Wednesday 24 March 2021

सांड व् झोटे (भैंसा) की शालीनता व् चेतना में जमीन-आसमान का फर्क देखिए!

लेख का निचोड़: आप कितने introvert हो या extrovert यह शायद इस पर भी निर्भर करता है कि आप किस जानवर का दूध पीते हो|

हरयाणवी में एक कहावत है, "गा का पिछोका, गोक्का देखे ना मसोहक्का"| सारा निचोड़ इसी में है| गा यानि गाय, पिछोका यानि वंश, मसोहक्का यानि भैंस का जाया हुआ (पैदा किया हुआ) भैंसा व् गोक्का यानि गाय का जाया हुआ सांड| हालाँकि बहुत से लोग इस कहावत को इस तरह भी कहते हैं कि "गोरखनाथ का पिछोका, गोक्का देखे ना मसोहक्का", जो कि मुझे नाथ परम्परा को बदनाम करने को जोड़ी गई ज्यादा प्रतीत होती है|
इस कहावत की व्याख्या कहती है कि जब सांड को कामान्धता चढ़ती है तो वह ना गाय देखता है और ना भैंस; जो सामने दिखी उसी से मेटिंग कर लेता है| जबकि झोटा यानि भैंसा कितना ही कामुक हो रखा हो, परन्तु इतने होशो-हवास में हमेशा होता है कि सम्भोग के लिए सिर्फ भैंस पर ही जाएगा; चाहे 70 गाय इर्दगिर्द खड़ी हों| और यही कामांधता सबसे बड़ी वजह रही है सांड को हल का बैल बनाने के लिए उसकी सहवास नलिका बींध के उसको उन्ना बनाने की, क्योंकि बिना उन्ना किये उसको हल में जोतोगे और उसको कामुकता चढ़ आये तो वह बेकाबू हो इतना कूदता है कि हल की फाळी अपने पैरों में खा बैठता है| जबकि झोटे को आप चाहे बुग्गी में जोड़ो या हल में, उसको पता होता है कि कब काम करना है और कब मस्ती| हालाँकि बैल को उन्ना करने के पीछे वजह यह भी दी जाती है कि इससे वह लम्बे समय तक हल जोतने के लायक रहता है|
एक फर्क और जानिए: गाय के बच्छड़े व् सांड इतने introvert होते हैं कि या तो जोहड़ों-गोरों पर एक-एक झुण्ड में 10-10 बैठे रहेंगे परन्तु लड़ेंगे नहीं, परन्तु जब लड़ेंगे तो इतने भयंकर कि छुड़वाने मुश्किल हो जाते हैं| एक बार दुश्मनी ठहर गई तो बाद में कुदरती आमना-सामना हो गया तो फिर लड़ लेंगे परन्तु ना सीम बांटते (यानि एरिया) और ना ही पैड (पदचाप) सूंघ ढूंढेंगे| जबकि झोटे यानि भैंसे स्वभाव से extrovert व् introvert दोनों ही होते हैं| यानि झुण्ड में 2 नहीं खटाएंगे, जैसे भाई-लोग बैठते ही चियर्स करने लग जाते हैं, यह भिड़ना शुरू कर देते हैं; परन्तु छुड़वाने पर अलग-अलग भी हो जाते हैं| यह तो है इनका extrovert यानि hi-hello वाला hangout स्वभाव| अब इनका introvert भी समझिये| हल्के-फुल्के सींग भांजते इनकी अगर तगड़ी ठन गई तो फिर समझो आजीवन की ठन गई| और सरकारी छोड़े हुए गामी झोटे हुए तो इस स्तर तक ठनती है कि गाम की बसासत से ले खेतों में घूमने-फिरने के दायरे तक बंट जाते हैं, सीमाएं खींच लेते हैं; कि यह तेरी सीम व् यह मेरी| एक ने अगर दूसरे के देखते हुए दूसरे की सीमा में पैर भी रखा तो रात-रात भर झोटों की खैड़ बजती हैं| और इतनी तगड़ी बजती हैं कि रात के सन्नाटों में तो किलोमीटरों दूर तक सुनती हैं| किसी बुग्गी वाले यानि घरेलू झोटे से बैर बंध जाए तो उसके घर की ऐसी निशानदेही करते हैं कि या तो मालिक को बुग्गी वाला झोटा बेच के दूसरा बदलना पड़ता है या किवाड़ों की जोड़ी बदलवाने पे लगे रहो क्योंकि बैर-बिसाहा गामी झोटा बार-बार आपके झोटे की पैड सूंघता आपके घर-घेर तक आ, आपके किवाड़-दरवाजे तोड़ेगा ही तोड़ेगा और तोड़ता रहेगा जब तक आप बुग्गी वाले को बेच नया नहीं बदल लोगे|
अगर दूध नाम की कोई चीज है जिससे इंसान का चरित्र प्रभावित होता है तो फर्क सामने है|
गाय के दूध के कुछ गुण भी सुन लीजिये: बड़े बूढ़ों की ऑब्जरवेशन कहती है कि, "गर्म करने पर ऊँटनी के दूध पर भैंस के दूध से तीन से चार गुना ज्यादा मलाई आती हैं, भैंस के दूध पर गाय के दूध से तीन से चार गुना ज्यादा मलाई आती है"| यानि FAT के मामले में भैंस का दूध गाय के दूध से 3-4 गुना गाढ़ा होता है| इसीलिए जब कभी छोटे दुधमुँहें बच्चों को माँ के ना होने या माँ में कम दूध होने के चलते उनको बाहरी दूध पिलाना पड़ता है तो गाय का रिकमेंड किया जाता है अन्यथा भैंस का पिलाना पड़े तो उसमें चार गुना ज्यादा पानी डाल के पिलाना होता है| गाय के घी के कुछ बेहतर गुण बताये जाते हैं जो कुछ ख़ास बिमारियों के इलाज में सार्थक होते हैं व् ऐसे ही भैंस के घी के भी अपने ख़ास गुण होते हैं जो कुछ ख़ास बिमारियों के इलाज में सार्थक होते हैं|
फंडियों का दुष्प्रचार: अब सितम एक यह भी देखिए कि फंडियों ने एक जानवर यानि गाय को माता ठहराए रखने हेतु दूसरे की यानि भैंस की बदनामी कैसे फैलाई? "भैंस के आगे बीन बजाना" जैसी कहावतें बना के| जबकि भैंस नार्थ-वेस्ट इंडिया का "ब्लैक-गोल्ड" कहलाती है, व् ऊपर लिखित comparative analysis को देखो तो भैंस, गाय से 20 ही बेशक पड़ती हो 19 नहीं| इसलिए गाय की भी जय बोलिये और भैंस बारे भी बोलिये कि, "जय काळी हरयाणे आळी; दूध के बाल्लट, बाळकां म्ह हांगा भरने आळी"| गाय के दूध व् स्वभाव में भी बहुत गुण होते हैं परन्तु किसी बात को ले के समाज में अतिश्योक्ति स्थापित करना मूढ़ता है, पाखंड है; यह बात समझिए व् इन फंडियों को समझाइए|
आह्वान: कोई तथाकथित ज्ञानी-ध्यानी-ब्रह्मज्ञानी इन तथ्यों पर बहस करना चाहता हो तो स्वागत है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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