Thursday, 25 February 2021

जब तक फंडी के साथ "फंडी बनाम नॉन-फंडी" नहीं करोगे, यह सेल्हे से राह नहीं देने के!

फंडी को सबसे ज्यादा घमंड है कि यह "इस बनाम उस" की लड़ाई-फूट कभी भी करवा सकता है| जब तक इसके साथ आप फंडी बनाम नॉन-फंडी नहीं करोगे, यह बाज नहीं आने वाला| यह तुम्हारी "जियो और जीने दो" की थ्योरी को "आगला शर्मांदा भीतर बड़ गया, बेशर्म जाने मेरे से डर गया" मान के तुम्हें कायर मानते रहेंगे और समाज को यूँ ही "सिंगा माट्टी उठाये" फिरेंगे|

कोई ओबीसी या दलित ऐसा नहीं जिसका किसान के साथ फंडी से कहीं कई गुणा ज्यादा व्यवहारिक-इंसानियत-समानता-रोजगारी का रिश्ता नहीं| तो फिर ऐसा क्या है कि फंडी वर्णवाद नाम की दुनिया की सबसे जहरीली अलगाववाद, मानसिक आतंकवाद व् नश्लवाद की थ्योरी पर सवार हो कर इन्हीं ओबीसी व् दलित को शूद्र, छूत-अछूत बता कर इनकी नीचतम दर्जे की हंसी उड़ाता है और फिर भी किसान को इनसे अलग करने में कामयाब हो जाता है?
इसकी सबसे बड़ी वजह है किसान की "जियो और जीने दो" की नीति का मानवता पर समरूप से लागू करना| बस इसमें इतना सुधार करना होगा कि तुम फंडी के साथ फंडी बनाम नॉन-फंडी कर सको| इनको ही समाज के अछूत जिस दिन बना दोगे, शूद्र जिस दिन बना दोगे; तो जंग जीती मानियो| और यह सम्भव भी है, तुम्हारे पुरखों ने किया है; बस उनका इतिहास पढ़ लो, उनके सिद्धांत समझ लो|
और उन्होंने तो इस स्तर तक का किया है कि इन तथाकथित स्वघोषित उच्च वर्गों की औरतें तुम्हारे पुरखों के यहाँ रसोई के रोटी-टूका-बर्तन-भांडे के काम करके जाती रही हैं| हालाँकि ऐसा काम आधुनिक भाषा वाली "MAID" भी करती हैं और करना बुरा भी नहीं| परन्तु इन हद से मुंह-ऊँचे घमंडियों को चिढ़ाने व् इनका पिछोका जताये रखने को ऐसी बातें शीर्ष पर रखना बेहद जरूरी है; तभी यह बेशर्म औकात में आ बगलें झाँकने लायक होते हैं| पहचानों अपने पुरखों की थ्योरियों की शक्तियों को|
हद है इनके उघाड़ेपन की, 85 दिन होने को आये, 90% इन्हीं के धर्म का किसान दिल्ली धरनों पर बैठा है और इनके कानों जूं नहीं रेंग रही? च्योड़-च्योड़ रिफळ-रिफळ ये झाड़ उगा लिए छातियों पे, कदे भाईचारे के ओहडे तो कदे फलानि-धकडी भक्ति के ओहडे; उखाड़ने होंगे ये वक्त रहते|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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