Friday, 25 December 2020

टिकैत साहब की मंदिरों को फटकार, गुरद्वारे व् खापद्वारे!

हमारी उदारवादी जमींदारा फिलोसोफी के लोग जो शुरू दिन से "खापद्वारे" बनाने की वकालत करते आ रहे हैं, गुरुद्वारों की तर्ज पर; माननीय राकेश टिकैत जी का कल का ब्यान उसकी महत्वता को दर्शाता है| अगर टिकैत साहब की कॉल के बाद भी मंदिरों वाले नहीं सुधरते हैं और आंदोलनरत किसानों की सेवा हेतु अपने खजाने व् सेवायें नहीं खोलते हैं तो सर्वखाप के इतिहास में जो वीर यौद्धेयों-यौद्धेयाओं की कुर्बानियों व् वीरताओं की लम्बी सूची है उस पर बानियाँ बनवा के, संगीतबद्ध करवा के गुरुद्वारों की तर्ज पर खापद्वारों के जरिए अपना शुद्ध उदारवादी जमींदारे का "सीरी-साझी कल्चर व् दादा नगर खेड़ों के आध्यात्म" वाला उन्मुक्त सिस्टम शुरू कर लेना चाहिए| वैसे मंदिरों में खाप यौद्धेय-यौद्धेयाओं की बानियाँ कभी सुनने को मिलती भी नहीं, जब देखो फ़िल्मी आरतियां चलती हैं वह भी हिंदी में, संस्कृत में भी नहीं| और अगर गुरूद्वारे खापों के यौद्धेयों-यौद्धेयाओं की वीर गाथाओं-बानियों को अपनी बानियों-गाथाओं में स्थान देवें तो सिख धर्म में जाने से बेहतर विकल्प कोई है ही नहीं| इससे हमारे 15वीं शताब्दी (सिख धर्म की स्थापना की सदी) से पहले का इतिहास भी जिन्दा रहेगा, पुरखे साथ रहेंगे, उनका एकमुश्त आशीर्वाद साथ रहेगा तो सिखिज्म और भरपूर फैले-फलेगा और हमारा इन फंडियों से पिंड छुटेगा| हाँ, अगर टिकैत साहब की कॉल के बाद भी यह फंडी नहीं सुधरते हैं तो चलिए करें कुछ इस ऊपर लिखे जैसा| जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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