ट्रा प्रिविलिज"|
दो किस्सों के जरिये बताऊंगा:
महारानी पद्मावत का किस्सा: बेगार-मूक-बधिर इसलिए कि जब चित्तोड़ की महारानी पद्मावत को एक दरबारी राघव चेतन गलत तकता है तो, उसको क्या सजा दी जाती है? सिर्फ इतनी कि जैसे एक शरारती बालक को एक टीचर क्लॉस से निकाल देती हो, ऐसे दरबार से निकाल दिया? उसके बाद वो डाकी का चेला इसमें भी अपनी गलती मान, खुद को पछतावे की राह पर ले जाने की बजाये कहाँ ले गया? अलाउद्दीन के पास दिल्ली? किसलिए? अल्लाउद्दीन को पद्मावत के रूप के किस्से सुना, उसको पाने की लालसा जगाने के लिए? देख लो यहाँ भी उसकी वासना ही उसपे हावी चली| ले आया अल्लाउद्दीन को चित्तौड़गढ़? किसी क्षत्रिय ने उसको दूसरा जयचंद कहने की हिम्मत जुटाई? तो हुए ना मूक-बधिर? इस करार के अंदर कौन जयचंद कहलायेगा और कौन नहीं, यह भी क्षत्रिय निर्धारित नहीं करेगा, बल्कि उसको पठाने वाले करेंगे| अब इसके आगे देखो, अल्लाउद्दीन को लाया कौन? राघव चेतन? दोषी किसको मशहूर करना था, राघव चेतन को? फांसी किसको तोडना था, राघव चेतन को? परन्तु सारा किस्सा ड्रामा बना के, दोष की सुई किसपे डाल दी, अल्लाउद्दीन पे? वह भी क्या लेप-पलोथन लगा के कि यह देश-धर्म पर मुल्लों हमला था? क्यों भाई जितने उछाले जाते हो क्षत्रिय के नाम पर न्यायकारी बना के, उसके नाते राघव चेतन की गर्दन, वहीँ पहले झटके दरबार में ही तलवार से उड़ानी बनती थी या नहीं? वह कोई आम दासी या औरत नहीं थी जिसपे गलत नजर डाली गई थी, महारानी थी वो महारानी वो भी एक क्षत्राणी| अब बताओ, जब इस करार में खुद क्षत्रियों की औरतों को गलत तकने तक पे क्षत्री इनको पठाये हुओं को जो सजा बनती थी, वह नहीं दे सकते तो न्यायकारी होने की बजाये बेगार बॉडीगार्ड हुए या नहीं? फांसी, गर्दन वगैरह नहीं काटनी थी तो जेल में सड़ा देते, उसकी आँखें फोड़ देते, जिह्वा काट देते, कानों में उबलता तेल डाल देते, हाथ या ऊँगली काट देते, हुआ ऐसा कुछ? तो इनके करार में पड़ के तुम चित्तौड़गढ़ बना भी लोगे तो अंत दिन उजड़वा तो इन्होनें अपने हाथों ही देने हैं और तुम इन पर दोष तक भी नहीं धर पाओगे, जायज सजा देनी तो सपनों की बात ठहरी|
जयचंद राठौड़ का किस्सा: पृथ्वीराज चौहान और जयचंद दो सगी बहनों के बेटे थे, तो आपस में क्या हुए? मौसेरे भाई ना? ऐसे मौसेरे भाई, जिनकी माओं का गौत एक था? जिनकी औलादों के आपस में ब्याह नहीं हो सकते थे? और यहाँ तो पृथ्वीराज चौहान खुद ही, अपने सगे मौसेरे भाई जयचंद की बेटी संयोगिता को वह भी स्वयंवर से अगवा कर लाता है? आखिर किसकी शिक्षा, बहकावे या उकसावे पे? ब्याह-शादी के मामले में जाट ही क्या, सुनी है राजपूत भी न्यूनतम 3 से ले 7 गौत तक छोड़ते हैं? तो क्या यह शिक्षा पृथ्वीराज चौहान को नहीं दी गई होगी, वह भी इस बात के मद्देनजर तो दी जानी और भी लाजिमी बनती है कि आगे चल के उसको राजा बनना था, उसके दरबार में ब्याह-शादी के मसले भी आने थे, या नहीं? तो कल्चरल-कस्टम जैसी चीज को जो छिनभिन्न करता हो, उसको सजा देने हेतु कोई दरबार या पंचायत सजी/बैठी? नहीं? क्यों? इनका समझौता करवाना व् संयोगिता को वापिस जयचंद को सौंपवाना किसका फर्ज बनता था? दोनों तरफ के दरबारियों का, या नहीं? परन्तु उन दरबारियों ने क्या किया? जब जयचंद को कोई न्याय नहीं मिला तो वह मोहम्मद गौरी को ले आया| भाई अगले की बेटी उठाई गई थी, वह भी भरे दरबार से; उसको भी अपनी जनता में अपना सामंजस्य-विश्वास कायम रखना था, और वैसे भी गीता ज्ञान वाले ही कहते हैं कि अपने धर्म की पालना हेतु, आपको अधर्म का सहारा लेना पड़े तो वह जायज है| तो जयचंद ने वह लिया, वह किया| परन्तु इन राजदरबारियों के क्या किया? दोनों को भिड़ाया, फिर जिसने गलत किया, उसको धर्म-रक्षक व् जिसके साथ अन्याय हुआ उसके तो नाम को ही गद्दारी का पर्याय बना दिया यानि "जयचंद"? जबकि इस मामले में सबसे पहले दोषी कौन बनते हैं? नंबर एक ब्याह के गौत-नियम-रिश्तों की पृथ्वीराज को सही-सही शिक्षा नहीं देने वाले| दूसरे दोषी, जयचंद को न्याय नहीं दे पाने वाले|
तो बन लो इनके क्षत्रिय, तुमको एक सर्किल के अंदर बाँध देंगे, उसमें न्याय भी इनका और अन्याय भी इनका| यह चाहे तुम्हारी महारानी तक को छेड़ें या सगे मौसेरे भाई की रिश्ते में भतीजी लगने वाली राजकुमारी को अगवा करवाएं/होने दें, नचाएंगे तुमको अपने अनुसार| तो हुए ना, "क्षत्रिय, बेगार-बधिर-मूक मात्र बॉडीगॉर्ड विद एक्स्ट्रा प्रिविलिज"?
अभी तो इन दोनों किस्सों से भी हद दर्जे तक अपमानित कर देने वाला किस्सा, यहाँ नहीं डाल रहा हूँ, क्षत्रियों को 21 बार धरती से मिटा देने वाला| एक साथ पाठक इतना डाइजेस्ट नहीं कर पाएंगे| पोस्ट भारी-भरकम हो जाएगी, अन्यथा वास्तव में क्षत्रिय बेगार-बधिर-मूक मात्र बॉडीगॉर्ड मात्र से ज्यादा कुछ नहीं तो यही वाला किस्सा साबित करता है|
परन्तु तुम्हारी सोच सही दिशा में जा रही है कि क्षत्रिय टाइप का करार हमें यानि जाटों को भी कर लेना चाहिए| किया तो था यार पुरखों ने 1875 में आर्य समाज के माध्यम से जब इन द्वारा "जाट जी" बोल के जाट की स्तुति की गई थी| परन्तु अब देख लो फरवरी 2016 आते ही खुद ही तोड़ दिया ना करार इन्होनें ही? जाट-खाप-हरयाणा पर सबसे ज्यादा दुष्प्रचार करने वाले मीडिया में बैठे सबसे ज्यादा कौन बिरादरी के हैं? कहने की जरूरत है क्या? आर्य-समाज को खुद ही निगल गए, वाले कौन लोग हैं? यह खुद ही ना? तो क्या-कैसा-करार किया जाए, मंथन करो| परन्तु इतना जरूर है कि जाट इनसे क्षत्रिय टाइप करार तो करेंगे नहीं| हाँ "जाट जी" टाइप वाला जिसमें स्टेटस बराबरी स्वछंदता का हो, ऐसा कुछ हो तो लाओ, विचार करने को|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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