और जो किसान सीजन पे फसल ना निकाल ऑफ-सीजन पे निकाल बढ़े रेट का जो मुनाफा लेते थे उससे हाथ धो बैठेंगे|
लेख का निचोड़: 3 नए कृषि बिल कोई नया रोजगार या व्यापार बना के नहीं देंगे अपितु खेत-मंडी के किसान-आढ़ती-मजदूर को अडानी-अम्बानी के यहाँ शिफ्ट मात्र करेंगे; वह भी कम संख्या में, बाकी बेरोजगार मरेंगे| पूरा समझने के लिए लेख को अंत तक पढ़िए|
विस्तार से समझिये: हरयाणा-पंजाब के लगभग हर गाम का उदाहरण लेते हुए बात रखता हूँ| इन राज्यों में ज्यादा नहीं तो हर गाम में औसतन 20/30 किसान घर ऐसे होते हैं जिनके यहाँ 5/10 से 60/100 एकड़ तक के अनाज व् तूड़ा भंडारण की क्षमता के पड़छत्ती-सोपे-कूप-गोदाम होते हैं| छोटी जोत वाले भी बहुत हैं जो थोड़ा-बहुत स्टोर करते हैं| यह लोग सीजन (अप्रैल-मई) पर कम ही गेहूं मंडी में बेचते हैं और खुद के घरों की पड़छत्ती-सोपों में, खेतों में कूपों में भंडारण करते होते हैं| जिसको कि ऑफ-सीजन (दिसंबर-जनवरी) में तब निकाला जाता है जब गेहूं MSP से भी डेड या दो गुना ज्यादा रेट पर बिक रहा होता है, खासकर महानगरों की मंडियों व् आट्टा मीलों में| और इस तरह सिर्फ भंडारण के दम पर जो फायदा-मुनाफा व्यापारी आदि लेता होता है, वह यह किसान खुद लेते हैं| और यह भंडारण सरकार द्वारा तय मानकों की लिमिट में होते आये हैं| तो इस हिसाब से यह किसान, किसान होने के साथ-साथ व्यापारी भी होते आए हैं| कई तो इतनी कैपेसिटी के किसान व्यापारी हैं कि खुद बनियों को इनके यहाँ से पैसे उधारी-कर्जे पे उठा अपने कारोबार-दुकान चलाते-शुरू करते अपनी आँखों से देखे हैं मैंने|
यूँ ही नहीं है हरयाणा-पंजाब के किसान की औसत आय देश में सबसे ज्यादा; इसीलिए है कि सर छोटूराम के बनाए कानूनों ने किसान को भी यह हक व् रास्ते दिए कि आढ़ती/व्यापारी वाला मुनाफा वह खुद भी कमा सके| सर छोटूराम के कृषि व् APMC जैसे मंडी कानूनों ने हरयाणा के आम किसान को व्यापारी के कम्पटीशन में ला खड़ा किया व् कई गाम तो ऐसे हैं कि ट्रेडिशनल व्यापारी कम्युनिटी वाले से किसान व्यापारी ज्यादा कॉम्पिटिटिव साबित हुए हैं| ट्रेडिशनल व्यापारी समुदाय को यह कानून कम्पटीशन देते हैं इसीलिए तो यह बात फैलवा रहे हैं कि यह आउटडेटिड हुए, अब नए तरीके से डेवलपमेंट हो| वह नया तरीका है सर छोटूराम के दिए कानूनों को खत्म कर, अपनी मनमानी के कानून लगवा; किसानों से उनका यह ऊपर बताया मुनाफा व् किसान के साथ-साथ व्यापारी होने की सोच, सुख व् क्षमता छीनना|
तो अब सोचिए कि अगर 3 नए कृषि बिलों के लागू होने से जब खेती कॉन्ट्रैक्ट की होगी, APMC खत्म कर दिया जाएगा और अनाज भंडारण अनलिमिटेड कर दिया जाएगा तो सारे भंडारण की कैपेसिटी अडानी-अम्बानी जैसों के सिलो-गोदामों में सिमट जाएगी और क्योंकि किसान कॉर्पोरेट फार्मिंग के कॉन्ट्रैक्ट से बंधा होगा तो वह खुद स्टोर भी नहीं कर पाएगा| यानि जो बदतर हालत किसानों की पहले से ही हो रखी है, उससे भी बदतर बना किसानों को मिटटी में रुलाने के कानून हैं ये|कुछ नादानों को एक नरेटिव पकड़ा दिया गया है कि किसानों के पास तो भंडारण क्षमता है ही नहीं| अजी है, कम से कम उनके पास तो जरूर है या वो बना लेते हैं जिनको यह ऊपर बताए तरीके से अपने उत्पाद व्यापार से व्यापार कमाना आता है या कमाना चाहता है|और जो यह कहता है कि किसान की मर्जी रहेगी कि किसको बेचे, कॉन्ट्रैक्ट करे या ना करे; अरे जब बिना MSP के कानून के चलते ठीक वैसे ही सरकारी मंडियां खत्म हो जाएँगी जैसे बिहार में हो गई तो हरयाणा-पंजाब का छोटा-बड़ा तमाम किसान मजबूर होगा अडानी-अम्बानी के यहाँ फसल डालने को अन्यथा खेती छोडो, जमीन बेचो और अडानी-अम्बानी के मजदूर बनो|
इसलिए यह कानून वह हैं जो 99% किसानों को बंधुवा बना देंगे और वर्णवाद वाले शूद्र बनके रह जाएंगे हरयाणा-पंजाब के उदारवादी जमींदार भी| सीरी-साझी का पुरखों का स्वर्णिम वर्किंग कल्चर नौकर-मालिक में तब्दील होता चला जाएगा| और यह जो तथाकथित स्वधर्मी आज किसान आंदोलन में गुरुद्वारों-मस्जिदों की भांति लंगर तक नहीं लगा रहे, यह अपनी पकड़ बढ़ा कर आपका दोगुना-तिगुना शोषण करेंगे वह अलग से| यानि जो कमाओगे, उसमें इतनी लूट होगी कि पेट तक नहीं भर पाएंगे|
आखिर कमी क्या है APMC में, सिर्फ एक कि यह किसान को भी व्यापारी बनाते हैं, जो ट्रेडिशनल व्यापारियों को कतई मंजूर नहीं| FPO/FPC कुछ नहीं सिवाए नए बिचौलियों के| यह FPC/FPO अडानी-अम्बानी के गोदाम भरवाने को वही काम करेंगे जो आज के APMC मंडी वाले आढ़ती सरकार के FCI गोदाम भरवाने का काम करते हैं| हाँ, इनका किसान को फायदा है परन्तु तभी जब यह अनाज भंडारण क्षमता लिमिट में रहेगी| अन्यथा तो मंडी का पल्लेदार-लोडर, फिर इन मंडियों की बजाए अडानी-अम्बानी के गोदामों में शिफ्ट हो जायेंगे; सिर्फ शिफ्ट, कोई नया रोजगार नहीं क्रिएट होने वाला इनसे, जिसके कि यह दावे कर रहे हैं| एक किसान जो सीरियों को, दलितों को रोजगार देता है, वह उसका अहसास खत्म हो जायेगा क्योंकि ना सिर्फ उसके खेतों के मजदूर अपितु वह खुद भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में अडानी-अम्बानी टाइपो से दिशा-निर्देश ले के काम कर रहा होगा| यह कुछ-कुछ ऐसा होगा कि जैसे आप परचून-पंसारी-कपड़ा-बर्तन आदि वाले की दुकान को यह कह कर ताला लगवा दो कि भाई अडानी-अम्बानी के शॉपिंग माल्स आ गए हैं, तू निकल यहाँ से; तुझे कोई सलीका-तरीका नहीं काम करने का| और हाँ ला तेरी दुकान की लेबर-कर्मचारी को अडानी-अम्बानी के गोदाम में हम ही काम पे लगवा देते हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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