Monday, 4 January 2021

हरयाणवी कभी मंदिर के भीतर की भाषा क्यों नहीं हुई?

ईसाई धर्म, भारत में अंग्रेजी में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब| 

सिख धर्म, भारत में पंजाबी में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब| 

इस्लाम धर्म, भारत में उर्दू में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब| 


परन्तु हिन्दू धर्म में भारत में:

लिटरेचर संस्कृत में, 99% को पढ़नी-लिखनी-बोलनी ही नहीं आती|  

मंदिर के अंदर प्रार्थना हिंदी में, वो भी 99% बॉलीवुड की फ़िल्मी वाली आरतियां|  


सड़कों पे चौकी वाली प्रार्थना - हरयाणवी संगीत में, माता का जगराता टाइप| कूल्हे मटकाने व् पागलों की तरह गात हिलाने के अलावा इनमें कुछ हासिल होता हो तो?


यानि कितनी ही झक मार लो, हरयाणवी कभी मंदिर के भीतर की भाषा नहीं हुई, क्यों? जबकि दान-चंदा इनको सुबह-शाम चाहिए? एक तो गलती खुद तुम्हारी, उसपे बदनीयत इनकी; जो हरयाणवी सिर्फ सड़कछाप चौकियों की भाषा मात्र बन के रहती जा रही है तो ऐसे में इसके प्रति आदर-सद्भाव-प्रेम कहाँ से बनेगा?


जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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