चाचा सरदार अजीत सिंह जी बारे बचपन से जानते पढ़ते आए, वह व् सरदार करतार सिंह सराभा, शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह की प्रेरणा थे यह भी जानते-बताते आये| परन्तु वह कितने बड़े हुतात्मा थे, उनके किसानी योगदान का, उनकी सोच का कद कितना व्यापक था; इसका आभास इस किसान अंदोलन ने ही करवाया|
अब से पहले 20वीं सदी में किसान के उत्थान की शुरुवात सर छोटूराम से ही मानते थे परन्तु अब यह सरदार अजीत सिंह जी के 1907 के किसान आंदोलन के वक्त से पुख्ता हुआ करेगी| क्या-क्या इतिहास-विरासतें ना दे के जायेगा यह किसान आंदोलन| ताज्जुब है कि इस 1907 के इतने विश्वविख्यात किसान आंदोलन बारे कभी स्कूली किताबों में पढ़ने को नहीं मिला| इतना भयंकर आंदोलन और उनसे इतना भय कि अंग्रेजों ने उनको 38 साल के लिए देश-निकाला ही दे दिया था| जानबूझकर नहीं पढ़ाया गया क्या? हाँ, शायद इसीलिए; क्योंकि ऐसे इतिहास पढ़ाए जायेंगे तो कोप-कल्पित कथाओं को इतिहास के नाम पर कौन सुनेगा फिर?
फंडी ना पढ़ाए, परन्तु आप सुनिश्चित कर लीजिये यह लिगेसी यह किनशिप अपनी पीढ़ियों को पास करने की| शायद तथाकथित संघ-शाखाओं वाले जो जैसे राष्ट्रवाद का कॉपीराइट अपने नाम ही लिखवा बैठे हों; आशंका है कि उन तक की शाखाओं में यह किस्से पढ़ाए-बताए जाते हों| ना स्कूलों में ना शाखाओं तो फिर कैसे पास की जाए यह लिगेसी? अपनी बैठकें बनाईये, अपने निर्देशन की लाइब्रेरियां बनाईये; उनको सम्पूर्ण किसानी इतिहास की सच्ची व् वास्तविक लिगेसी व् किनशिप पास करने के सिस्टम बनाईये|
वैसे सरदार अजीत सिंह जी (23/02/1881 से 15/08/1947 तक) व् सर राय रिछपाल उर्फ़ सर छोटूराम (24/11/1881 से 09/01/1945 तक) एक ही साल में जन्मे थे; दोनों की मृत्यु भी आज़ादी से ऐन पहले हो गई और दोनों को ही अंग्रेजों ने देश निकाला दिया था| चाचा अजित सिंह को 38 साल विदेश में ईरान रहना पड़ा जबकि सर छोटूराम का देश निकाला जनता के दबाव में वापिस लेना पड़ा था| सोचिये अगर यह दोनों आज़ादी के बाद 2 - 4 साल और जिन्दा रह जाते तो किसानी के लिए और क्या-क्या ना कर जाते| यही इन पुरखों से मेल खाते जूनून की निरन्तरता चाहिए होगी हमारे आज के किसान अग्गुओं में; तभी टस-से-मस होंगे ये फंडी|
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