Sunday, 1 November 2020

दिवाली के साथ-साथ अबकी बार पुरखों के "कोल्हू दिवस" को मनाएं!

धनतेरस पर दुकानदार की आप लोग शॉपिंग करवाते हो, तो दिवाली को उसके घर उस कमाई की लक्ष्मी आने की ख़ुशी में दिए जलाए जाते हैं|


परन्तु तुम किसान-जमींदारों की औलादों, तुम धनतेरस पर अपनी जेबें कटवा के आने वालो, तुम किस ख़ुशी में लक्ष्मी पूजन करते हो; तुम तो धनतेरस पे दुकानदार के यहाँ उल्टा लक्ष्मी लुटा के आए होते हो, अपनी जेबें फूंक के उनकी दिवाली मनाए आते हो? कभी सोचा-समझा है या एविं देखादेखी भेड़चाल बन चले हो?
आओ बताता हूँ कि उदारवादी जमींदारों के यहाँ कौनसी लक्ष्मी आती है जिसके चलते घी के दिए जलते आए हैं:

कातक की अमावस को वह दिन होता है जब 99% गन्ने (गंडे) की खेती पक के तैयार हो जाया करती है| जो आज भी गामों से जुड़े हो आपको पता होगा कि कहते हैं कि "कातक अमावस को पहला गंडा पाडना चाहिए"| तो पुरखे यह पहला गंडा पाड़ के यह चेक किया करते थे कि गंडे मीठे हो गए हैं तो चलो कोल्हू शुरू किये जावें| और कोल्हू शुरु होने का मतलब होता था जमींदार के यहाँ "कोल्हू इंडस्ट्री से गुड़-शक्कर-शीरा-खोई आदि का बनना शुरू होना" यानि गुड़-शक्कर-शीरा-खोई चारों ही वह औद्योगिक उत्पाद जो जमींदार को अगले छह महीने तक इंडस्ट्रियलिस्ट व् व्यापारी बनाए रखते थे|

इसी धन-आवक की बड़क में पुरखे अपने कोल्हू व् इनके औजारों को धोते-पोंछते व् घी-तेल के दिए लगा के इस इंडस्ट्री के शुरू होने की ख़ुशी में "कोल्हू दिवस" मनते|

इसलिए दिवाली के साथ-साथ अबकी बार कोल्हू दिवस भी मनाओ| ये माइथोलॉजी हमें-तुम्हें खाने को नहीं देती और ना इन मैथोलोजियों से निकले त्योहार देते, उल्टा लेते-ही-लेते हैं| जो देते आए वह त्यौहार मत बिगाड़ो, उनको जरूर से जरूर मनाओ| मनाओ अगर चाहो हो कि फिर से कोई 35 बनाम 1 ना होवे और कोई कंधे से ऊपर-नीचे की अक्ल के तंज ना कसे| और इन सबसे भी जरूरी, तुम्हारी, तुम्हारे पुरखों की हस्ती-शक्ति-लिगेसी बची रहे व् उसकी बुलंदी कायम रहे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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