Sunday, 2 August 2020

हरयाणवी सलूमण (सलूणे) यानि हिंदी की राखी!

हरयाणवी सलूमण (सलूणे) यानि हिंदी की राखी: सलामती शब्द से निकला बताया जाता है "सलूमण"| हरयाणवी में यह रक्षा से ज्यादा आपसी दुआ-सलामती व् भाण-भाई में आत्मीयता का प्रतीक है क्योंकि हरयाणवी कल्चर में औरत को मर्द के बराबर ही ताकतवर माना गया है| इसलिए हम इस सोच से भी बचते हैं कि औरत कोई छुई-मुई है व् वह अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकती; वक्त आने पर वह बड़े-बड़ों के भोभरे से ले भीतरले तक फोड़ सकती है|

हरयाणवी पोहंची यानि हिंदी की राखी: हरयाणवी में इसको पोहंची बोलते हैं क्योंकि यह हाथ के पोहंचे (हिंदी में कलाई) पर बंधती है| हिंदी में राखी शायद इसको रक्षा बंधन बोलने से निकाला गया होगा|

वैसे एक राखी थाईलैंड में भी मनाई जाती है: क्योंकि थाईलैंड की सबसे बड़ी इकॉनमी "वेश्यावृति" से चलती है तो वहां सुनने में आता है कि भाई, बदमाश ग्राहकों से अपनी बहन की रक्षा हेतु यह त्यौहार मनाते हैं| खैर, यह उनका उद्देश्य, वह जानें| और अगर यह उद्देश्य और इस वजह से नाम है इसका "राखी" या "रक्षा बंधन" " तो इससे तो म्हारा "सलूमण" नाम ही बेहतर भी और सुथरा-सूचा भी|

चित्र में सलंगित हैं, मेरी बुआओं द्वारा उनके हाथों से बनी, मुझे भेजी, फूंदों वाली शुद्ध हरयाणवी पोहंचीं| वो बुआ-भाण का प्यार ही क्या हुआ जो बाजार की तरफ भागने की बजाये अगर अपने भाई-भतीजों के लिए अपने हाथों से पोहंचीं बुनने की जेहमत नहीं उठा सकती| वैसे पोस्टें-तख्तियां लगाएंगे की "प्यार कोई पैसों से नहीं खरीद सकता"; अरे 90% से ज्यादा खरीद तो रही हो कई दशकों से, हर "सलूमण" पे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


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