फंडी (अपना प्रतीकात्मक घड़ियाली अटूट प्रेम दिखाते हुए): जजमान, थम हमनें छोड़ जाओगे तो हम तो भूखे मर जाएंगे?
जाट: हमारे पुरखों ने तुमको खाने-कमाने को दान में जो धौळी की जमीनें दी थी, हम कौनसी वह वापिस ले जा रहे हैं? उनसे कमाते-खाते रहो|
फंडी: नहीं, नहीं जजमान; फिर भी हमनें थारी जरूरत सै?
जाट: म्हारे ऊपर 35 बनाम 1 रचवाने को या तुम्हारे बनाए वर्णवाद से प्रताड़ित दलित को उसकी प्रताड़ना का दोषी हमें बताने को? यानि हमें समाज का विलेन दिखा के खुद समाज का स्याणा बने रहने को?
फंडी: नहीं, नहीं?
जाट: तो और क्या हमारी वोटें ले के राजनैतिक व् प्रसाशनिक सत्ता अपने कब्जे में बनाये रखने हेतु जाट की जरूरत है तुम्हें?
फंडी (मन-मन में; कहवै तो सुसरा ठीक सै, और नहीं तो हमने के अचार घालणा इनका): नहीं, नहीं जजमान; अपने हिन्दू धर्म के अस्तित्व के लिए|
जाट: थम ही तो कहा करो कि सिखी भी हिन्दू धर्म का ही हिस्सा है? अपितु यह तक कहते हो कि सिखी तो हिन्दू धर्म की सस्त्र सेना है?
फंडी: अरे नहीं, वो तो हम सिखों का मनोबल नीचे रखने को फैलाते रहते हैं|
जाट: तो जाट का मनोबल नीचे रखने को क्या-क्या फैलाते हो?
फंडी: तुम सीखी में जाओगे तो खालिस्तान को बढ़ावा मिलेगा|
जाट: किसने उठाया खालिस्तान का मुद्दा? संत भिंडरावाला ने उठाया कभी? दिखा सकते हो कोई रिकॉर्ड?
फंडी: नहीं, वह तो दशम गुरुवों के बराबर की पवित्र आत्मा थे; वह तो सत्ता का विकेन्द्रीकरण मात्र चाहते थे जैसे USA व् यूरोप के देशों की तरह|
जाट: तो फिर किसने उछाला खालिस्तान?
फंडी: हमारे ही एजेंट हैं, एक पाकिस्तान में चावला है व् एक अमेरिका में अरोड़ा है| जनता में खामखा की भड़क व् भय बिठाये रखने को ऐसे फ्रंट्स हम ही खड़े किया करते हैं|
जाट: यानि तुमको फंडी खामखा ही नहीं कहा गया है?
फंडी: खुद की धर्म व् राष्ट्र रक्षा हेतु करना पड़ता है|
जाट: इसमें कौनसी धर्म व् राष्ट्र रक्षा होती है?
फंडी: वो देखो मलोट, पंजाब में हिन्दू एमएलए पीट दिया? हम यूँ बिखरे तो कल को हम भी पिटेंगे|
जाट: उस मामले की FIR में पहला नाम किसी शर्मा का है, यह कैसे सम्भव हुआ? और बिखरने की चिंता करने वाले तुम कब से हुए; जो सिस्टम ही बिखराव व् अलगाववाद से चलाते हो?
फंडी: हम कैसा अलगाववाद करते हैं? बल्कि हम तो हिन्दुओं को एक रखने को बड़े-बड़े अभियान चलाते हैं| हिन्दू एकता व् बराबरी के नारे लगाते हैं|
जाट: और फिर नारे लगा के उन्हीं हिन्दुओं को वर्णवाद व् छूत-अछूत, शूद्र-दलित-स्वर्ण में बाँट देते हो?
फंडी: नहीं वह तो कर्म आधारित व्यवस्था है? जैसा जिसका कर्म वैसा उसका वर्ण|
जाट: अच्छा इतना सिंपल है तो बताओ तुम्हारा "कर्म के आधार पर वर्ण" के सर्टिफिकेट बांटनें वाला दफ्तर कहाँ है? मैं एक IAS अफसर हूँ, पढ़ा-लिखा हूँ, खाली वक्त में टीचिंग भी कर लेता हूँ तो मुझे दिलाओ "ब्राह्मण होने का सर्टिफिकेट"| व् मेरी रिस्तेदारी में एक कजन है मेरा, वह ऑटो-रिक्शा चलाता है उसको दिलाओ "शूद्र" का सर्टिफिकेट?
फंडी: क्या मजाक करते हो जजमान, यह सब तो कहने की बातें होती हैं?
जाट: तो फिर धर्म क्या है तुम्हारे लिए, अगर यही सब कहने मात्र की बातें हैं तो?
फंडी: मतलब थम मानो कोनी?
जाट: तुम हमें मनाना ही क्यों चाहते हो? कोई और तर्क व् वजह? अभी तक जो वजहें दी, वह तो तुम्हारे आगे नंगी कर दी|
फंडी, चुप|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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