Friday, 30 April 2021

"पैंडा छोड़" की जगह "आतंकवादी" कह देते बड्डे-बड़ेरे तो आज समस्या इतनी गंभीर ना होती!

इतनी गंभीर ना होती कि देश वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की 159 देशों की सूची में 140 पे नंबर पर आया| इस बारे विगत वर्षों के आंकड़े भी लगे हाथ देख लीजिये:


India's World Happiness Index out of 159 countries:

In 2013 - Rank 111
In 2016 - Rank 118
In 2017 - Rank 122
In 2018 - Rank 133
In 2019 - Rank 140
अब जरा यह दो परिवेश समझिये:

1) एक वक्त में बड़े-बड़ेरे एक कहावत कहा करते थे फंडी बारे कि "पैंडा छोड़" क्योंकि फंडी उनसे अपनी बात मनवाने की जिद्द किया करते थे| जो हमारे बड़ों को पसंद ही नहीं आती थी बल्कि अव्यवहारिक भी लगा करती थी तो उनसे पीछा छुड़ाने व् आज वाली भाषा में कहूं तो अपने 'दिमाग की दही' बनवाने से बचने हेतु उनको बोल देते थे कि "पैंडा छोड़"| यह तो रही आपकी-हमारी चलती में आप आपकी नापसंद बात कहने वाले को कैसे दरकिनार करते रहे हो| आज वालों को तो यह दरकिनारी स्टाइल ही भूल चुका है और वह कितनी "दिमाग की दही" वाली स्टेज में जी रहे हैं उनको शायद अहसास होना भी मंद हो चुका है|

2) अब जरा इसी बात बारे फंडी की क्या एप्रोच रही है वह भी जानिये| फंडी की चलती और नहीं चलती दोनों अवस्थाओं में कोई उसको उसकी नापसंद बात कहेगा या फंडी से कोई अपनी बात मनवाना चाहेगा और फंडी को वह नहीं माननी होगी तो वह यह नहीं कहेगा कि "पैंडा छोड़" और बस इतने भर से बात खत्म| नहीं, अपितु वह आपको "आतंकवादी" बोलेगा-बुलवाएगा, वह आपको "दबंग", "लठैत" और तो और "देशद्रोही" तक कहने से भी नहीं चूकेगा|

यही फर्क है आमजन और फंडी की एप्रोच में| पहले वाले परिवेश में मामले को हल्के से लेते हुए वहीँ की वहीँ दबा के आगे बढ़ने की सोच है और दूसरे वाले में भिन्न सोच वाले को खत्म ही या बदनाम कर देने की सोच है| कम-से-कम भिन्न सोच वाले की साइकोलॉजी को भन्ना के रख देने वाली सोच तो है ही है|

"वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स" में जो देश टॉप पर हैं जरा उन पर भी नजर मार लीजिये| और मुझे बताईये (खासकर वह चिंतक जो इंडिया में इतने बुरे इंडेक्स के लिए नेताओं को देश देते हैं) कि क्या यहाँ इन देशों में नेता नहीं हैं? बिल्कुल हैं| तो फिर समस्या क्या है?

समस्या है बेलगाम धार्मिक कट्टरवादी ताकतें| और इन्हीं धार्मिक ताकतों द्वारा ऊपर बताये परिवेश एक वाले कमजोर कर दिए गए सोशल इंजीनियरिंग प्रेशर ग्रुप्स| वरना तो यह बताओ आज के दिन हमारे देश की लगभग हर दूसरी गली-चौक-चौराहे पर चौकियाँ-जगराते-जागरण-भंडारे चल रहे हैं, दे-धड़ा-धड़ दान पर दान हो रहे हैं; और फिर भी देश "वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स" में 159 देशों में 140 वें पे?

"वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स" में जो देश टॉप पर हैं वहां धर्म को तब से "बैलेंस्ड-वे" में रखा जा रहा है जब यहाँ 14वीं सदी में 'ब्लैक-प्लेग" की मौत का तांडव हुआ था| तब चर्चों में गॉड के नाम व् प्रभाव से बच जाओगे का सहारा ले जो चर्चों में आये, वह सब मारे गए बल्कि जो जंगलों में भाग गए वह सब बच गए| "ब्लेक-प्लेग" ने इन देशों में धर्म की अफीम का नशा इनके सर से ऐसा उतारा कि यहाँ कोई भी चर्च व् इनसे संबंधित संगठन अपने उत्सव चर्च परिसर से बाहर नहीं मना सकता| और ना चर्च को ना मानने वालों को हमारे यहाँ की भांति देशद्रोही, धर्मद्रोही आदि बुला सकता|

मुझे सबसे बड़ा ताज्जुब तो इस बात को देखकर होता है कि इंडिया से ऊठ के यहाँ चले आने वाले एनआरआई लोग, यहाँ के इतने खुशनुमा माहौल में रहने इसको देखने समझने के बावजूद भी इनमें से 90% इंडिया के वर्णवादी-जातिवादी-नश्लवादी सिस्टम को यूँ का यूँ बरकरार रखवाए रखना चाहते हैं| इसको सर्वोत्तम बताते हैं| हद करते हैं यह लोग, भाई अगर यह सर्वोत्तम है तो वह हमारी हरयाणवी भाषा वाली बात यहाँ यूरोप-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया वगैरह में क्या डोकके लेवो हो फेर?

सही कहूं तो यही है इंडिया की "वर्ल्ड हैप्पी इंडेक्स" पर इतनी डांवाडोल स्थिति होने की सबसे बड़ी वजह|

मैं मध्यमार्गी इंसान हूँ| मुझे ना तो धर्म की कटटरता पसंद और ना धर्म की रुस्वाई पसंद| बल्कि मैं तो हिन्दू धर्म में भी ऐसी विचारधारा से आता हूँ जिसमें "दादा नगर खेड़ों" के तहत धोक-पूजा-पाठ सब कुछ औरतों के ही सुपुर्द है| आदमी तक को धोक-पूजा-पाठ औरत करवाती है| मर्द का किसी भी रूप में चाहे यह पुजारी का हो या महंत आदि का, उसका दखल ही नहीं रखा हमारे पुरखों ने अनंतकाल से| चाहे कोई कितना ही चिढ़ता हो इस पार्टिकुलर व्यवस्था से, परन्तु पूरे हिंदुस्तान में सबसे धनाढ्य और सम्प्पन लोग इसी व्यस्वस्था को मानने वाले रहे हैं और आजतलक भी हैं और कल भी रहेंगे अगर इसको मानते-मनाते रहे तो| बेशक यह सिस्टम औरत को देवी नहीं बनाता परन्तु औरत को पूजा-पाठ में 100% अगुवाई दे के रखता है| और पूरे विश्व में ऐसा अनोखा सिस्टम किसी भी धर्म या उसके पंथ समूह में नहीं जैसा इसमें हैं|

अत: निचौड़ यही है कि धर्म को "बैलेंस्ड-वे" पे लाये बिना हम कभी वर्ल्ड हैप्पी इंडेक्स पर बढ़िया रैंकिंग में नहीं आ पाएंगे!

और हाँ, फंडी को नापसंद बात करने पर "पैंडा छोड़" कहने की बजाये "आतंकवादी" कहना शुरू कर लीजिये, देश-समाज की 90% समस्या एक झटके में हल| वरना इन्होनें आपको आज से भी ज्यादा दबा देना है, मंदबुद्धि बना देना है| और यह इनका अंतिम टारगेट अंतिम मंजिल भी है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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