सौजन्य: उज़मा बैठक| Video Credit: शोधार्थी शालू पहल|
वीडियो बारे: दादी फूलपति जी बता रही हैं सांझी की पहली सांझ को वह कैसे मनाया करती थी/हैं| क्या-क्या तैयारियां करनी होती हैं, क्या पकाया जाता है आदि-आदि| साथ में दादी जी ने सांझी का यह गीत भी सुनाया है, "ढूँगी सी डाब्बर रे, के फूलां की महकार; देखण चालो हे, सांझी के ननिहार"|
सांझी: दशहरा, दुर्गा पूजा, नवरात्रे, डांडिया, रामलीला के समानांतर 10 दिन मनाया जाने वाला हरयाणवी त्यौहार|
सांझी क्या है?: असल में तो सांझी ना कोई देवी है और ना कोई मायावी कल्पना; वरन प्रतीक है, "हरयाणवी कल्चर की रंगोली की 10 दिन की वर्कशॉप" के उन वास्तविक क्रियाकलापों का जिसके जरिये ब्याह की उम्र के नजदीक पहुँचती कुंवारी युवा लड़कियों (कुंवारी कन्याएं देवी नहीं होती) को ब्याह के बाद के 10 दिन कैसे बीतेंगे के बारे प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दे; उनको मानसिक तौर उन दिनों के लिए सबल, सहज व् विश्वासयुक्त करना|
उज़मा बैठक बारे: हरयाणवी-पंजाबी-मारवाड़ी कल्चरों में धर्म-जाति-वर्ण से रहित पाई जाने वाली उदारवादी जमींदारी की "खेड़ा - खाप (मिसल/पाल) - खेत" की किनशिप को मेन्टेन करने का वैचारिक विजन| उदारवादी जमींदारी वह होती है जिसमें
1) "सीरी-साझी" का वर्किंग कल्चर;
2) गाम-गौत-गुहांड व् गाम की 36 बिरादरी की बेटी सबकी बेटी के सामाजिक रहते हुए असमय अनैतिक वासना से दूर रहने के सिद्धांत;
3) "दादा नगर खेड़ों" रुपी मर्द धर्मप्रतिनिधि व् मूर्ती-रहित आध्यात्म में औरत को धोक-ज्योत की 100% लीडरशिप;
4) सर्वखाप के रूप में सोशल सिक्योरिटी व् सोशल जूरी सिस्टम;
5) हर गाम में अखाड़ों के जरिये "मिल्ट्री कल्चर";
6) "खेड़े के गौत" के तहत "देहल-धाणी-बेटी की औलाद" के सिद्धांत के तहत माँ का गौत भी औलाद का गौत हो सकने का सिस्टम;
7) "सालाना नौ मण अनाज, दो जोड़ी जूती" के नियम के तहत तलाकशुदा औरत को गुजाराभत्ता" व् "स्वेच्छा से विधवा पुनर्विवाह" की जेंडर न्यूट्रैलिटी व् सेन्सिटिवटी का सिस्टम व् ऐसे कुछ अन्य स्वर्णिम पहलु होते हैं|
विशेष: उज़मा बैठक के काफी सदस्य "सांझी" बारे अपने-अपने स्तर पर इसके पूरे 10 दिनों के क्रियाक्लापों बारे शोध कर रहे हैं, जिनको इस पोस्ट की भांति 1-1 करके पब्लिश किया जाता रहेगा| उज़मा बैठक इस बार 25 अक्टूबर 2020 को ज़ूम प्लस फेसबुक के जरिये अंतराष्ट्रीय स्तर पर "सांझी की सांझ" मना रही है| आपसे भी आशा रहेगी कि आप इसका हिस्सा बनें या अपने स्तर पर "सांझी की सांझ" जरूर मनावें|
सौजन्य: उज़मा बैठक!
जय यौद्धेय!
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