तुम्हारे यहाँ किसी के मरने पे आत्मा-पितृ-भगवान-भूत आदि की शांति-पुण्य-भय आदि के नाम तुमसे पिंड-पैसे आदि दान करवाने-लेने, हवन-भंडारे-जीमनवारे करवाने वाले फंडी के घर में जब कोई मरता है तो वह यही चीजें खुद के घर में किस से करवाता है, किसको पिंड-पैसे देता है; कभी सोचा, पूछा या पता किया है?
भली-भांति 10 फंडियों के घरों का गुप्त-सर्वे करवाया मैंने इसपे और पाया कि वह अपनी बिरादरी से बाहर तो छोडो, खुद की बिरादरी तक में किसी को नहीं जिमाता-पुजवाता-दान देता; अपितु जो देता है सिर्फ और सिर्फ अपनी बेटियों को देता है; चाहे उसके घर माँ मरे, बाप मरे, बीवी मरे, जवान मरे या बूढ़ा|
बताओ यह दोहरे मापदंड कैसे हो सकते हैं भगवान के; इसलिए जो भी जिस भी जाति-बिरादरी का इंसान ऐसे फंड रचता है फंडी कहलाता है| इनसे बड़ा सीखते हो ना, इनको बड़ा ज्ञानी-ध्यानी भी बताते हो; इसका मतलब यह जो खुद के मामले में बरतते हैं वही असली ज्ञान हुआ ना? तो करो लागू इसको ही अपने घरों में और घर में हर मरगत पे सिर्फ बेटी को दो या आपस में बांटों|
औरों की तो कहूं ही क्या, जिन 50-60-70 साल वालों के ब्याह-फेरे उनके घर के ही आर्य-समाजी बूढ़े-बड़ों ने करवाए थे, जो यह चीजें घर-खानदान-बिरादरी वाले से ही करवाए थे, उन व् उनकी औलादों तक को यह गधे वाले जुकाम हुए पड़े हैं| फिर कहते हैं कि अजी हमको कोई कंधे से ऊपर-नीचे के तंज क्यों कसता है, अजी यह 35 बनाम 1 हमारे ही साथ क्यों होता है| ना तो और बाबा जी गेल होवैगा? खुद की देखी-बरती पुरखों की कल्चरल लिगेसी थम माननी छोड़ चुके, औलादों को वह पास करनी तुम छोड़ चुके; तुमपे ही होंगी ऐसी बातें-वारदातें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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