लेख का निचौड़: क्या 1860 से ले 1880 वाला जाटों द्वारा सिखी अपनाने का दौर फिर से आ रहा है, 21 अप्रैल 2021 से?
21 अप्रैल 2021 भक्त धन्ना जाट जी की जयंती है व् इस दिन हरयाणा-राजस्थान के तकरीबन 1000 जाट अपने परिवार, साथियों, समर्थकों व् अनुयायियों समेत अमृतसर हरमिंदर साहिब जा कर सिखी ग्रहण करने की तारीख मुक़्क़र्र किये हुए हैं| सुनने में आ रहा है कि 300 जाटों से शुरू हुआ यह आगाज आज बढ़कर 1000 तक जा चुका है व् जिस तरीके से 21 अप्रैल का प्रचार-प्रसार चल रहा है उसको देखते हुए यह कहीं और ज्यादा बड़ा ना हो जाए|
समाज विषेशज्ञों का मानना है कि किसानों के आगे अपनी जिद्द पर अड़े चार जैनी यानी अडानी-अम्बानी-मोदी-शाह व् लम्बा खिंचने का समर्थन करता हिंदुत्व यानि आरएसएस व् तमाम हिंदूवादी संस्थाएं जो कि किसानों की मांगों के बिलकुल विपरीत खड़ी हैं; यह इसकी सबसे बड़ी वजह उभर कर आ रही हैं| और यह वजहें कुछ जाट तबके को इतनी नागवार गुजर रही हैं कि 21 अप्रैल 2021 को पहला जत्था सिखी में जा रहा है यह तय हो चुका है| विशेषज्ञ अंदाजा लगाते हैं कि अगर पहले जत्थे में 1000 तो छोडो 500 जाट भी सिखी में चले गए तो इंटरनेशनल स्तर तक खबर जाएगी व् इसका प्रभाव 1860 से 1880 तक चले "जाट सिखी में चलो दौर" की तरह ना हो जाए और खबरों का सिलसिला ही चल पड़े कि आज फलां जिले-तहसील के इतने जाट और सिखी में गए|
इस देश में अपने हकों व् लोगों के अधिकारों बारे जिम्मेदारी व् संवेदना आज के दिन किसी ने जगाई है तो वह है किसान समाज व् किसान आंदोलन, जिसकी कि रीढ़ जाट/जट्ट समाज को कहा जा सकता है| इसमें भी स्टेट/सेण्टर में अपने ही धर्म की सरकार होते हुए भी फरवरी 2016 में हरयाणा में बेवजह 35 बनाम 1 झेल चुका जाट समाज, अब दूसरी बार भी इतना लम्बा आंदोलन चलाने पर भी व् स्टेट-सेंटनेर दोनों जगह तथाकथित हिंदुत्व सरकारें होने पर भी इन द्वारा टस-से-मस नहीं होने का अड़ियल रवैया जाट समाज के कई तबकों में नगवार गुजर रहा है; जो कि डर है कहीं विशाल रूप धारण ना कर जाए और साइड-इफ़ेक्ट की तरह यह बिंदु और उभर के ना जाए कि पता चला हर तरह जाट सिखी अपनाने की बातें करने लगे हैं"|
कुछ सामाजिक विज्ञानं के विद्वान् इसकी एक और सबसे बड़ी वजह यह बताते हैं कि जो कि धर्म की असली परिभाषा में छुपी हुई है, जिसको कि हिन्दू धर्म में बैठे कुछ फंडियों ने अपने हिसाब से तोड़मरोड़ कर इसका रूप कुरूप कर दिया है| विद्वान् कहते हैं कि धर्म का अर्थ होता है वह समूह जो उसके फोल्लोवेर्स को सोशल सिक्योरिटी, सोशल जस्टिस, सोशल सम्मान व् सोशल संपन्नता सुनिश्चित करे"| जबकि हिन्दू धर्म में बैठे एक तबके, जिसको ढोंगी-पाखंडी कहा जा सकता है उसने इस धर्म को त्याग-बलिदान-आस्था-निष्ठां-श्रद्धा के नाम पर लोगों के दिमाग व् धन दोहन मात्र का धंधा बना छोड़ा है; जन्म आधारित वर्णवाद जैसी विश्व की सबसे क्रूर अलगाववाद की थ्योरी डाल धर्म के अंदर ही आपस में छोटा-बड़ा समझने के धड़े बना डाले हैं|
जबकि दूसरी तरफ देखा जाए तो पिछले चार महीने से चल रहे किसान आंदोलन ने सिख धर्म की "सोशल सिक्योरिटी, सोशल जस्टिस, सोशल सम्मान व् सोशल संपन्नता" की परिभाषा को पूरी तरह साबित तौर पर परिभाषित किया है| अपने किसानों को सड़कों पर भूखे-नंगे मरने को नहीं छोड़ा अपितु एक-एक गुरुद्वारा अपने-अपने कोष-खजानों के मुंह खोल किसान आंदोलन के शुरू दिन से ना सिर्फ धरनों पर लंगर छका रहा है अपितु जिस मान-सम्मान से किसान को पिता-पालक मान उसकी सेवा में जुटा है उसके आगे पूरे विश्व के धर्म व् मानवता नतमस्तक है|
और यही बात जाटों के अति-संवेदनशील तबके के दिल-दिमाग में घर कर गई है कि हमारे दादा नगर खेड़ों के पुरखों वाले ज्यों-के-त्यों सिद्धांत तो गुरूद्वारे ही निभा रहे है तो हम क्यों व्यर्थ में धर्म के नाम पर बंधुआ मजदूरी ढोये जा रहे हैं कि जिसमें लेने वाले का अंत नहीं और देने वाले की कमर से ले सम्मान तक की अर्थी निकली जाती है?
स्थानीय विद्वान् कहते हैं कि अभी भी वक्त है सोचें, नहीं तो यह जाट है; अबकी बार सिखी में चलने का सिलसिला डल गया तो अमृतसर से आगरा व् अबोहर से अमरोहा भी छोटा पड़ जाए सिखी के फैलाव के लिए| इन चार जैनियों की जिद्द बैठे-बिठाए हिंदुत्व का कितना बड़ा नुकसान करके जाएगी, हिंदुत्व के चिंतक विचारें इसपे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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